Mar 13, 2012

चौपाल पर बाबा

चौपाल पर जब आज आया तों देखा बड़ी रौनक थी. ददुआ चाचा, सुखिया काकी, गंभीरा भाई, नयनतारा भाभी, बंगाली दादा और तो और मुथुआ भी आज चौपाल. गाँव उमड़ पड़ा था. हमे लगा कि हामी नहीं पहुंचे. अरे मिनीया और सुधाकर चाचा भी. खुद ही खुद पुछ बैठे कि हम काहे नहीं थे. थोडा इधर उधर तांक झाँक की तों पता चला चौपाल पर एक बाबा आये हुए थे. माजरा समझ आया अब काहे सब पधारे हुए हैं. ज्ञान जो पाना था. बाबा कों देखा बड़े ज्ञानी लग रहे थे. चेहरे पर शांत भाव, घुंघराले लंबे बाल, दाढ़ी बढ़ी हुई बात करते वक्त हिलने लगती. गेरुआ वस्त्र भी पहने होंगे सोचा पर ये क्या बड़े निराले है. एक सफ़ेद टी-शर्ट और लेविस के वोर्न आउट जींस, बगल में कैमरे कि स्ट्रिप और पास में ही एक होंडा कि बाईक. विस्मित हों सोचने लगे कि ये बाबा जैसे तों दिखते नहीं, फिर इतना माहौल क्यूँ बना? कोहनी मार के बंगाली दादा कों पूछे “ई का दादा, ई तों बाबा तों कहीं से नहीं लग रहे, तों इतना जमात किस बात की? और कौन हैं जो इतना भाव दिया जा रहा है?” बोलने लगे दादा “अरे इनका नाम तों निशान्तो है...” हम टोके “दादा निशांत होगा दादा निशान्तो नहीं”. दादा बोले :”हाँ हाँ एकी कोथा हाय. जानो बोहुत पोढा लिखा हाय इंजिनियर हाय. किछु दुखो हुआ सोब किछु छाड के बाईक ले कर निकोल गए. बोलते हैं कैमरा से फोटू तुलेगे आर दुनिया घूमेंगे. जिधार मों कोरेगा उधर घूमेंगे. लोगों से मिलेंगे नीजेर माफिक थाकेंगे. कोथा सुनो ना बोहुत भालो भाभे बुझाता हाय. इंगरेजी बोलता है हिंदी आर तों आर बंगाली भी जनता हाय”. बड़ी रोचक से बाबा लगे..निशांत बाबा...
इतने में ददुआ चाचा कि आवाज़ सुनाई दी. “अरे निशांत बबुआ, (बाबा नहीं बुलाने का आदेश दिया था), मुहवा से तों बड़े शांत स्वभाव के हों तों नाम निशांत क्यूँ रख दिया माँई बाबु जी ने” निशांत बोले “ अरे नहीं काका, अईसन कवनो बात नहीं है, हमार नाम तों कुछ्हो आवुर रखे थे. हमी कों पसंद आया ई नाम “निशांत”. जानते हों काका ई निशांत का मतलब का होत है “ निशा का अंत” यानी कि “सूर्योदय”. और लगे जोर से हँसने और कहने लगे- “हम कवनो दिन किसी के लिए भी सूर्योदय नहीं बन पाए. और मन बड़ा अशांत रहता था उन दिनों. कहीं झगडा तों कहीं रिश्ता ले कर नोक झोंक. सो हम अपना नामे बदल दिए लिखने लगे –“नी: शांत”..शांत ना हों ऐसा –नी:शांत”. और जोड़ जोड़ से हसने लगे. “अरे काका मनवा शांत नहीं कर सके कभी – जिंदगी अशान्त ही रही, तभी ना नौकरी, घर बार सब छोड़ आये. निकल गए हैं शांति खोजने. अब देखों ना काका ना खिट पिटाने कों कोई है ना अशांत करने कों. अब सबसे मिलते हैं दू चार बात कर लेते हैं लोगों से मन हल्का होए जात है. शुकुन हैं मन. हाँ भगौड़ा भी कह लीजिए चाहे तों. का फरक पडत है. हम तों खुश हैं ना.” सांस लेने के लिए दो पल रुके नहीं कि सुखिया चाची काहे चुप रहती. पटाक से पूछ बैठी “ कवन धरम के हव बवुआ?” कहने लगे “अरे काकी ककाहे कवन धरम के. जनम भयिल त बाबा कहले कि तू हिंदू हवे. टा मान लिहनिं. बड भईनी त प्रेम में पड़ गईनी आवुर हुए धरम हों गईल. अब इहे धरम से सुखी बानी”. मन में आया वाह क्या