Nov 30, 2014

मंटूवा अब बोलेगा...

ab Montu Bolega
आज चौपाल पहुचने में थोड़ी देर हुई थी, Indiblogger पर नयी विषय आई थी.   अब मोंटू बोलेगा.
http://www.abmontubolega.com/    ]
[ https://www.facebook.com/StrepsilsIndia ]
[ https://twitter.com/StrepsilsIndia

Strepsil की ज़ुबानी एक कहानी थी, एक इन्सान की जो बचपन से ही लोगों के खरासों से अपनी ज़िन्दगी की हर इच्छा को दबा जाता. बचपन में माँ बाप के खरासों में पेंटर बनने के सपने, गर्लफ्रेंड के खरासों में दोस्तों के साथ लम्बी ड्राईव की इच्छा दबा जाना या बॉस की खरासों में अपने साथी की मदद न कर पाना. खरासों से ज़िन्दगी दूसरों के इच्छा से चलती थी. फिर एक दिन उसके अन्दर की मोंटू ने आवाज़ लगायी. खरासों से उसने निजाद पायी. फिर क्या था सबकी सुनने वाला मोंटू खुश हुआ और उसने कसम खायी “अब मोंटू बोलेगा” #AbMontuBolega. विधि का विधान देखिये आज हमारे यहाँ भी मोंटूपर पंचायत लगी थी. पहुँच गया था मैं चौपाल.

चौपाल पर आज सबेरे से जमावड़ा था. गाँव में बहुत वर्षों बाद एक बार फिर पंचायत बैठने वाली थी. पुरे गाँव में दबी जुबान कुछ कानाफुसी चल रही थी. पंचायत जब बैठती तो एक अलग ही माहौल बन जाता. चौपाल पे कुर्सी सज  जाती. प्रधान चाचा कड़क मुछों में नज़र आते जैसे कलफ से मुछों को धो कर इस्त्री करवाया हो. तैयारी में सफ़ेद कुर्ते धोती को कलफ लगा कर इस्त्री करवाया जाता. आखिर रौब भी दिखाना पड़ता है. पंचों के यहाँ पहले से ही न्योता जाता. आज जमवाडा बढ़ने वाला था लगभग सभी घर से निकल कर चौपाल पे आ जाते. जब भीड़ बढ़ेगी तो चाय पानी के व्यवस्था में ददुआ चाचा की निकल पड़ती. अज काकी को भी दुकान पे ले आये थे. अकेले सँभलने वाला न था दुकान. गाँव भर के बच्चे चौपाल के अगल बगल ही उधम मचा रहे थे. हल्कू चाचा का बदमाश बेटा फिर से मोटी कुतीया के पूछ में टीन के डब्बे बाँध दिया था, और निकल पड़ी थी निक्कर में चिल्लर पार्टी कुतीया के पीछे पीछे, ताली बजाते शोर करते. आस पास से गुजर रहे बडे बुजुर्ग, झूठमुठ के डांटते उन्हें. मजा तो उन्हें भी आ रहा था, बच्चों के बदमाशियों में. पंचायत बैठती तो एक मेला सा लग जाता.

Nov 26, 2014

Lufthansa A380 – The dawn of a new era

Lufthansa… an Airlines which always caught my attention for its name. Somewhere in it’s name I
could proudly find reflections of India and its rich language: Sanskrit. A Language which is on verge of extinction from our daily life. Thanks but no thanks to English for its misery. It could be a long debate as what the word means. But a student of Sanskrit (or even Hindi) could explain it what it could be. It might have been derived from the two words of Sanskrit (the mother  of all Indian language); “Lupt” and “Hansa”. “Lupt” means “vanishing” in English while “Hansa” means a “Swan”, put together Luft-Hansa means a “Vanishing Swan”. A plane is like a bird or swan which slowly vanishes out of sight while it’s flying out of the ground. Logo of Lufthansa “Vanishing Swan” adds to  the meaning and I believed on this explanation of Lufthansa. There could be a good discussion on this but the fact remains that German Scholars did a lots of study and researched on Sanskrit and even explored it for the programming languages. Though we Indians do not respect much except reading the subject as a compulsion in school days.
 Why am I really explaining this? May be because I am Indian in heart and feel proud to see a connection somewhere.

Connection I  said??  #LufthansaA380 flight from Delhi to Germany !!! What a connection? From the Heart of India to Heart of Europe.

People in India says Delhi is for “people with Big Heart” (Dil walon ki Dilli). A heart to heart connection with a Big Boy flight Airbus A380, Excellent choice, Great connection. New Delhi Airport is an airport which is a “Beauty with a Brain”. The Delhi airport mesmerizes it’s traveler with its Beauty while it’s DNA woven with state of the Art technologies. With A380 landing on its ground, the motivation of the Airport Authority have  soared and they would love to repeat this success around the nation. The Indian Aviation world will change forever.

Nov 23, 2014

श्राद्ध ...

credits...
बाबा का श्राद्ध था आज
गुडिया उदास थी

सबेरे से ही
बाबा की श्राद्ध पर
ग़मगीन माहौल में भी
गरमागरम माहौल था,
बाबा के निर्स्वार्थ प्रेम का
लेखाजोखा
समेटने का माहौल था.

