Dec 27, 2011

निष्क्रिय होते शब्द


कभी कभी प्रेरणा नहीं मिलती कुछ लिख जाने की तों हम कुछ लिख ही नहीं पाते ...पर उस वक्त शायद शब्द भी रूठे होते हैं ..वैसे ही एक असमंजश की हालात में पड़ा..शब्दों को धुन्दने की कोशिस कर कुछ लिखने की कोशिस करता में... कुछ अपनी हालात  यूँ लिख गया ....
शब्द आज शुस्त थे
निष्क्रिय
निष्कर्म
निश्वाश से
बिखरे पड़े थे

कुछ शब्द
रेतों में छिपे थे
कुछ टीले के मुंडेर में अलसाये थे
कुछ इर्द गिर्द आवारा बन घूम रहे थे
पर कोई न था
हमसे मिलने के तह में

विचारों कि वेग से
उन्हें बुलाता
आते वो
छू कर मुझे
वापस चले जाते

थक आहर कर मैंने जब
उन्हें दांत लगायी
तों सब उमड़ आये
विद्रोह मन में लिए
सब घुमड़ पड़े..

सह्बदों ने फिर
अपनी व्यथा सुनाई
सुन व्यथा को उनके
मन सिहर पड़ा

जब भी हम शब्द
तुम्हरे दिल में जन्म ले
ज़हन से उतर
पन्नों में आते थे
पन्नों से निकल हम फिर
अपनी जीवन जी लेते थे


पन्नों से निकल कर हम
कभी लबों में सजते थे
कभी कारे जुल्फों के लटों में झूलते
कभी  गाल के तीलों में छुपते
कभी आँखों के कजरे से सजते
आंसुओं कि मोती में हम नहाते
तों कभी हाथों के मेहँदी में सज जाते

जब थक जाते यूँ छुप्पन छुपाई से
नर्म से अंगों में उनके सो जाते
एक एक पल हम यूँ जीते
बोझिल सी निंदिया में भी हम
कई कई बार जग उठते

कभी वो नर्म सी उँगलियों से हमे टटोलती
आहिस्ते से हमे सहलाती
आनंदविभोर हो हम हर पल जी आते
आन्द्विभोर कर हम
नयी शब्दों के साथ
नयी छंदों के साथ वापस आते
हर पल कितना कुछ जी पाते

पर आज न हमे वो छूती हैं
न टटोलती हैं
न नर्म से तन के सेज पर
हमे सुलाती हैं
न मेहँदी में सजाने की
चाह है उनमे
न लटों में झुलाने की
न लबों में सजाने की
चाह है उनमे

प्रेयसी ने तुमसे मुह यूँ मोड़ा है
सजा हमे भी दे डाला है
क्यूँ चाहते हो हमे फिर अपने
तीन शब्दों में सजने को
क्यूँ चाहते हो अन्यथा दौडने को
जन्म तों हमारी तुम से होती है
और मौत भी बिन जिए तुमपे ही होती है
क्यूँ हमे फिर छंदों में सजाते हो ..
किसके लिए हमे यूँ जिलाते हो

शब्दों के शब्द में
पड़ी एक सच्चाई थी
पर रूठी अपनी [प्रेयसी को
न मन पाने की
मज़बूरी भी हमारी थी
बिखरे अपने रिश्ते को
न सजा पाने की कमजोरी भी हमारी थी

मजबूर हुआ में
सुन इन शबदों के दलीलों को
बेबश सा मै, रेतो में फिसलते शब्दों
को देखता रहा
शब्दों का विद्रोह देख
३-शब्दों में न बंधते देख
अब सोचता हूँ कहीं
इन शब्दों की लय टूट न जाय
सजती अब ये शब्द ठहर न जाए
निष्क्रिय हो आज
शब्द फिर छूट न जाए

निष्क्रिय हो आज शब्द फिर सुप्त न हो जाए ................


आशु.... शब्दों के खोज में ....


 

Dec 26, 2011

नाता से नत बधिह




कभी कभी मन इतना व्याकुल हो जाता है जब रिश्तों से आघात पहुंचाता है.. एक आघात के बाद मन इतना टूट जता है की दुःख से मन ऐसा ही सोचता होगा. ये रचना मेरे मातृभाषा भोजपुरी मैं है..दूसरी रचना है मेरी भोजपुरी मे, पहली एक खत थी जो बहुत ही प्रिय है और अप्रकशित है और रहेगी. एक कोशिश... बोझिल मन से    डोम भोजपुरी में चंडाल को कहते हैं....



