Jun 29, 2013

भाग मिल्खा भाग

आज नींद से उठा तों चेहरे पर थोड़ी मुस्कान थी पर माथे पर कुछ बूंद पसीने के इधर उधर बेमानी से फिसल रहे थे. पानी के बूंदों से पसीने की मोतियो  कों धो डाला और निकल गया चौपाल की तरफ. आनन-फानन में ददुआ चाचा से अपनी चाय की प्याली ली और बैठ गया पेड़ की ओट ले कर. लगा कुछ तों गडबड है इस सपने में. सपने का सहसा टूट जाना और उनका जहाँ में बने रहना कोई खास बात नहीं थी फिर मन व्याकुल सा था. एक एक कर सपने कों सहला कर पीछे करता गया. अचानक हंसी आ गयी. लगता है आजकल फिल्मों का रोग सा लग गया है हमे. फुकरे देखा था पिछले दिनों, सो मैं भी सपनों में मतलब ढूँढने लगा था.


सपना भी बड़ा अजीब सा था. ऊँची ऊँची निर्जन से पहाड़ थे, दूर दूर तक एक भी हरियाली ना थी और थे बस निर्जीव से चट्टान और चट्टानों के ऊपर चट्टान. एक अजीब सा अकेलापण था पूरे माहौल में. और पहाड के इस निर्जीवता कों चीरता मैं दौड रहा था एक एथलीट  की तरह. हलफ पेंट, स्नीकर्स, बनियान पहने, हांफता हुआ दौड़े ज रहा था किसी अनजान से मंजिल की तरफ. नज़ारे पीछे गयी तों देखा एक बड़ी सी टोकरी बंधी पड़ी थी एक मोटी सी जर्जर रस्से से. रस्सी का कोना कुछ ऐसा बंधा था मुझसे की मैं दौड रहा था और रस्से से जुडी वो बड़ी सी टोकरी फिसलती पीछे आ रही थी. देख कर भी रुका नहीं, शायद रुकना ही नहीं चाहता था. साथ बढ़ी टोकरी अपने संग  शायद कुछ समेटती ज रही थी क्यूँकी उसका बोझ अब हमे चुभने सा लगा था. पास ही एक बड़ी से चट्टान थी जहाँ कुछ देर सुस्ता सकता था मैं. देख कर दौडना बंद किया और रुक गया. किसी मनचले मुसाफिर ने अपने प्यार का सन्देश छोड़ रखा था ...चट्टान का नाम भी दे रखा था.. घिस आई थी नाम, पर ध्यान से पढ़ा तों अंगरेजी में लिखा था “टाइम रोक”. ज्यादा सोचा नहीं और कोई पल गवाना शायद नहीं चाहता था. टोकरी कों पास घसीटा तों देखा कई चीज़ उसमे पड़े थे. दौड़ते वक्त तों नज़र नहीं पड़ी थी, फिर ये कैसे आ गए इस टोकरी में? काफी कुछ था, एक-एक चीज़ हाथ में  लेता, गौर से उन्हें देखता और वापस रख देता.. उनका वहाँ होने का औचित्य समझ ही ना आ रही थी... सहसा खड़ा हुआ, कमर से रस्सी खोलने के कोशिश की तों गीठ खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी.. बहुत जद्दोजहद कर रहा था कि गीठ खुले और इसे यहीं छोड़ कर वापस दौडाना शुरू करू. हर तरह से खोलने की कोशिश कर रहा था और इसी पेशोपेश में पसीने से तरबतर हों गया था मैं. हांफने लगा था, किसी भी तरह इस गठरी कों छोड़ कर भागने की कोशिश नाकाम हों रही थी. इसी पेशोपेश में सपना टूट गया था. और मैं पसीने से तरबतर था.

Jun 23, 2013

बाहें...

