प्रेरणा:
पेशावर में स्कूल के बच्चों पर हुए नरसंहार, हम सभी को झिंझोर गयी. इसके तुरंत बाद सियासत के दावेदारों
का कानून बदल कर मौत की सजा सुनाना, नए नए नियमों का लागु करना, चौंकती है . सियासत का एलान करना कि 500 लोगों को मौत की सजा सुनाई जाएगी, सभी आतंकवादीयों का संहार होगा. क्या उनके वर्दी को आज ठेस पहुची है? कल तक, जब एक मासूम की हत्या होती थी, आप कहाँ थे? आज जब खुद के परिजन मारे गए हैं, हर आतंकवादी का पता आपको कहाँ से मिल गया है? ये सब आप राष्ट्र हित में कर रहे हैं या कोई रिवेंज लेने की तैयारी कर रहे हैं. असुर का निर्माण तो सियासत के चौपड़ खेलने वालों ने, आप खुद ने की है, तो आज दिखावा क्यूँ? रिवेंज क्यूँ? आतंकी भी इंसान ही होते हैं, कुछ को बरगला कर, कुछ को ठग कर, कुछ को लालच से खरीद कर, कुछ को धर्म के नाम पर बहका कर, तो कुछ को मौत के बाद का संसार दिखा कर, इन्सानों से हैवान बनाया जाता है. कहीं न कहीं इनके तार सियासत से जुडी होती है. मरने और मारने वाले आतंकी तो प्यादे होते हैं. उन पर सियासत करने वाले तो सुरक्षा से घीरे, भोग विलास में तृप्त होते हैं. आतंकियों को जन्म तो सियासत के दोगले करते हैं. तो फिर आतंकी कौन हुआ? ये आज दिखावा क्यूँ?.
कुछ ज्ञान:
जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दूँ. बिहार, उत्तरप्रदेश के गांवो में, मुसहर शब्द प्रचलित है. मुसहर एक कुनबा है, जो खेतों में चूहे मारने में दक्ष होते हैं. इसी से इनके कुनबे का नाम पड़ा. जब धान की रोपाई होती है तो गीले मिट्टी में चूहे बिल बना कर रहने लगते हैं. कभी कभी तो एक फसल के दौरान ही, चूहों की संख्या महामारी सी बढ़ जातती हैं. चूहे फसलों को नुक्सान पहुचाते हैं. जब धान की कटाई हो जाती है, तो ये चूहे धान के बालियों को चुरा चुरा के अपने बिल में इक्कट्ठा करते हैं. कभी कभी तो एक एक बिल से पांच-पांच किलो तक धान मिलती है. मुसहर भी कटाई तक इंतज़ार करते हैं. फिर उन चूहों को ढूंढ ढूंढ कर मारते हैं और उनके बिलों को खोद कर धान निकाल लेते हैं. ये धान खाने के लिए उपयुक्त होता है और उस पर खेत के मालिक का कोई दावा नहीं होता. सो मुसहर चूहे की मांस और धान का भरपूर आनंद उठाते हैं.
रचना:
मुशकों यानि चूहों को आतंकी के प्रतिक में, मुसहर को सियासतदारों के प्रतिक में चिन्हित कर यह रचना, आतंकी चेहरे के दुसरे पहलू को दर्शाती है. आशा है पसंद आएगी.... सुना है मुसहर आयें हैं ...
for indiblogger…. #PeshawarAttack
शर्राफे के गाँव में,
सुना है
मुसहर आये हैं.
खेतों में,
अधियारे बिलों में
मुशकों में
अफरा-तफरी है..
अनायास,
मुसहरों के खबर से
माहौल गर्म है.
सब तरफ
एक ही गूंज है
मुसहर आये हैं....
एक ही सवाल:
सुना है, मुसहर आये हैं?
फ़ज़लू मूषक, डरा डरा सा
पैनी दांतों से
नए बिल बना रहा है.
बिल के अन्दर ही और,
नए बिल खोद रहा है
धान के दानों को
नए बिलों में छिपा रहा है..
