Yoghurt Parfait |
सबेरे सबेरे चौपाल पर
पंहुचा, और ददुआ चाचा से चाय की एक फरमान लगायी. ददुआ चाचा ने चाय की गरम ग्लास
पकडाई तो मेरी नज़र उनके मुस्कुराहट पर पड़ी. मुस्कराहट से झुर्री भरी चेहरे कर कई नए लाइन भर
आई थी. उनकी चाय की तरह ही चेहरे पर आज अदरकी मुस्कान थी. थोड़ी तेज़ थोड़ी, शरारत भरी.
आँखों के भवों को नचाते हुए, बिन कुछ कहे पूछ रहे थे, कि क्यूँ मियां, क्या चल रहा
है. ददुआ चाचा ऐसे तो न थे, इतनी शरारत!! पूछ ही बैठा “क्या चाचा, बडे मुस्कुरा
रहे हैं. बात क्या है?” ददुआ चाचा ने मंद मंद मुस्कुराते, चाय के चासनी में
चक्रवात पैदा करते आहिस्ते से पूछ ही लिया “क्यों म़ियाँ, बड़े गुप्ता जी के घर नाश्ते
किये जा रहे हैं आजकल?” ददुआ चाचा को आज क्या हुआ बडे रोमानी हो रहे हैं. आजतक तो
ऐसी बात नहीं छेड़ी थी. गुप्ता जी की बात छेड़ते ही, यूँ लगा जैसे भावनाओं की सुनामी
उठ आई थी. ये क्या पूछ लिया था ददुआ चाचा ने? गुप्ता जी महीने भर पहले ही गाँव में
आये थे, यहीं पास के शहर से तबादला हुआ था. पूरी परिवार बड़ी मिलनसार थी. गाँव के
लोगों में अपना स्थान बड़ी जल्दी बना लिया था. मिसेज गुप्ता बिलकुल आधुनिक ख्यालों
वाली थी, न पर्दा न घूँघट. कॉर्नफ़्लेक्स के दाने सी खनखनाती हंसी, पॉपकॉर्न से फडफड़ाती जिंदादिली, भुट्टे सी छरहरी मिसेज गुप्ता, कई
अरमानों को जनम दे जाती. समोसे के परत से कुरमुरी मिसेज गुप्ता पर दिन में कई बार
दिल आ जाता. कहते हैं न, मर्द के ज़िन्दगी में एक सिक्का होता है, जिस के दो पहलू
होते हैं, हेड और टेल. टेल पर हमेशा उस सिक्के की पहचान एक नंबर में लिखी होती है
जो बदलता नहीं और हेड बदलते रहती है. अपने सिक्के में, टेल वाली चेहरे पर, भरीपूरी,
शर्माती, सकुचाति, चिल्लाती, परेशानियों से घिरी, सूती के साड़ी में लिपटी घरवाली
होती हैं. ज़माना कितना भी बदल जाए टेल के चेहरे से शिकन नहीं हटता. सिक्के के हेड
पर गाँव की छरहरी, मुस्कान बिखेरती,
जिंदादिली को समेटे, सलवार कमीज़ में खुद तराशे, हंसी के खनखनाहट से भरी पड़ोसन की
छाप इंगित होती है. जमाना बदलता है, सिक्के पर से हेड बदलता है. भले सिक्के के टेल
से सिक्के की पहचान होती है, पर हेड की बात हमेशा पहले ही होती है. मिसेज गुप्ता
आज हमारी सिक्के की हेड थी, कई बार शादी के रिकॉर्ड पर रिवाईंड बटन दबा कर अपने टेल
को हेड से बदलने की कोशिश भी की थी, पर कल्पना तो बस कल्पना ही होती है. सहसा
जन्मे इस सुनामी को समेट ही रहा था कि ददुआ चाचा की नकली खखारने की आवाज़ से मोह
भंग हुआ. देखा तो ददुआ चाचा अदरक कूट रहे थे पर अदरक के रस आज चेहरे से जा ही नहीं
थे.
“अरे नहीं चाचा, ऐसा
कुछ नहीं है, बस गुप्ता जी के परिवार बड़ी मिलनसार है. बहुत कुछ सिखने सिखाने को
मिलता है. बच्चे भी बडे प्यारे हैं. सो आना जाना थोडा चलते रहता है.” अपने रूमानी
तबियत को थोडा छिपाते, ददुआ चाचा को कहा. “मिसेज गुप्ता बहुत बढ़िया खाना बनती है
चाचा, एक दो आईटम आप भी सीख लो. दूकान पर बनावोगे तो अच्छी चलेगी. अरे आजकल तो
सेहत के पीछे चलने की बुखार आई है. ये नए लौंडे, लौंडियों को तेल के समोसे अच्छे
नहीं लगते, ओट के कटलेट, कोर्न्फ्लाके की भुजिया पसंद आती है. हमने तो चखा भी है, सीखा
भी हैं. बड़ी अच्छी बनाती है. कटलेट सीख लो, कम तेल में Kellogg's Oatmeal की जो करारी कटलेट बनाते हैं, बनारसी कॉर्न मटर,
नखरेवाला नाश्ता, ये तीन आईटम तो आप यहाँ
भी दूकान में बना सकते हो. नए खून वाले लौंडे हों या गाँव के बुजुर्ग, सभी को पसंद
आएगा..” चाचा की अदरखी मुस्कान की जवाब अपने ज्ञान और नसीहत से दे, कर चाय की
अंतिम चुस्की ली और निकल पड़ा घर को.
चप्पल समेटते निकल
पड़ा, आज कुछ नए उत्साह था, आज फिर मिसेज गुप्ता के यहाँ नाश्ते पर दावत थी. हमे
बताया था कि बड़ी सेहतमंद नाश्ता है. और, हमारे डायबिटिक के लिए तो बहुत ही
फायदेमंद. उनका मेरे तबियत पर चिंता व्यक्त करना बड़ा अच्छा लगता है, रब झूठ न
बुलवाए. सोचा चलो इसी बहाने ही सही नाश्ते की दावत भी उडा लेंगे और उसको बनाने का
तरीका भी सीख लेंगे. आखिर अपनी टेल को भी कुछ सेहतभरी खाना बनाने और खाने की नसीहत
दे देंगे. चल रहा था तो “Yoghurt Parafait” सीखने की उत्सुकता चाल में झलक रही थी.
छरहरे ग्लास में दही, ताज़े फल, स्ट्रावेरी के लालिमा के संग KellogMuesli के
नाश्ते को चखने की उत्साह ग्लास से निकल निकल कर आ रही थी. ग्लास की झलक रोमानी मन
को कुछ और तरीके से जोड़ रही थी..... अब ये न पूछिये किस से??
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.