रिश्तों मैं बंधे रहना, रिश्तों को कमज़ोर समझना, रिश्तों से विद्रोह कर जाना, जीवन कर्म सा होता हैं..अब एक कंडे को उपले के साथ रहना पड़ता है.. कंडा भी कब तक शांत सा उपले के साथ पड़ा रहे ..जब भी उसे एक चिंगारी मिलती है वो उसे आग मैं बदल देता है ..खुद को निश्नाबुत कर उपले को भी राख कर जाता है... शायद कुछ रिश्ते भी इन जैसे ही होते हैं ....शब्दों मैं भावों को दर्शाने की एक कोशिश.....
कंडा हूँ ठंडा नहीं मैं .....
पड़पढाती कंडे को सुन
उपले ने कटाक्ष किया
उपहास कर कंडे पर
शब्दों से वार किया
कंडे, न बागी तू बन
जलने पर यूँ अट्ठास न कर
नहीं है तू कोई विद्रोही ,
विद्रोह का तू न कर ग़दर
शांत से जलता है तू, तों जल
व्यर्थ तू अट्टहास न कर
राख तू बन जाएगा
पल भर और तू जी पायेगा
शांत से तू भभक
शांत हो तू भभक ...
विद्रोह का तू न कर ग़दर
कंडा भी ठंडा कहाँ था
वार उसने उपले को दिया
विद्रोही सा धधक उसने
उपले को भी झुलसा दिया
तू तों है जन्मा सृजन का
तू तों है त्यागा हुआ
सुखाए हैं प्राण मल के,
फिर हुआ तेरा जनम
न उपहास कर मुझ पर तू
न व्यर्थ ह्राष कर
उपला है तु, उपले सा रह
शांत रह तू ही जल
कर्म है जलने का तेरा
कर्म बस अपनी तू कर
भूलता क्यूँ आज है तू
उपहास करता, क्यूँ आज है तू
कंडा हूँ ठंडा नहीं मैं
खोखला पर निर्बल नहीं
चिंगारी की एक छुवन पर
निश्नाबुत हो खुद जला मैं
राख सब कुछ कर उठता हूँ
गर्ज़ना से स्वयं के संग
राख सब कर जाता हूँ
संग तेरे साथ का
उपहास मैं कर जाता हूँ,
अट्टहास ये मेरे विजय का
अट्टहास ये मेरे करम का
अट्टहास ये सबके शिकस्त का
अट्टहास है ये मेरे विद्रोह का
कंडा हूँ मैं ठंडा नही मैं
चिंगारी की एक छुवन से
धड़क उठे विद्रोह मेरा
जलता हूँ जल मारूंगा
साथ सबको ले जलूँगा...
कंडा हूँ मैं ठंडा नहीं मैं
कंडा हूँ मैं विद्रोही है मन मेरा ...
१८/१२/११
Mujhe Pasnad aayii aapkii Rachna.
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