Dec 18, 2014

की फर्क पेंदा है : गर नन्हें फरिस्तों का खून हुआ है

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एक और दहसत..... देखते-देखते नन्हे नन्हे बचों को खून कर दिया गया. दहसत के चौपाल पर फिर चर्चे हुए होंगे. लोगों ने जश्न मनाई होगी. कोई एक मुखिया खड़ा हो कर इनकी बलिदानी पर इश्वर का शुक्र अदा किया होगा. ढेर हुए आतंकी को शूरवीर का खिताब दे कर ईश्वर के राह पर चलने  को  एक उदहारण सा दिखाया होगा. मुखिया के किसी मुखिया ने किसी की तिजोरी भरी होगी. आम इन्सान इंसानियत के मौत से डर कर इश्वर की प्रार्थना की होगी, कुछ लोगों ने मोमबत्ती  जला  कर शांति पूजन की होगी, कुछ लोगों ने सोसल मिडिया में अपना विरोध जताया होगा. ऐसा ही कुछ हमारे देश में हुआ था... निर्भया की मौत पर भी यही काण्ड हुआ था... उस वक़्त भी मैंने एक ही बात कही थी : “ क्या हुआ गर रेप हुआ : की फर्क पेंदा है?(Read more...) क्या हुआ, कुछ नहीं बदला,  दो साल बाद भी....

आज भी वही प्रतिक्रिया है  “की फर्क पेंदा है?"
कब तक चलेगा ये दहसत का नंगा नाच.....  

की फर्क पेंदा है
गर
नन्हें फरिस्तों का खून हुआ है
नन्हे अरमानों का
दिन दहाड़े खून हुआ है

की फर्क पेंदा है
गर
नन्हे नन्हे बस्ते ले कर
तालीम लेते मासूम फरिस्तों का
पेशावर में खून हुआ है

की फर्क पेंदा है?
गर
बारूद की बौछौरों में
आज  फिर,
माँ के एक बेटे का
आतंकी नाम हुआ है

की फर्क पेंदा है?
गर
मस्जिद के आजान में
दहसत की  दुकान संजोये
मुल्ला
अल्लाह से दूर हुआ है

की फर्क पेंदा है?
गर
नन्हें फरिस्तों का खून हुआ है

की फर्क पेंदा है
तुम्हे
सियासत करने वालों?
तेल की बाज़ारों में
देश के मान
बार बार है तुमने बेचा.
सत्ता के
कुर्सी की खातिर
इतिहास के पन्नों
को है बेबात तुमने छेड़ा

की फर्क पेंदा है
तुम्हे
सियासत करने वालों?
कुर्सी के मोह में
दहसत की है
राजनीती तुमने
माँ के कई दुलारों को
बहका
आतंक राह पर
है भेजी तुमने....
     की फर्क पेंदा है
     तुम्हे
     सियासत करने  वालों

बस, अब बहुत हुआ...
बंद करो
ये सियासी दंगे
बंद करो
ये स्वार्थी पंगे
इन्सानों को इंसानों सा
जीने का माहौल
दिलाओ
अपनी माँ के दूध का
एक बार...सिर्फ एक बार
तो मान बढाओ.

बस, अब बहुत हुआ..
बंद करो मासूमों का बलिदान....बंद करो अब....

इन्सानों को इन्सान सा जीने का माहौल बंद हुए इतिहास के पन्नों को खुरचने से, पडोसी के घर दंगों से, जबरदस्ती धर्म के नाम पर दहसत फ़ैलाने के नहीं बदलेगा. शर्म करो सियासात करने वालो....एक बार तुम्हे भी ईश्वर के सामने पेश होना है....
शर्म करो....



#PESHAWARATTACK

9 comments:

  1. Hope the souls rest in peace. The verbatim story shared by TOI makes me feel sick of the mental cruelty the terrorists had. They wanted to show the soldiers the feeling when someone dear to them die. I have criticized soldiers attack on terrorists families as well. These incidents only forces me to say - RIP Humanity.

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    1. Do we deserved to be called Humans when we act like barbarians? a few souls have disgraced the race.....
      I echo with you : RIP Humanity..

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  2. फर्क तो पड़ता है , कोई ऐसे भी न जाये दुनिया से .....
    जो पत्थर हैं उन्हें शायद फर्क न पड़ता हो .....

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    1. चंद सिक्कों के खातिर,
      खुद को, बच्चों को, अपने देश तक को
      बेच गए वो...
      वो पत्थर नहीं तो और क्या हैं...
      गीली सुर्ख कराहती रक्तों के बूंद भी
      न भीगा पायी उनको...
      वो पत्थर नहीं तो क्या है...

      सब सियासत है...
      इस्लाम,
      इतिहास
      सब सस्त्र हैं
      सियासत में बने रहने का..

      पत्थर ही तो हैं जिन्होंने मासूम तन धरा पर गिराए थे..

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  3. Your blog post has been featured in this week's Spicy Saturday Picks at BlogAdda. You can check it out here - http://adda.at/spicy20-12

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  4. आशु जी, सही है आज ह्म कुछ हद तक संवेदनहीन हो रहे है . हमे ज़्यादा फ़र्क नही पड़ता पता है क्यों? क्योंकि उन हादसों मे हमारा अपना कोई नही है . लेकिन फिर भी अब हमे फ़र्क पड़ने लगा है इस बात का सबूत यह है कि घटना पाकिस्तान की है फिर भी भारत के लोगों को, सारी दुनिया को उससे पीड़ा पहुँची! इससे यही साबित होता है की इंसानियत आज भी जिंदा है .

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    1. शुक्रिया ज्योति जी इस post को पढने के लिए...
      मैं मानता हूँ की हम संवेदनशील हो रहे हैं और इंसानियत अब भी जिंदा है. सवाल तो बस ये है की सियासी चौपड़ खेलने वाले ये ताकतवर इंसान, क्या इन्हें फर्क पड़ता हैं..नन्ही ताबूतों के भार से उनके कंधे झुकते हैं? आतंकी अपने बलबूते पे निर्दयी नहीं बनता, कभी धन, कभी धर्म, कभी इतिहास दिखा कर इनके समझ को गलाया जाता है, तब ही ऐसे निर्दयी कामों को अंजाम दे जाते हैं.... इनके पीछे कुछ ताकतवर इन्सान अपने मंसूबे संजोये इन्हें कमज़ोर करते रहते हैं...वरना कायरों सा काम तो एक स्वस्थ दिमाग नहीं कर सकता..... आतंकी भी इंसान होते हैं...बस एक कमज़ोर मनस्थिति वाले लोग....सियासी चौपड़ खेलने वाले लोगों को, कोई फर्क पड़ता है.....??? सवाल हमारा यहीं है.......

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    2. एक और रचना है आतंकी के मनस्थिति पर...गौर फरमाईयेगा.... सुना है मुसहर आये हैं : http://chaupal-ashu.blogspot.com/2014/12/blog-post_51.html

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