Feb 6, 2014

हमराह...

धडकनें हैं
hamrah
धड़कने सुन पा रहा हूँ मैं  

हलचल है  
हलचलें भांप पा रहा हूँ मैं

सक्रिय हो
सक्रियता महसूस कर पा रहा हूँ मैं

खामोश हो
ख़ामोशी से खुद को व्यर्थ होता देख रहा हूँ मैं...

अपने को
तुम्हारे ख़ामोशी से बुझता हुआ देख रहा हूँ मैं...

क्यूँ हो खामोश न पूछूँगा...
ज्ञात है कि मैं तुम्हारे प्रश्न का जवाब नहीं
ज्ञात है कि मैं तुम्हारे प्रश्न का हमराह नहीं......

  

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.