Oct 10, 2015

साही....

sahi in Hindi means Porcupine.... a story about a porcupine who helps us learn an important aspect of life.... read on...

हिमयुग की दास्ताँ है ये
हिमालय के किसी अंचल में
स्वेत सफ़ेद अंचल में
साहियों का बोलबाला था..
नुकीली, काटों भरी शरीर
मुशकों की मुखाकृति
जिंदादिल आवृति
लुढ़कते खेलते साहियों का परिवार
हँसते चहकते संगी साथी
श्वेत हिम के कानो को
गेंदों सा बाधते
एक दुसरे पर निशाना साधते, फेंकते
ज़िन्दगी हंसी, किलकारियों में गुजरती
फेंके हुए हिम के गोले
आ कर टकराते...
नुकीली पैनी कांटे ठंडी हिम को 
बाहर ही रोक लेती
शरीर छू ही नहीं पाते थे हिम.
कहीं कोई आक्रमण हो
पैनी काटे गिरा कर
या खुद काँटों को साध कर
बच बचा लेते....
साहियों का वो झुण्ड अलग था ..
हिमालय के गोद में
हिमयुग में, इनका बोलबोला था   
  
प्रकृति कब रुकती है, इम्तहान लेने से
खुशियों के आँगन में, खुद को प्रचंड कर
एक बार साहियों को अजमाने की सोची
वो माह हिमयुग का सबसे कठोर माह था
श्वेत हिम, बर्फ, ठंडी, 
और, प्रचंडता को ओढे बैठी प्रकृति। 
कठोर ठण्ड पड़ी थी उस माह
कई मौते हुई, ठण्ड की मार से
साहियों का दल भी अछूता न रहा..
बर्फ की मार से, ठण्ड के चपेट में
खुशियों में खेलते कई साही 
चपेट में आ गए
प्रकृति के इन्तेहा में कई साही हत्थे चढ़ गए...
सब समझ गए थे, 
वर्ष बड़ा कठोर होने वाला था....
इम्तहान अभी लम्बा और कठोर था ..
  
परेशा से कई युवक, जत्थों में बैठ, विचार में लग गए...
कुछ तो युक्ति होगी...कहीं तो कोई युक्ति होगी
विचार मिला, एक गहन मंथन के बाद.
जब तक शीत का प्रकोप है, तब तक,
    हर साही एक दुसरे से चिपक कर रहने की कोशिश करे
    शरीर की ताप से, हम एक दुसरे को गर्म रख सकेंगे....
    जब तक रक्त का प्रवाह रहेगा, गर्मी रहेगी,
    एक दुसरे के गर्मी से,  हम इस शीत को झेल सकेंगे...
युक्ति को सभी साहियों ने सराहा
जी पाने की शायद, 
यही अंतिम युक्ति लगी थी उन सभी को
प्रकृति की मार को झेलने की अंतिम युद्ध यही लगी थी सभी को ....

लग गए सभी युक्ति को भुनाने में
पर कहते हैं न, प्रकृति तो प्रकृति है
कभी नेहावारी, कभी चंचल, कभी सुखमय,
कभी नर्म, कभी कठोर, कभी अतिक्रामक
मुषकों के मुखाकृति वाले, 
काटों भरे इन नन्ही जीवों का
प्रकृति को हराने की उद्दम साहस, पराजीत होती दिखी
जब भी एक साही दुसरे से 
चिपकने की, 
पास आने की
कोशिश करता, शरीर पर लगे कांटे चुभ जाते
चुभन से वो घायल हो उठते, 
असहनीय पीड़ा से
बीलख-कराह कर 
छिटक कर दूर हो जाते
रक्त से रंजित शरीर मायूस हो पड़े

प्रकृति की मार अब सहनी ही पड़ेगी
ज़िन्दगी की अंतिम कठोरता सहनी ही पड़ेगी...
अब अंत पास था.....
शायद अब अंत पास था....
मान चुके थे अब...

नन्हे से थे, पर 
साहस अब भी उनमे जीवित था
रक्त रंजित उस युवक सही  में,
अब भी आशा का अब अभी प्रवाह था...
एक अंतिम आस से, 
उसने सब को बुलाया...
   गर, हम पास रहने की 
   एक बार और कोशीश करे
   दर्द को एक बार सह जाने की कोशिश करे,
   एक दुसरे को जींदा रखने की अंतिम कोशिश करे
   शायद हम जी सके, 
   प्रकृति के इस मार को अंगूठा दिखा सके...
कईयों ने अपने दर्द का हवाला दिया, पर
जीवित रह पाने का,
बस यही सहारा दिखा....

एक बार फिर खड़े हो उठे,
एक बार फिर लग गए,
एक दुसरे की शरीर के गर्माहट को पाने की
जीवित रह ज़िन्दगी जी जाने की कोशिश में लग गए 

कांटे चुभे,
रक्त बहा
आँखों से आंसू बहे
कराह उठे
ज़िन्दगी बस एक ही है
सोच कर सबकुछ सह गए...
एक बार का दर्द था
सह गए लहूलुहान हो सब सह गए 
एक दुसरे से मिल बैठे 
एक दुसरे की गर्माहट पाने लगे 

शीत की ठण्ड से भी 
ज्यादा गर्म थी..
एक दूजे की गर्माहट
जीवित हो उठे
जीवित रहने की ख़ुशी
अब आँखों में थी..
माह बदले
शीत गया...
साहियों का दल अब
एक दुसरे की काँटों को स्वीकार
ज़िन्दगी  जीने लगा था...
प्रकृति इस बार हार चुकी थी..

नन्हे से मुषकों ने
ज़िन्दगी जीने की 
एक सबक हमे दे गयी थी
अपने परिजनों के
अपने साथियों के
अपने प्रियजनों के
काँटों को स्वीकार कर
उनकी प्रेम
उनकी गर्माहट से
खुद को सींच
ज़िन्दगी को जी जाना ही तो
ज़िन्दगी जीने की परिभाषा है
उनके काँटों को स्वीकारना ही ज़िन्दगी का मूल है ....

Inspiration from the Book “Adultery” Written By Paulo Coelho, A Brazilian Writer  who explores the question of what it means to live life fully and happily, finding the balance between life's routine and the desire for something new.