तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना,
शोर को निस्तब्ध का जाना
धडकनों को सुनना, मुस्कुरा
उन्हें अपने संग मिला जाना ....
तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
रिश्तों की उलझी गांठें खोल जाना
माया से बंधी करे डोर से हमे छुडा
उन्हें अपने में मिला जाना ....
तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
अधूरी प्यास, अनछुए सपनों को
परिंदों सा उन्मुक्त कर,
उन्हें निश्नाबुत बना जाना ....
तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
नि:शब्द,
निश्छल,
निर्जीव सा धरा पर छोड़
हमे खुद में मिला जाना
डर लगता है सोच,
यूँ दबे पाँव तुम्हारा आना
रिश्तों को यूँ ही बे-अदब छोड़ जाना
अधूरे सपनों का गला सहसा छोड़ जाना
इच्छाओं को यूँ फेंक कर मिटा जाना
डर लगता है हमे तुझसे, और
तेरे इस तरह से बे-अदब आना
रे काल
डर लगता है तेरा अचानक आना
** मेरे दोस्त अर्पण के अचानक निधन के बाद ......२८/९**
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.