नाता से नत बधिह

पइह जब देहवा हमार
बंसवा से जब बधिह
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह

खिच’ब जब हमरा के
आपन काधा से खिचिह
सब काधा तू खोजीह
लेकिन नाता मे नत खोजिह

जरयिबा जब हमरा के
सब जगह्वा से
अगिया मंगिहा
नाता से नत मंगिहा

सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह

का कही काहे रोयिला
का कही काहे कहिला
कुफूत पडल बा देह मे जब जब
नाता सब भागल बा तब तब

माँई हमरा सरापे ले  तब
भाई हमरा कुफुत कहेले
दिदिया के का बात कही
हमरा छोड़ सबे साथ रहेले

कह ना तू रे डोमवा
कवन नाता से बाधी अपना के
काहे बाधी हम अईसन नाता
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह

अतना तू करिहा, रे डोमवा
हथवा के न बंधिहा
एक बार जोड़े हथवा
माफ़ी ओहसे मांगे तू दिह

नत मुन्दिह मोतिया हमार रे डोमवा
नत पोछिह तू लोरवा
एक बार ओहे देखे खातिर
खुलल रखीह अंखिया

सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह
रे डोमवा नाता से नत बधिह.............


26/12/11

Dec 22, 2011

रूठे हैं मौला

जब प्यार को किसी हालात से खो देते हैं तों न ही सजदा सूझता है न ही पूजा... प्रेम ही धर्म लगता है और प्यार ही पूजा...
एक कोशिश....






ना मंदिर मे दीप जली
ना बजी है घंटी कोई
ना सजदे मे हाथ जुड़े
ना झुका  हैं माथा

ना मैं जाता मंदिर कोई
ना कोई मस्जिद काबा
ना मैं हिंदू ना मैं मुस्लिम
ना मैं ठहरा सीख ईसाई

नास्तिक नहीं मैं
हूँ मैं आस्तिक  
मैं भी जन्मा एक पुजारी
करता मैं भी पूजा

प्रेम मेरा है सजदा पूजा
प्रेम हैं मंदिर काबा
प्रेम की ही वंदन मैं करता
प्रेम की ही पूजा

फंसा   भंवर मे
बिखरी कस्ती
छुट गयी है मेरी कस्ती
छोड़ गया मैं पाला

छोड़ आया खुदा को हमने
रूठ गया सब जग सारा
रूठे गए हैं खुदा भी हमसे
भूले हैं हमे मौला

किन हाथों से सजदा पाऊ
कैसे दीप और घंट बजाऊ
रूठे हैं मौला जब मेरे
कैसे उनको मैं मनावु...  




Dec 21, 2011

क्यूँ तेरी तलाश है

आज भी क्यूँ तेरी तलाश है
आज भी क्यूँ तेरी आश है
आज भी कीउन तू एक प्यास है
क्यूँ मुझे आज भी तेरी तलाश है

क्यूँ धुन्दता हूँ ख्वाबों से निकल कर
सिसकती तकियों के गिलाफों पे तुझे
क्यूँ धुन्दता हूँ नर्म चादरों मैं
न बने उन तनहा टेडी मेढ़ी सिलवटों मैं

क्यूँ धुन्दता हूँ बिस्तर की सुनी कोने मैं
क्यूँ धुन्दता हूँ खली चाय की प्याले मैं.
क्यूँ भीग्गना चाहता है मन जुल्फों से निकले उन बूंदों मैं

क्यूँ खोजता हूँ मैं उँगलियों मैं तेरी उंगलिया
क्यूँ धुन्दता हूँ पायल की वो छान छान
क्यूँ चाहता है मन आज होठों से होठों को चुराने को

सुनी पड़ी है क्यूँ आज यह शमा
क्यूँ धुन्दता है आगोश मैं
सजाने को तुम्हे आज मेरा मनन
क्यूँ धुन्दता है तुझे मनन
क्यूँ तरसता है तुम्हे पाने

खो गयी क्यूँ आज मेरी मुस्कराहट
धुंद रही हो जैसे तेरी मुस्कराहट
कहाँ खो गयी है खनखनाती वे हसी
क्यूँ धुंद रहा आज मैं अपनी खुसी

क्यूँ तलाशता मैं आज भी....
जब जनता हूँ तुम मेरे साथ हो फिर भी
अनजाने से इस भीड़ मैं तुम ही तो मेरे साथ होऊ
फिर क्यूँ तलाशता मैं आज भी....
क्यूँ तरसता है मनन आज भी


sorry for spellings...will correct soon

Dec 19, 2011

लटकती तलवार

Inspired from a poem by ZIN…..I love her a lot..



हम हमेशा से कहते हैं कि जिंदगी दो धारी तलवार के नीचे टिकी है ...गिरी नहीं कि जीवन समाप्त..उसी दो धारी तलवार से एक बार मुलाकात हुई ..शब्दों के ताने बाने से सजी ये मुलाकात.......





शुन्य  सी अधियारे मे
शांत  मन से
लटकती तलवार से मुलाकात हुई ...
पुछा जब मैंने उनसे
क्यूं हर वक्त,
सूत की कमजोर धागों  से बंधी
जीवन के बोझ  से दबी
 हमारी नाज़ुक कपाल पर
लटकती रहती हो?

