Feb 24, 2014

चिविंग गम....

होंठों से छू तुम्हे
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पल कुछ पल
खुद से की रूबरू  
थोडी तुम हिली  
थोडी तुम लहरायी  
तुम्हारी खुशबू
साँसों में समा गयी
तुम्हारी मिठास
आत्मविभोर कर गयी
तुम अस्तित्व खो अपनी
हमारी चाहत बन गयी.
साँसों के बूते से धकेला
गुब्बारों सी
जहाँ में छा गयी
जब तक सकी, संभली
न हो सका तो फूट
पुनः आकर में आ गयी

विधि का विधान.....
हुई मिठास कुछ धूमिल
खुशबू हुई कुछ और धूमिल
फेंक गया वही मन जो
कुछ पल पहले ही
हुआ आत्मविभोर था..
फेंक गया वही तन जो
मिठास से तेरे
प्रफुल्लित था.... .
कैसा है ये विधान
कैसा है ये जीवन
एक चिविंग गम का?
पूछा मैंने गम से...

मुस्कुरा गम ने कहा
हंस क्यों रहे हो
आश्चर्य क्यों हो रहे
विधि के इस विधान पर...
हम तो क्या?
हम में और प्रेम में भी  
प्रेम,
वही प्रेम के हुंकार
जिसे ज़िन्दगी भर भरते हो
हम में भी मेल है, जो
न देख पाए तुम कभी
लो
बाध लो ये गूढ़ मंत्र :

है जब तक खुशबू
है जब तक मिठास
है जब तक आगाज़
है जब तक धेय्य
हैं हम कमली ...
वर्ना हम राह के मली ....

चिविंग गम को थूक कर जन्मा ये फलसफा.....हैं न यथार्थ .....

1 comment:

  1. chewing gum pe aapne aise line likhe hai jiska koi kawab nahi. keep it up.

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.