Feb 19, 2014

खुश हूँ मैं कि....

खुश हूँ मैं कि,
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जिन ख्वाबों को
वर्षों से तुमने सजाया था,
ख्वाबों को पावोगी..

सुर्ख लाल जोड़े में,
हिना भरे हाथों में.
कांच के चूड़ियों से,
फूलों से जुल्फों को बाध,
पाजेब छमकाती,
ज़िन्दगी के
सबसे खुबसुरत
सात कदम
सात वचन
साथ फेरे
उनके संग लोगी..

शरू होगी तब
नया जीवन,
नए रिश्ते
नया परिवार
नए लोग
नए सखी
नए दोस्त
नए रूप में, नहा जावोगी
खुद को
नए खुशियों में घीरे पावोगी

खुश हूँ मैं कि,
जिन ख्वाबों को
वर्षों से तुमने सजाया था,
ख्वाबों को पावोगी..

खुशियों के
इन हसीन दामन में
न सोचना कभी कि
क्या मैं खुश हूँ?
व्यर्थ में हसीन अपने
पल न गंवाना
समझ लेना
मुस्कान में तुम्हारी
हमारी भी मुस्कान है
खुशियों के आँचल को
थामे हम तुम्हारे साथ हैं..
खुद को मैं संभाल लूँगा
त्रस्त हुआ कभी
शब्दों के दामन में
खुद को मैं छुपा लूँगा....
इस बार की ही है गफलत
बाकी सारे जनम का साथ छीन लूँगा....
अपने आप को तुम्हारे दामन में बाँध लूँगा...


खुश हूँ मैं कि, जिन ख्वाबों को

वर्षों से तुमने सजाया थाख्वाबों को पावोगी..

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
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