Sep 14, 2015

आगाज़...

इधर उधर पड़े
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रंगीन बक्सों को
ज़िन्दगी के 
रक्सेक बेग में
समेटते
सिमटते
महसूस कर पा रहा हूँ...


..आखिरी यात्रा की आगाज़ तो नहीं ये...

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.