कभी डरता
कभी रोता
अश्रु भरी आँखों से तुम्हे देखता
पलक झपकते  
नन्ही सी तन कों तुम
अपने आगोश में लेती,
और, सब कुछ भुला जाती

ना जाने कहाँ से
तुम इतना
प्यार, दुलार, ममता
साहस, निडरता
मुझ पर लुटा जाती,
जिंदगी जीने का
एक और सबब दे जाती

अब कहाँ हों,
कोई सुराग नहीं
कोई निशाँ नहीं
खो गयी हों, कहीं,
ढूंढ रहा हूँ मैं
भयभीत, परेशान
तुम्हारे निशाँ कों
शायद मिल जाओ
और फिर एक बार
उन्मुक्त हों
आगोश में लो मुझे....

आज नहीं हैं कोई जो
तुम्हारे होने का एहसास बंधाये
जो तुम्हारे अस्तित्व कों जताए
ना रिश्तों में, ना नातों में
ना दूर, ना कोई पास
सब सुना सा पड़ा है
सब बिखरा सा पड़ा है
कहाँ हों तुम कि तुम मिलो
निर्भीक हों
एक आखरी नींद मैं सो लू...
कहाँ हों तुम ?

ना मिलती तों भी क्या,
बस एक ही आस है
जिंदगी की प्यास है
संगिनी है जो
मेरे निर्जीव राहों की,
जो तुम्हे फैलाये कहती,
क्यूँ मचलते हों आगोश में                                                                         
इनके आने कों
देखो कब से खड़ी हूँ
बाहें फैलाये
एक बार अपने आगोश में तुम्हे पाने कों.
एक बार अपने आगोश में तुम्हे पाने को

Jun 19, 2013

आज जनमदिन है तुम्हारा

आज हमारी जान की जन्मदिन है. खुशियों सा ये दिन जितना उनके लिए है उनसे ज्यादा हमारे लिए है. हमारे लिए तों त्यौहार सा है. अरे भई हों भी क्यूँ ना आज के दिन ईश्वर के अनुकम्पा से, माँ- बाबा के आशीर्वाद से हमारे सोना का जनम हुआ त्यौहार सा तों होगा ही. मन में कई अरमान थे कि हम उनके इस दिवस में उनके साथ होंगे. उम्र के बराबर तोहफों का सिलसिला होगा, पर बेदर्दी की आज्ञा थी की कोई तोहफा उन्हें ना भेज जाए. इससे बड़ी सजा क्या होगी. शुभ आशीष और प्यार के लिए ये दिवस की जरूरत नहीं पड़ती हमे, हम तों रोज ही दुआ में उनकी खुशियाँ माँग ही लेते है. खैर, आज्ञा का पालन तों करना ही पड़ा. और कोई चारा भी ना था. बहुत सोचा तों एक ख्याल आया की जो देन कभी उन्होंने हमे दी थी उन्ही से आज की दिन सजा डाले. सो एक कोशिश लिखने की हमने की और कुछ जनम दिन पर हमने लिख दिया... यही भेंट कर रहा हूँ आज उन्हे.. आशा है उन्हें पसंद आएगा .... प्रस्तुत है एक रचना “ आज जनमदिन है तुम्हारा
 
 सोचा आज जनमदिन है तुम्हारा तों
मैं तुम्हे जनमदिन की बधाईयां दे दूँ..
अपने इस त्यौहार कों तुम संग मना लू

कलफ मंझे कुर्ते पर
इस्त्री की सांप सुंघाई
कड़क आस्तीन पर
धोबी से पत्थर घिसवाई
मजमुए की इत्तर रुई में चुभा
कान तले समाई
सुरमे की डिबिया खोल,
आँखों तले सुरमा सरकाई
डाबर के डब्बे से चमेली तेल
हथेली में ले बालों में चिपकाई
तब आया शरूर की
हाँ अब हैं हम तैयार ...
कहे मन ही मन
पान के पीक कों थूक के
चलो अब चले अपनी जान कों
जन्मदिन की बधाईयां दे आयें...

Jun 15, 2013

Why?