परिवार के लिए
अनाज का गोदाम
बिल में ही बना रहा है.
बडबडा रहा है
ये मुसहर फिर आये हैं...
फ़ज़लू की बड़ी बिटिया,
साईबा,
जो अब, जिहादी की बेवा है
चार बच्चों संग
नईहर आई थी
अपने बच्चों के खातिर
ससुराल छोड़ आई थी.
पेट में पल रहे बच्चे से
फुसफुसाती है
विध्वंस की खबर आई है
सुना है, मुसहर आये हैं...
तेरे जन्म हो पाने पर,
सवालिया चिन्ह लगाये हैं..
नन्ही सी सबीहा, जिसने
पिछले साल से ही
रोज़ा रखा था
काबे की तरफ रुख कर
माँ से आयतें सीख
नमाज़ पढ़ना सीखा था...
आँखों में आंसू भरे
सोच रही थी
सादाब से निकाह के बाद
गीली मेहँदी का रंग
ठीक से खिला भी न था
सबीहा को सादाब से
रुखसत होना होगा
अब्बा ने कहा है
सादाब को शहीदी के लिए
तैयार होना होगा
सुना है, मुसहर आये हैं
इकबाल बड़ा काबिल था
बिल बनाने में माहिर था
मस्तमौला,
जीवन से भरा मूषक
सभी बिलों का प्यारा था
अगल बगल के खेतों की
चुहिया भी देख कर आहें भरती
उस पर मर मिटने को तरसती..
अब्बा ने उसे आज
पुराने बिल में
सहादत के नाम पर
मर-मिटने को बिठा दिया है
कुरान और मुनके को
कल से इकबाल ने छुवा भी न था
मन में कई सवाल थे
पर मासूम के पास
कोई जवाब न थे
सुना है उसने भी,
मुसहर आये हैं...
पास के मस्जिद के
मूषक मौला
बिलों में मची
हडकंप को भांप
खेतों में आये थे
धर्मरक्षा के लिए
ईश्वर के आराधना के लिए
बलिदान के पथ पर
निकल पड़ने को
आह्वान कर गए थे.
शांत मन को बरगला
सहादत को उकसा गए थे
उस दिन,
नन्हे कबीर को
बड़ी मार पड़ी थी
मौला से, जो उसने
पुछ लिया था,
अल्लाह के सबसे प्यारे
तो मौला चाचा आप हैं
मस्जिद्द के मौला भी आप है
फिर आप क्यूँ नहीं
खुद की बलि देते ?
सहादत पर तो पहले
आपका हक है....
नन्हे कबीर ने भी अब्बा से ही
सुना था कि मुसहर आये हैं.
हाँ, मुसहर आये हैं,
कल ही तो
कई नन्ही ताबूत
अपने कन्धों पर
मुसहर ने उठाये थे
नन्ही ताबूतों का
भार उनपर, आज भी था..
नन्ही ताबूतों से रिस
खून के कई बूंदें,
काँधे से फिसल
वर्दी में आ लगी थी
कुछ बूंदें तो
शरीर भी भीगा गयी थी
कुछ नन्ही ताबूतों में
उनके अपनों की खुशबू भी थी..
उन्ही सुर्ख दागभरे
वर्दी को साफ़ करने
साबल कुदालों छड़ियों को
चमकाते मुसहर आये हैं
अब
फिर, एक संहार होगा
फिर, कुछ घर बिखरेंगे
फिर, कई अनाथों का जन्म होगा
फिर, कई मासूम बिलखेंगे
फिर, कई सुहागनें बेवा बनेंगी
फिर, कई मोहरे मिटेंगे
फिर, नए मोहरे बनेंगे
सियासत के चौपड़ पर
खुनी खेल का नया रंग बंधेगा .
फिर, नए दाव सजेंगे
फिर, नए मोहरे बनेंगे
फिर मुसहर आयेंगे .....
