Dec 21, 2011

क्यूँ तेरी तलाश है

आज भी क्यूँ तेरी तलाश है
आज भी क्यूँ तेरी आश है
आज भी कीउन तू एक प्यास है
क्यूँ मुझे आज भी तेरी तलाश है

क्यूँ धुन्दता हूँ ख्वाबों से निकल कर
सिसकती तकियों के गिलाफों पे तुझे
क्यूँ धुन्दता हूँ नर्म चादरों मैं
न बने उन तनहा टेडी मेढ़ी सिलवटों मैं

क्यूँ धुन्दता हूँ बिस्तर की सुनी कोने मैं
क्यूँ धुन्दता हूँ खली चाय की प्याले मैं.
क्यूँ भीग्गना चाहता है मन जुल्फों से निकले उन बूंदों मैं

क्यूँ खोजता हूँ मैं उँगलियों मैं तेरी उंगलिया
क्यूँ धुन्दता हूँ पायल की वो छान छान
क्यूँ चाहता है मन आज होठों से होठों को चुराने को

सुनी पड़ी है क्यूँ आज यह शमा
क्यूँ धुन्दता है आगोश मैं
सजाने को तुम्हे आज मेरा मनन
क्यूँ धुन्दता है तुझे मनन
क्यूँ तरसता है तुम्हे पाने

खो गयी क्यूँ आज मेरी मुस्कराहट
धुंद रही हो जैसे तेरी मुस्कराहट
कहाँ खो गयी है खनखनाती वे हसी
क्यूँ धुंद रहा आज मैं अपनी खुसी

क्यूँ तलाशता मैं आज भी....
जब जनता हूँ तुम मेरे साथ हो फिर भी
अनजाने से इस भीड़ मैं तुम ही तो मेरे साथ होऊ
फिर क्यूँ तलाशता मैं आज भी....
क्यूँ तरसता है मनन आज भी


sorry for spellings...will correct soon

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.