What a topic!!! What a topic I must say…
I really loved the kind of flutter it created when I saw it first. On the first glance, I thought I would never ever locate those five or more Exclusive people, Dead or Alive whom I could rope in for a chat. I kept on thinking this with my loved ones, my Best friends, my colleagues. Which one of them could join me? My world moves around these people and they mean the World to me. When I see a delicious food, I salivate but when I see a Great topic, I Salivate again to write something on it. It did the same.
I am not an avid reader myself. My knowledge on History is as good as Geography. Honestly, I always Capped the Wrong Capitals to the Countries. So, I thought why not correct my knowledge on History. So I thought of the following people :

Firstly I would correct my knowledge on the ever burning topic of India’s Partition. On the night of independence, one country got divided into two: Hindustan and Pakistan. We felt the freedom, we rejoiced, we celebrated the moment, we celebrated our Independence. Our Great Leader Pandit Jawahar Lal Nehru unfurled the flag of independence. A new country was born. But, at what cost did we really rejoiced? Was it a Celebration for the separation? Or, was it really the joy of celebrating Independence by throwing out someone who fought together with us for this Independence? The separations that they all  gave us, made us still fighting a war. Everyday there are lives which are lost and dollars are spent fighting. Here, is my first personality: Pandit Jawahar Lal Nehru. I would have asked if he appears online:
“ Dear Sir, we know from our History Books that Mr Jinnah wanted to divide this lovely country for preserving the rights of Muslims. Why the history is silent on your efforts to stop this division? You were supposed to be “the” Pandit of Secularism, then why you did not stop this division showing the secularism? Was your or Mr Jinnah’s personal ambition of becoming the first head of the state so Important that you agreed on the division? Britain did rule our country and played all the dirty games, but I trust they would have never wanted to divide this beautiful country. Wasn’t yours and Jinnah’s personal ambition came in between? You both were Powerful and Mr Jinnah was even more and was a threat to your personal agenda. History is silent why, Mr Pandit, don’t you break this silence, Sir.”

Jun 2, 2013

Body's Right Signals

बहुत दिनों बाद चौपाल आया था. काम की अनचाही व्यस्तता, चौपाल की भरपूर जिंदगी से हमे रुकसत कर रखी थी. झारभरी पगडंडियों से चप्पल पटकता आ पहुचा था, मैं. हमेशा की तरह रास्ते में ददुआ चाचा दिखे, कपडे से चाय के पत्तियों कों छानते हुए. “चाचा का हाल चाल है, चाय पिलाईये”, कहा मैंने. ददुआ चाचा कों देखा की कपडे कों निचोड़ निचोड़ कर चाय निकाल रहे थे. चाय छननी के ज़माने में कपड़े से चाय कों छानते देख कर हंसी आ गयी. चाय रिस-रिस कर निकाल रहा था कपड़े से. चाय की प्याले से पहली चुस्की ली ही थी कि याद आ गया वो वाक्या जब कुछ ऐसा ही हादसा हुआ था.
बात उन दिनों कि है जब अन्नपूर्ण देवी कि प्रकास्ठा से हम फलने फूलने लगे थे. फले फुले क्या थे पुराने सारी पतलूनों ने हमसे मुह मोड लिया था और कमीजों के बटन हमसे विद्रोह कर टूट-टूट कर छिटकने लगे थे. अन्नपूर्णा माँ के संग हमारी माँ बड़ी खुश थी कि उनकी गरमा-गरम पराठे, मिठाईयों के संग उनका बेटा फलफूल रहा है. पतली सींक से छरहरे बदन पर चर्बी का लेप चढ़े जा रहा था. पत्नी नाराज़ हों उठी थी, ऐसे डील-डौलपन से. लोगों के मिश्रित भाव से तंग आ कर एक दिन मेरे आईने ने भी कह ही दिया बहुत हुआ अब और नहीं फूलो वर्ना मुझमें भी नहीं समा पावोगे. चलता तों लगता शरीर में स्प्रिंग लगे हैं. पेट में पड़े मिठाई हिल हिल कर मजे लेते. यूं कहिय्र तोंद निकाल आया था और चलता तों स्प्रिंग से हिलते. बड़ा गन्दा सा अनुभव होने लगा. मन में भाव आते ही   क्या था कूद गया मैदान पर. सुबह कि शुरुआट फलों से और दिन भर गिन कर खाना. मौका मिलते ही सिर्फ पानी और जूस पीना. वजन घटने लगा था. आईना खुश थी तों मैं भी खुश होता गया. बड़ी उटपटांग से क्रिया होने लगे. अच्छा खासा वजन गिरने लगा.