क्रम यूँ ही बनेगा
सियासत के नाम फिर
कई प्यादों का बलिदान होगा
सुना है मुसहर आयें हैं
सुना है फिर मुसहर आयें है
इंसानों का मोल क्या बस एक प्यादे सा है कि धर्म के नाम पर, इतिहास के नाम पर, कुर्सी के नाम पर कौड़ियों के मोल ख़रीदे जाते हैं. ईस्तमाल कर फेंक दिया जाता है. सत्ता के नाम पर इंसान का मोल क्या बस कौड़ियों जैसी ही है? जब चाहे मार दिया जब चाहे फेंक दिया गया.... इंसानियत कहाँ छोड़ आये हैं हम इन्सान....सियासत करने वाले अब बंद करें हैवानियत....
Note: I do not intend to hurt any caste, religion or Religious Sentiments…I respect all religion, respect humanity. i do not agree with any acts of terrorism or sympathize any terrorist.. I strongly condemn the same.
पेशावर में स्कूल के बच्चों पर हुए नरसंहार, हम सभी को झिंझोर गयी. इसके तुरंत बाद सियासत के दावेदारों
picture credit |
कुछ ज्ञान:
जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दूँ. बिहार, उत्तरप्रदेश के गांवो में, मुसहर शब्द प्रचलित है. मुसहर एक कुनबा है, जो खेतों में चूहे मारने में दक्ष होते हैं. इसी से इनके कुनबे का नाम पड़ा. जब धान की रोपाई होती है तो गीले मिट्टी में चूहे बिल बना कर रहने लगते हैं. कभी कभी तो एक फसल के दौरान ही, चूहों की संख्या महामारी सी बढ़ जातती हैं. चूहे फसलों को नुक्सान पहुचाते हैं. जब धान की कटाई हो जाती है, तो ये चूहे धान के बालियों को चुरा चुरा के अपने बिल में इक्कट्ठा करते हैं. कभी कभी तो एक एक बिल से पांच-पांच किलो तक धान मिलती है. मुसहर भी कटाई तक इंतज़ार करते हैं. फिर उन चूहों को ढूंढ ढूंढ कर मारते हैं और उनके बिलों को खोद कर धान निकाल लेते हैं. ये धान खाने के लिए उपयुक्त होता है और उस पर खेत के मालिक का कोई दावा नहीं होता. सो मुसहर चूहे की मांस और धान का भरपूर आनंद उठाते हैं.
रचना:
मुशकों यानि चूहों को आतंकी के प्रतिक में, मुसहर को सियासतदारों के प्रतिक में चिन्हित कर यह रचना, आतंकी चेहरे के दुसरे पहलू को दर्शाती है. आशा है पसंद आएगी.... सुना है मुसहर आयें हैं ...
for indiblogger…. #PeshawarAttack
शर्राफे के गाँव में,
सुना है
मुसहर आये हैं.
खेतों में,
अधियारे बिलों में
मुशकों में
अफरा-तफरी है..
अनायास,
मुसहरों के खबर से
माहौल गर्म है.
सब तरफ
एक ही गूंज है
मुसहर आये हैं....
एक ही सवाल:
सुना है, मुसहर आये हैं?
फ़ज़लू मूषक, डरा डरा सा
पैनी दांतों से
नए बिल बना रहा है.
बिल के अन्दर ही और,
नए बिल खोद रहा है
धान के दानों को
नए बिलों में छिपा रहा है..
परिवार के लिए
अनाज का गोदाम
बिल में ही बना रहा है.
बडबडा रहा है
ये मुसहर फिर आये हैं...
फ़ज़लू की बड़ी बिटिया,
साईबा,
जो अब, जिहादी की बेवा है
चार बच्चों संग
नईहर आई थी
अपने बच्चों के खातिर
ससुराल छोड़ आई थी.
पेट में पल रहे बच्चे से
फुसफुसाती है
विध्वंस की खबर आई है
सुना है, मुसहर आये हैं...
तेरे जन्म हो पाने पर,
सवालिया चिन्ह लगाये हैं..
नन्ही सी सबीहा, जिसने
पिछले साल से ही
रोज़ा रखा था
काबे की तरफ रुख कर
माँ से आयतें सीख
नमाज़ पढ़ना सीखा था...
