Mar 15, 2015

मूल....

पूजा,
अराधना
ईज्ज़त,
आदर,
सत्कार,
मोहब्बत,
घृणा,
ज़िद,
हंसा,
रोया,
चिल्लाया,
उपहास की,  
उजाड़ा उसे

सब कुछ
लगभग
सबकुछ कर
देख लिया था
मैंने
ज़िन्दगी : हमे समझ न आई.

अब
समझने की व्यर्थ कोशिश त्याग चूका हूँ
बस जी रहा हूँ....
ज़िन्दगी के संग
समझ गया हूँ.. व्यर्थ है इसे समझने की कोशिश

एक ही मूल है : ज़िन्दगी है, संग जीए जाओ....

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.