Dec 9, 2013

अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ...

अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ...


अलसाई अलसाई सी सुबह
गर्म भरी प्याली भर चाय...
उनके बाँहों में सर छिपा
अंतिम आलस की विदाई...
प्रातः वेला की, अभिवादन भरा
मुस्कान सह नर्म चुम्बन...
आसों से भरे इस प्याली को छोड़
अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ...
  
चिंची-पोपो करती गाड़ियाँ
भागमभाग भागते लोग
धडधडाती भागती रेलगाड़ियाँ
कर्णभेदक शोरों में खुद भगाता मैं
कभी द्रव्य, तो कभी मुद्रा
तो कभी आश्रय से जूझता...
इन अनंत अकान्क्षावों की पोटली त्याग
अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ...   


मोह के जालो में जलता
रिश्तों के बाँध में बंधा
कमज़ोर, अहंकारी,
भय तृषित रिश्तों में उलझा
कसमसाहट से अधीर हो उठ
रिश्तों के बिनी जालों को तोड़,
स्वछन्द हो
अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ...


कहाँ?
किस दिशा में?
किन के संग?
नहीं, अभी सोचा नहीं...
बस, अब मैं निकल पड़ना चाहता हूँ,
आस से परे..
सपनों से दूर..
द्रव्य मुद्रावों के मोह से विमुख
रिश्तों के बंधन से उन्मुक्त

एक ऐसे जहाँ में जहाँ
सर टिकाने के लिए प्रकृति की गोद हो
सूर्य की किरणों से पहली आलिंगन हो
हवाओं से प्रथम चुम्बन का एहसास हो
पत्तों पर खेलते ओस के बूंदों की खनक हो
बढ़ते कदमों में कोई न व्यवधान हो
मंजिल तक पहुँचने की न कोई होड़ हो
ऐसे ही किसी जहाँ में
अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ


अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ …………………   desperate to live a few days with myself… 

2 comments:

  1. swachand udne ki ashaa liye
    janam leti ashaoun ko pankh diye
    bhar lo ab udaan..
    paloo ge tum wo swabhiman
    jo rownd chuke ho....janmoo pehle
    or huye ho aaj akele

    na ker tue ab bhay
    ker himmat ka sanchay
    ho ab nirbhay
    ker tu nischay

    bhar le ab ye udan tu
    paale khudmain khud ko tu
    ye zingai ab kabhi na ayegi
    jo kerna hai kerle aaj tue
    bhar le aaj UDAAN tue
    Haan bharle aaj UDAAN tue................

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  2. एक ऐसे जहाँ में जहाँ
    सर टिकाने के लिए प्रकृति की गोद हो
    सूर्य की किरणों से पहली आलिंगन हो
    हवाओं से प्रथम चुम्बन का एहसास हो
    पत्तों पर खेलते ओस के बूंदों की खनक हो
    बढ़ते कदमों में कोई न व्यवधान हो
    मंजिल तक पहुँचने की न कोई होड़ हो
    ऐसे ही किसी जहाँ में
    अब, मैं निकल पड़ना चाहता हूँ

    acchha bahut acchaa.. likhte rahiye, bhawo ko jinda rakhiye..

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.