आँखों में आंसू भरे
सोच रही थी
सादाब से निकाह के बाद
गीली मेहँदी का रंग
ठीक से खिला भी न था
सबीहा को सादाब से
रुखसत होना होगा
अब्बा ने कहा है
सादाब को शहीदी के लिए
तैयार होना होगा
सुना है, मुसहर आये हैं
इकबाल बड़ा काबिल था
बिल बनाने में माहिर था
मस्तमौला,
जीवन से भरा मूषक
सभी बिलों का प्यारा था
अगल बगल के खेतों की
चुहिया भी देख कर आहें भरती
उस पर मर मिटने को तरसती..
अब्बा ने उसे आज
पुराने बिल में
सहादत के नाम पर
मर-मिटने को बिठा दिया है
कुरान और मुनके को
कल से इकबाल ने छुवा भी न था
मन में कई सवाल थे
पर मासूम के पास
कोई जवाब न थे
सुना है उसने भी,
मुसहर आये हैं...
पास के मस्जिद के
मूषक मौला
बिलों में मची
हडकंप को भांप
खेतों में आये थे
धर्मरक्षा के लिए
ईश्वर के आराधना के लिए
बलिदान के पथ पर
निकल पड़ने को
आह्वान कर गए थे.
शांत मन को बरगला
सहादत को उकसा गए थे
उस दिन,
नन्हे कबीर को
बड़ी मार पड़ी थी
मौला से, जो उसने
पुछ लिया था,
अल्लाह के सबसे प्यारे
तो मौला चाचा आप हैं
मस्जिद्द के मौला भी आप है
फिर आप क्यूँ नहीं
खुद की बलि देते ?
सहादत पर तो पहले
आपका हक है....
नन्हे कबीर ने भी अब्बा से ही
सुना था कि मुसहर आये हैं.
हाँ, मुसहर आये हैं,
कल ही तो
कई नन्ही ताबूत
अपने कन्धों पर
मुसहर ने उठाये थे
नन्ही ताबूतों का
भार उनपर, आज भी था..
नन्ही ताबूतों से रिस
खून के कई बूंदें,
काँधे से फिसल
वर्दी में आ लगी थी
कुछ बूंदें तो
शरीर भी भीगा गयी थी
कुछ नन्ही ताबूतों में
उनके अपनों की खुशबू भी थी..
उन्ही सुर्ख दागभरे
वर्दी को साफ़ करने
साबल कुदालों छड़ियों को
चमकाते मुसहर आये हैं
अब
फिर, एक संहार होगा
फिर, कुछ घर बिखरेंगे
फिर, कई अनाथों का जन्म होगा
फिर, कई मासूम बिलखेंगे
फिर, कई सुहागनें बेवा बनेंगी
फिर, कई मोहरे मिटेंगे
फिर, नए मोहरे बनेंगे
सियासत के चौपड़ पर
खुनी खेल का नया रंग बंधेगा .
फिर, नए दाव सजेंगे
फिर, नए मोहरे बनेंगे
फिर मुसहर आयेंगे .....
क्रम यूँ ही बनेगा
सियासत के नाम फिर
कई प्यादों का बलिदान होगा
सुना है मुसहर आयें हैं
सुना है फिर मुसहर आयें है
इंसानों का मोल क्या बस एक प्यादे सा है कि धर्म के नाम पर, इतिहास के नाम पर, कुर्सी के नाम पर कौड़ियों के मोल ख़रीदे जाते हैं. ईस्तमाल कर फेंक दिया जाता है. सत्ता के नाम पर इंसान का मोल क्या बस कौड़ियों जैसी ही है? जब चाहे मार दिया जब चाहे फेंक दिया गया.... इंसानियत कहाँ छोड़ आये हैं हम इन्सान....सियासत करने वाले अब बंद करें हैवानियत....
Note: I do not intend to hurt any caste, religion or Religious Sentiments…I respect all religion, respect humanity. i do not agree with any acts of terrorism or sympathize any terrorist.. I strongly condemn the same.
No comments:
Post a Comment
लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.