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दीदी की शादी हुई और विडियो भी हुई, न होती तो उन दिनों अपशकुन सा माना जाता. पहली बार विडियो के टेप वीसीआर में डाले गए और पूरा परिवार बैठ कर शादी की विडियो देखने लगे. फ्रेम बढ़ने लगे और कई मिनटों बाद हम खुद को देखे. सच पूछिये तो माँ से पूछना पड़ा कि थका हारा सा ये काले मुछ दाढ़ी में कौन है. झेंप सा गया था मैं माँ के हंसी पर. उस दिन, पहली बार एहसास हुआ कि आईने सच नहीं बोलते. हमे तो खुद पर बहुत गुमान था. आईना टूट गया था. शादी की टेप ख़तम भी नहीं हुई थी कि हम बाबा का रेज़र-ब्लेड हाथ में ले कर बाथरूम में, आईने के सामने खड़े थे. उसी दिन हमने ब्लेड को रेज़र के उपर पहली बार चढ़ाया था. ब्रश से साबुन घसे और रेज़र का परिचय दाढ़ी से करवा डाला. मुछों का निकलना अपशकुन माना जाता था, परिवार में. सो मूछें रही बहुत दिनों. कुछ दिनों बाद मूंछ भी मुड़वा लिए. अब फिर वैसा ही चिकना गाल और चिकना चेहरा दिखा जैसे वर्षों बाद हमने बचपन पा लिया हो.
रेज़र की मुलाक़ात अब रोज़ होती, दाढ़ी मुछों से. रोज़ रोज़ के काम में एक बोरियत का जन्म हो जाता है, वैसा मेरे संग होना कोई नयी बात न थी. पर अब थक गए थे इन मुलाकातों से. जगजीत सिंह साहब के साथ अपना परिचय हुआ और उनके ग़ज़ल बहने लगे. कहते हैं, बाथरूम में ही दुनिया के बड़े बड़े फलसफे लिखे गए हैं और हम एक ग़ज़ल न बना पाए ये कैसे हो सकता था. जगजीत साहब के गाने को तोडा-मोरोड़ा गया और एक नए शब्दावली से नयी ग़ज़ल बनी :
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
मगर मुझको लौटा दो, बचपन की बातें
वो कोरी सी गालें, वो नि-मुछै चेहरे.
ना दाढ़ी बनाना, न गाल कटाना
बिन बात के मुछों, पर हाथें फिराना
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
मगर मुझ को लौटा दो, बचपन की बातें
बड़े प्यार से, वर्षों हम यूँ ही गाते रहे. दाढ़ी बनाना अब एक जरूरत सी बन गयी थी. ऊपर से, मन में हिन भाव ने जन्म लिया. लडकियों को खुदा ने कितने चाव से बनाया है, खूबसूरती भर-भर कर दे दी. हम कहानीकार और कवियों ने उनके प्रशंसा में कई रचना सुना डाले. अब उनके पास जुल्फें हैं, जब चाहे बाँध लिया, कटवा लिया, रंग लिया. नर्म गालों और सुर्ख होठों पर कलमे पढ़े, तो गालों को चमकाने के लिए रंग, फैसियल, थ्रेडिंग अदि का भी ईजाद हो गया. हमे देखिये, बाल लम्बा नहीं रख सकते, गाल पर दाढ़ी के बड़े बड़े खड्डे दिखते, जितना चाहो चमका लो, मुनिसिपलिटी के रास्तों के तरह खड्डे बने ही रहेंगे. मर मिटा के हमारे पास मुछ और दाढ़ी के साथ खेलने के अलावा और कुछ नहीं बचा. मन बना लिया कि अब इनसे ही खेलेंगे हम भी. अब दाढ़ी बनाने नाई के दुकान पर जाने लगे. नाई भी ससुरा कहता कि आज दाढ़ी सेटिंग कर दिए हैं आपके डिजाईन से, हर दो दिन बाद चले आईयेगा. बगली में पर्स टटोला, तो देखा बहुत खर्च है. कड़की में आटा गीली हुई नहीं की फिर शेविंग कर लेते सफाचट वाली.
सिलसिला यूँ ही चलता रहा. कुछ वर्ष पहले मुलाकात हुई उनसे और बस पद गए प्रेम में. देखने में बड़ी हसीन थी, क्या घुमाव था शरीर में, क्या बनावट थी. शरीर की छुवन से मन आगाज़ कर उठता कुछ नया करने को, छू ले तो कंपकपी से सिरहन उठ जाए बदन में. उनसे सिलसिला प्रेम का यूँ चला कि जब चाहा नत्थूलाल और जब चाह बच्चन साहब जब चाह सलमान खान. मन के मर्ज़ी हो गए. कहते हैं न की जब प्यार होता है, तो सीना चालीस का और पीठ लकड़ी सा सीधा हो जाता है. यूँ कहिये नए कॉन्फिडेंस का जन्म हुआ हम में. अब तो लड़कियों के मुलाकात हो या बॉस की आवाज़ हो. तन के खड़े हो जाते कॉन्फिडेंस से. फिर क्या था एक नया रूप आया हम में. अरे हाँ आप पूछेंगे की प्यार हुई और ये नयी लडकियां कहाँ से आ गयी? चलिए बता ही देते हैं, Gillete के शेविंग रेजर Gillette Fusion Shaving Razor से प्यार हुआ. रेज़र की बनावट बड़ी गज़ब की है , vibrator की कंपकपी दाढ़ी बनाने में मदद देता, multi-bladeसे दाढ़ी को दुबारा नहीं काटना पड़ता. माथे पर टीका की तरह एक खुबसूरत सी ब्लेड होती है, इनसे प्यार कुछ ज्यादा ही हो गया था. यही तो हमे कठिन से कठिन कोनो में भी हाथ फिर देते तो वो साफ हो जाती. अब जैसा डिजाईन हो वैसे ही बनाने में और रखरखाव में मदद मिलने लगा. अब सलमान की क्लीन शेविंग हो या बच्चन साहब की फ्रेंचकट या नत्थुराम की मूछें.. कोई परवाह नहीं मैडम जी हैं न मदद को... Gillette Fusion Shaving Razor जी. http://gillette.com/en-us/products/razor-blades/fusion-razors/fusion-power-razor
अब प्यार करने का जी चाहता हैं....गाना बदल गया है....मूछें ट्रिमड और दाढ़ी घटती बढाती हैं....
Thanks Gillette ....
बहुत सही
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