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सफलता की सीढियाँ चढते चढते हम भूल जाते है योगदान उन खास लोगो कि जिन्होंने हमे अपने पायदान पर कदम रखना सिखाया था. सर आसमान को ताकता है और पग मंजिल को अग्रसर रहते हैं , पर हम भूल जाते हैं एक बार रुक अपने उस आका को सलाम करना जिन्होंने हमे पायदानों पर चलना सिखाया था ...
कटीली पगडंडियों से चल,
आज तुम
चढ रहे हो
सफलता की सीढियां..
अट्टहास करते,
हाथों को मेलते,
नभ सर को छुए,`
अडिग पग से,
राहगीरों को छोड़.
एक दंभ,
एक अभिमान मन में पाले.....
चढ़ रहे हो
पायदान पर पायदान...
चढते रह तू
पायदान पर पायदान...
याद कर कि
पहली कुछ पायदानें
हमने ही बिछायी थी
तुम्हारे लिए
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.