Sep 16, 2013

जिंदगी

कई कई बार रेत के टीले

पर बैठ
सोचा है हमने
छोटे छोटे सपनो को
बन बिगड़ते देखा है

स्वयं रुक कई बार
उन्हें सहलाया
प्यार से गोद ले
उठाया - पुचकारा,

दो पल जिंदा रखने के खातिर,  
दो पग चलते देखने के खातिर
कोशों गोद में सहेजा चलता गया

पर, बिखरना लक्ष्य था उनका ,
तभी आगोश से  
फिसल, उन्हें बिखरते देखा था .
रुक, कई बार सपनों को अपने
दम तोडते देखा था ...

विदा होते देख सपनों को
कई बार नैनों से
आंसू के कुछ बूंदों को  भी
आँखों से विदा होते देखा था

कई कई बार रेत के टीले
पर बैठ
छोटे छोटे सपनो को
बनते बिगड़ते देखा था

लहरों ने कई बार टोका
गुस्से से कई बार
रेत के टीले को बहा
हमे सपनों से घसीटा ...
फिर भी,
मोल न समझा कभी लहरों का

लहरों के थाप से
जब ढह गयीं टीले
बेबस हो दो पल को रुके
खुद को समेटा  
नज़रें दौडाई तो
देखा,

वहीँ शव पड़ी
सपनों के ओट से
निकल आई थी
जिंदगी के दो पत्र...

थाम
उन नन्हे पत्रों को, मैं चलता गया
जिंदगी से रूबरू होता  गया
टूटे सपनों से दूर, मैं जीवंत होता  गया

आज जिंदगी के आगोश में, मैं आ गया
आज जिंदगी के आगोश में, मैं आ गया

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.