Jul 17, 2013

प्रतिबिम्ब....




ऐसा क्यूँ होता है कि मन के मर्म को, मन के वेग को लोगों
संग बांटना कमजोरी की पहचान समझी जाती है?



गहरे नीली अथाह
समुन्दर
और,
गर्भ से जन्मित  
उफनती लहरें......
मदमस्त
वेग से ऐठें
आती और
टकरा जाती
साहिल से.....
निस्नाबुत कर खुद
शांत लहरे  
गर्भ में समां जाती
सागर को शांत कर..

साहिल,
खुद को वेग में ढाक
मदमस्ती में नहा
पल भर
मुस्काती
और
चिढाती
अथाह जलश्रोत को :
निर्बल – दुर्बल- अशक्त,
सागर, कहाँ तेरा रक्त?

सुन साहिल की कटाक्ष...
रुधित,
विषाद,
ह्रद-खंडित,
सागर
डूब गया अपने ही
अथाह गर्भ में,
सोचता  
माना था कहीं उसने ही
साहिल को अपना
प्रतिबिम्ब.....  

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.