बात है. ईश्क यदि धर्म हों जाए तों राम के नाम पर, मस्जिद के नाम पर झगडा ही नहीं हों बात में दम था. इतने में कहीं से एक अँगरेज़ भी भटकते आ गयी थी. जीभ कों जलेबी सा मरोंरते, घुमाते अंग्रेजी में बोल पड़ी-“Mr Nishant, there are almost one god every 10 people in India. In US we have only one God –Jesus and everyone prays to Him. What you say one this?” निशांत बोल उठे, बोले भी तों अंग्रेजी में-“ Madam when you have problems you look for specialist. Right? When AC Break down you go to AC Technician, When you have problem with Money you look for banking specialist, when feel hungry you look for chefs…Right? If you agree to this then when it comes to resolving on your personal issues and want to cling to someone, why only look to a Single God. We have this flexibility for choosing specialist. And since all our Gods belong to one fraternity, they have only one CEO. We also have ONE at the TOP like you have one JESUS. I hope you agree” निरुत्तर अंग्रेजन मूक सा देखने लगी..और बाबा लगे समझाने का ई अंग्रेज़न पूछी हमारी जबान में. बात खतम हुई तों स्साब जोर से हँसने लगे. कोई बोल उठा “बड़ा बढ़िया समझाए”. बातें बनती गयी. हर एक सवाल का जवाब था बाबा के पास.
मिनीया भी बैठी थी. थोड़ी उदास रह रही थी कुछ दिनों से. कवनो रिश्ता टुटा था उसका. सुधाकर काका बारम्बार कोहनी मार के कह रहे थे..पूछ ले रे थोडा मनवा शांत हों जाए कवन ठिकाना. उदास हों संगमरमरी दांत छुपाते, उदास आँख के चमकावत पूछ ही ली. “निशांत जी, रिश्ते टूटते क्यूँ हैं?” बाबा थोड़े गंभीर हों उठे मौन बनाये रखा. हमे लगा ले बेटा अब फंसा. इसका क्या जवाब देंगे ये.मौन रहे कुछ देर और फिर बोलने लगे “अरे मिनी नाम हैं ना तुम्हारा? मुस्कुराना सीखो. मुस्कुराती हुई अच्छी लगती होगी तुम. घबरावो नहीं. रिश्ते कभी टूटते नहीं हैं. रिश्ते तों प्रेम का नाम है. प्रघाड प्रेम से ही रिश्तों का जनम होता है. अब देखो, जब लोग अजनबी होते हैं तों कोई रिश्तेवाली नाम नहीं पड़ते, थोडा प्रेम बढ़ा तों दोस्त, और बढ़ा तों गर्लफ्रेंड/बोयफ़्रेंड, फिर फियाँसे, पति-पत्नी, बाबा-माँ...और प्रेम एक ही है पर, देखो नाम बदलते जाते हैं. एक टुटा तों एक कदम पीछे एक और टुटा एक कदम और पीछे. प्रेम होनी चाहिए तों रिश्ते बने रहते हैं. प्रेम नहीं तों अजनबी बन गए. रिश्ते कभी भी टूटते नहीं. रिश्तों के मायने बदल जाते हैं ...क्यूँ घबड़ाती है? मायने गर बदल जाते हैं तों रिश्तों के नाम बदल लेने चाहिए. क्यूंकि हर रिश्ता कहीं ना कहीं खुशी के लम्हों के बूंद अपने जीवन में छिपा जाता है जो कभी ना कभी खुशियों कि बरसात दे जाती हैं. और आपने कई लम्हे जीए हैं हर रिश्ते के संग. रिश्ते गर मुक्कमल नहीं होते तों टूटने नहीं चाहिए. दोस्ती का वो पल जो एक पहल थी रिश्ते कि शुरुआत की वो कभी नहीं टूटती.” बात में दम थी मैं भी सोचने लगा. मन कहने लगा कि निशांत बाबा का कहना भी ठीक है कि जब रिश्ते कि नींव दोस्ती होती है तों इमारत ढह भी जाए तों नींव