डरावनी सी डर बन कर
हर वक्त क्यूँ डरती रहती हो?
दो धारी शरीर को अपने
तेज से खूबसूरती झलकाती
खूबसूरत बला तों हो
फिर हमे हर पल डरती क्यूँ हो?
जीवन का ये बोझ क्या कम है
जो तुम भी हम पर
लटक पल पल डराती हो ?


रुखसत हुई, कहा नादान हो
क्या तुम पागल हो?
जीवन-अर्थ कि समझ  नहीं तुम्हे?
हमारी साथ को देखो
हमारी मोल को समझो
हमारी रूप से न डरो
दो धारी शकल से भय न करो
हमे जब समझोगे तभी
हमसे प्यार कर पावोगे.
वर्ना जिंदगी भर यूँही
हमसे डरते रह जाओगे  

ढूंढो हमे
समझो हमे
प्यार हमसे करो
वो समझती गयी, सुनाती गयी
सुनो अब तुम समझो अब तुम
जिंदगी के पलों को
जब भी तुमने पाया है
एक हरकत से काट हमने ही
झोले मैं तेरे डाला है.

जन्मे थे जब तुम
ईश्वर के अंग से काट हमने
माँ के ममता भरी आँचल मे   
पीता के स्नेह भरे गोद मे
मैने ही तुम्हे पहुँचाया है
उँगलियों को थाम जब
चलने की  सीख तुमने सीखी थी
धारा के गिरफ्त से हमने ही
अपने तेज धारों से छुडाया था

पेड़ की छावं मे
प्रेमिका की उँगलियों से
अपनी उँगलियों को पिरोये
जब जब बाँहों मे उसे
तुमने थामा था
हजारों आत्माओं के भीड़ से
तेरी प्रेमिका को हमने अपने
इन्ही लंबी बाँहों से ढूंड निकाला था
सुनी पड़ी तुम्हारी तन्हाई को
जिंदगी से हमने ही मिलाया था
मैंने ही अँधेरे से तेरे पलों को
अनगिनत रंगों से सजा डाला था

जहाँ भी ढूँढोगे हमे मौजूद पावोगे
रिश्तों मे,  नातों मे
सूख मे  दुःख मे
हार हो या जीत मे
मेरे होने का एहसास पावोगे
जो भी, जब भी, जिसे भी
तुम्हारी ईछावों ने चाहा है
ईश्वर की चाह से
किस्मत के इज़ाज़त से
हमने ही उन्हें काट के दिलाया है

बात मे दम थी
तलवार की कथनी मे जोर थी
मैं सुनता गया
दलीलें मानता गया
मूक सा बन सुनता ही गया..
पर अचानक कुछ सोच,
ठिठुर सा गया
उसे झूठलाने की
उसे शिकश्त देने की
बहाने धुन्दता गया
कहीं तों होगी जहाँ ये
पैनी अपनी धार से हमे मरेगी
कभी तों रक्तिम कर
दुःख पहुंचायेगी



मुस्कुरा कर हमने कहा तलवार से,
अंत काल जब आएगा
तब तों तुम हमे मरोगी
लटकती हुई तुम
हम पर आवोगी
उस पल तों हम तड़प जायेंगे
जीत कर उस दिन तों तुम
अट्टहास कर पवोगी
उस पल ये बहलाने वाले
बहाने कहाँ सुना पवोगी.

तलवार भी कहाँ मानाने वाली थी
हंस पड़ी मुझ पर एक तेज से
लहरा उठी ...नादान हो कितने तुम
नासमझ हो आज भी तुम,
इतने पलों के बाद
इतनी परवरिश के बाद
कोई भी कैसे किसी को
दुःख पहुँचा पायेगा?
नादान सुन एक बार फिर ध्यान से
आखरी पल मैं तों
हमारी आखरी भेंट होती हैं  
तुम्हारे इस नश्वर शारीर से
आखरी मुलाकात होती हैं

हमारी लंबी लंबी बाहें
और पैनी मेरी धार सब मिल
तुम्हारे नश्वर जर्जर शारीर से विदा लेते हैं
काल के आग्रह पर हम
तुम्हे तुम्हारे नश्वर शरीर से
हम तुम्हे तुमसे विदा देते हैं..
ये तों हम हैं कि तुम्हे
इस कठोर, दुखो से परिपूर्ण
जीवन रूपी सजा से
आजाद करा जातें हैं
पवित्र पावन आत्मा को
धरा से मुक्त कर
ईश्वर कि आत्मा मैं
विलीन कराते हैं

ईश्वर कि आत्मा मैं  तुम्हे विलीन कराते हैं
फिर कैसे  हम तुम पर लटक तुम्हे डराते हैं
फिर कैसे  हम तुम पर लटक तुम्हे डराते हैं

written a year back ...........