गुडिया के अम्मा ने तो
फरमान ही सुना डाला था
चाहे जो भी,
श्राद्ध गाँव के महंगे-लुटेरे
गबरू पंडित के
हाथों ही होगा,
बाबा ने बहुत पैसे उड़ाए थे
परिवार के लिए
श्राद्ध पर कुछ हम भी
खरच ले तो उन्हें
उस पार भी सुकून होगा.

महंगे खटिया, मेज़, कुर्सी,
लोटा, सिल्क की धोती - कुरता,
नायलॉन की बढ़िया जुराबें, 
ठंडी की शाल, बंडी, दुशाला
चमडे की जुत्ती,
बाटा की हवाई
पंडिताइन की सारी ब्लाउज
रे-बेन की सनग्लास
मोटी ग्लास का पावर चस्मा 
गबरुआ को श्राद्ध-दान में देने का,
अम्मा ने फरमान सुनाया.


बडे चाचा ने तो
अम्मा के हाँ में हाँ मिलाया
लिस्ट में सब कूछ जोड़ते हुए
बैतरनी पार करने के लिए
गबरुवा के साथ कुछ अपनी
सेटिंग भी लगा लिए
बछिया दान के लिए.
गबरुआ पंडित बछिया ले आयेंगे
बदले में पांच हज़ार
बछिया दान के ले जावेंगे
बाबा इस जहाँ से बैतरनी पार
बछिया के पुछ पकड़ कर जावेंगे 
गबरुआ और चाचा के बंडी में
हरे हरे नोट जायेंगे

मंटू भैया, सबसे बडे थे,
गुडिया के अब पिता से थे.
पुरे गाँव को न्योता बाँट आये
रंगिया शामियाने से
सफ़ेद शामियाना
बड़े मैदान में लगाने का
फरमान भी दे आये.
बाबा की श्राद्ध में
कोई कमी न हो,
गाँव में अपनी शाख में
कोई आंच  न हो
आदेश सख्ती से सुना आये.

सफ़ेद धोती कुरते में
आज भी भाभी की
पल्लू  थामे
बंटू भैया बाबा के श्राद्ध के
खान पान में जुडे थे
नियम की पूडी-बूंदीया के अलावा
पनीर कोफ्ता,
नवरतन कोरमा,
पुलाव, भात, पूरी,
मिठाई के अलावा
चाइनीज़ की भी व्यवस्था करवाई थी
बाबा के श्राद्ध में कोई खाना को
न दोष दे पाए
भाभी की  ऐसी ज़िद थी,
उनके नईहर से भी लोग आवेंगे
भैया को समझाई थी.

सभी अपने अपने काम से जुडे थे
गुडिया बाबा के यादों से जुडी थी,
परिवार मोहल्ले के लोगों ने
बहुत रुलाने की कोशीश की थी
गुडिया की आंसू अब तक
आँखों से ही जुडी थी
बाबा के गए तेरह दिन हो आये थे
एक बार भी बाबा के यादों में
गुडिया न रोई थी.
लोगों का कहना था,
गर न रोई ये
जल्द ही सदमे का
इलाज़ करवाना पड़ेगा
जबरदस्ती गुडिया को रुलाना पड़ेगा

नहीं, बाबा ऐसा नहीं कर सकते
कह वो बार बार बडबडाती
फिर मौन पड जाती
सोचती, आज अम्मा
बाबा के नाम पर 
इतना कुछ दिखावे के
दान कर रही हैं,
बाबा उनके संग
दो पल को तरसते थे
बाबा ने सिंदूर दान किया था, पर
अम्मा लिपस्टिक
साडी से मैच कर
ज़िन्दगी भर मांग संजोयी थी .
थक जब बाबा काम से घर आते
टीवी से चिपकी अम्मा
उठ कर भी न आती थी
पानी का ग्लास में
अपनी मुस्कान घोल
गुडिया ही तो पानी लाती थी
बाबा के अगोछा, कुरता, पजामा
सबेरे से इस्त्री रखती 
शाम तक बाबा आयेंगे
दिन भर राह तकती थी...

दोनों भैया को,
बाबा ने पूरब वाली
ज़मीन बेच शहर में पढाया था.
मुछों पे ताव दे
सारे मोहल्ले कहते
दो हाथों को उन्होंने खूब
मज़बूत बनाया है
शहर के अच्छे माहौल में
दोनों को शिक्षित बनाया है
मज़बूत जब दोनों बाहें हुई
कमज़ोर बाबा के कंधे हुए
बाबा के सपूत
शहर में ही घर कर गए
तंगी का बहाना कर
बाबा को बीमार गाँव में ही रख गए
खांसते, कमज़ोर बाबा की
सारी सेवा का जिम्मा
बिस्तर पर ही
गुडिया ने सम्भाला था

बाबा की लाडली थी वो
एक पल भी उन्होंने उसे
अकेले न छोड़ा था,
फिर क्यूँ बाबा की अंतिम पलों में
लोग उसे उनके पास रहने न दिया
बेटी होने का कारण बता
अंतिम क्रिया से उसे वंचित किया
बाबा की अंतिम इच्छा भी तो यही थी 
बेटे के रहते भी गुडिया के हाथों
मुखाग्नि की इच्छा उनकी प्रबल थी.