नहीं ढहती. मुस्कुराने लगी मिनीया. हाँ मुस्कुराती है तों गाल में गड्ढे और संगमरमरी दांत बाहर निकल आते. अरे हाँ संगमरमरी दांत क्यूँ सोच रहे होंगे. कुछ दांतों के ऊपर हलके भूरे निशाँ थे, जो गाँव के मनचले संगमरमर से तुलना करते. छनके से चहक उठी मिनिया, पटाक से दूसरा सवाल दाग उठी. “निशांत जी, रिश्ते कों ले कर सोचना कहाँ से चाहिए? दिल से ? या दिमाग से?” निशांत दिल खोल कर हँसने लगे. “ देख मिनिया, यदि ध्यान से देखोगी संरचना दिल और दिमाग की. दिमाग ये ऊपर खोपड़ी में बंद है. खोपड़ी के अंदर लचर पचर है दिमाग. अब दिमाग कों देखोगी तों दिमाग एक नारियल के सामान हुआ- कडा गोल. ठोंक बजा कर देखोगी तों टनटन आवाज़ आएगी. हाँ, अडिग सा, कडा सा, पत्थर सा. अब रिश्ते जैसे नाजुक मसले पर दिमाग से सोचोगी तों पत्थर सा जवाब मिलेगा. हाँ अब दिल कों देखो, कितना प्यारा सा रूप है, जीवन सा धड़कता रहता है, छुवो तों नर्म नर्म सा, महसूस करो तों एहसासों सा गरम गरम. अब रिश्तों की नजाकत कों दिल से जोड़ेंगी और सोचेंगी तों जीवन सा हल मिलेगा.. रिश्ते की बात हों तों दिल जो चाहे वही करों नहीं, तों पत्थर के निचे पटक पटक कर मार डालो. और हाँ जब भी जो पल मिले किसी रिश्ते से मिले तों जी लो. अब निश्चय तुम्हे करनी है जैसा चाहो कर लो, जिंदगी तुम्हारी है.” मीनिया फिर गंभीर मुद्रा धारण कर उठी थी....निशांत बाबा उठे अपनी जगह से और कहने लगे बड़ा मजा आया इस चौपाल पर. बहुत बातें हुई. फिर जिंदगी ने मौका दिया तों आ जाएंगे इस चौपाल पे. चले काका, ये चाची ददुआ चाचा के तनी लाड कम जताव. तोंद फेकता. ये ददुआ चाचा बड़ी निमन चाय रहे हो, पईसवा ना ले ल, ठीक ना भईल, ये मीनिया सोच मत रे इतना, सुधाकर चाचा, देखिह मिनीया के, अरे दादा बोउ दी के बोलबे इलिश खेते आश्बो...” बोलते गए सबके नाम बोल बोल कर. मीनिया कों देख आँख मारी मुस्कुराये, और आई पोड पे जगजीत सिंह का गाना चला कर, साथ जोर जोर से गुनगुनाते निकल पड़े :
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते
,

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन,
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
,



१४/२/१२.....तेरे इन्तेज़ार मैं

3 comments:

  1. घर-गांव बराबर मौजूद है पोस्ट में। वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा दिया जाये न कमेंट बक्से से।

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  2. शायद पसंद आया ये पोस्ट भी आपको...

    ना जाने कहाँ से वो हमारे संग आ गई,
    हर मेहमान के आने का पहचान माँग गयी
    .. चलिए इस वर्ड-वेरिफिकेशन हटा डाला.बेकार में पहचान मांगती थी .. यूं ही आते रहिये ...हौसला बढते जाएगा....शुक्रिया

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  3. शायद पसंद आया ये पोस्ट भी आपको...

    ना जाने कहाँ से वो हमारे संग आ गई,
    हर मेहमान के आने का पहचान माँग गयी
    .. चलिए इस वर्ड-वेरिफिकेशन हटा डाला.बेकार में पहचान मांगती थी .. यूं ही आते रहिये ...हौसला बढते जाएगा....शुक्रिया

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.