गुडिया पेशोपेश में थी,
बिन बात का आडम्बर
बिन बात का दान दिखावा 
से वो उदास थी.
बाबा ने अपनी ज़िन्दगी
परिवार को समर्पित की थी
परिवार ने कभी उन्हें उनकी
इज्जत न दी थी
फिर आज श्राद्ध में
एक ही प्रश्न उसे खा रही थी ...क्यूँ
ऐसा दिखावा?
अपने बाबा से वो पूछ रही थी
सहसा बाबा की वो कहानी याद आई
अंतिम के वो दो पंक्ति याद आई
जिसे कह बाबा खूब हँसते थे
गुडिया को बाँहों में ले खूब प्यार करते थे..

बाबा कहते थे...
जीयला पर दे ल गारी   (-जियाला = ज़िन्दगी, जिंदा रहने पर   | गारी= गाली)
मुअला पर लोटा थाली   (-मुअला = मरने पर )

गुडिया हंस उठी.....
हँसते हँसते वो रो पड़ी..
बहुत रोई.
ठीक ही कहते थे बाबा.....मुअला पर लोटा थाली


Nov 19, 2014

Sustainable Toilets for Babli?

 Narendra Modi jee’s initiatives of Swachha Bharat, Toilet facilities for all… there are so many of them now. Everyone individuals to Corporates, all have joined the wagon. Everyone wants to contribute their part. It has gained a popularity as good as freedom movement and this time its freedom from filth, freedom to live a dignified life. Much appreciated. While this initiative was kicked off lot many companies like Hindustan Unilever Limited ( HUL ) and others joined for the social cause. Like HUL had initiatives driven around it, profit sharing on the product sales (like Rs 5 contributed from each bottle of Domex), Awareness Initiatives, free installation of Junipani Toilets and so on. It’s incredible effort. http://www.hul.co.in/sustainable-living-2014/ . I appreciate the management of moving beyond Business and contributing its success to
Click for the Great Cause
community development. I have pledged myself to throw away the imported house cleaners with  bottles of Domex and have also clicked on the site to know more about it…why not do it…it’s for a great cause.

I hail from a village in Bihar and have spent many summer vacations. My grandfather was a small farmer and we had small earning and traded with grains (I can still remember traded a handful of wheat for a sweet in my child hood). Also, sadly I was among the “grand” society of people who defacated in fields, though it was not a compulsion, we had toilets even before my birth. I believe I strongly believe that I am fully aware of the reasons for not having a toilet, thanks to my frequent visits to villages.

Nov 18, 2014

फ्लावर वास ....

credits
ज़िन्दगी भी अजीब है, नन्ही नन्ही मर्तबानों में कई कई सवालों को छोड़ जाती है. कई बार चमचमाती हुई चांदी सी प्रतीत होती हैं. और कई बार अपने यार को घुप अँधेरे में छोड़ सवालों को गोद में छोड़ जाती हैं. चमचमाहट सिर्फ दिखावे की होती है पर अन्दर ही इसका गूढ़ छिपा होता है. मैं भी इन्ही सवालों में कई बार उलझा रहता हूँ कि  क्या मैं जी रहा हूँ?


कमरे के जीवंत कोने में
एक वास,
एक गुलदस्ता
फूलों से सजा
कई वर्षों से
उसी कोने में पड़ा है.

चमचमाता हुआ वो वास,
फूलों को संजोये
बहुत खुबसूरत लगता  
घर आने वाले मेहमान
निहारते और
खुबसूरती पर उसके
चंद अलफ़ाज़ जोड़ जाते.

आज,
न जाने क्यूँ
हमे भी निहारने का मन कर गया
पास से देखा,
उसकी चमचमाहट पर
धुल की कुछ परत आ गयी थी
पोछा,
तो जगमगाहट
कुछ और निखर आई..

नज़र फ्लावर वास के अन्दर पड़ी
अँधेरा सा था,
घूप अँधेरा,
रौशनी की कोई किरण न थी
लम्हे डाले तो थे
लम्हों को तो
कई बार संजो कर
यहाँ डाले तो थे.


कई बार तो आशाओं के रंगों में लपेट
लाल कागज़ से कई पल बाँध कर
इसी मर्तबान में डाले तो थे..
फिर क्यूँ?
ज़िन्दगी सी  इस वास में
सिर्फ अँधेरा ही है  
कहाँ गए वे लम्हे,
जिन्हें संजो के हमने डाले थे?

प्रश्नों के टेढ़े मेढ़े चिन्ह
ज़िन्दगी सी
अँधेरी वास के इर्द गिर्द हैं ...और
ज़िन्दगी , एक  घुप अँधेरे को थाम बैठी हैं ...