Credits : ParaGliding |
लहरों का दूर दूर से वेग
भरे आना और समुन्दर के तटों से टकरा कर बिखर जाना, लहरों का तट पर आ कर रेत को
भीगा जाना. बिखरते भीगते इस मंज़र पर भीगे रेत पर लेटे
घंटों समुन्दर का शोर सुनना मुझे बहुत ही पसंद था. ठंडी हवाओं का बह कर बदन छू जाना,
मुझे भरी धुप में भी रोमांचित कर जाती हैं. बंद आँखों से इन नजारों में खुद को
डूबा जाना, आसमान पर परिंदों का अठखेलियाँ करते देख सवाल उठता “हम इन्सान क्यूँ
है?” परिंदों को देखो, नन्ही सी जान, एक गंतव्य से दुसरे गंतव्य तक बिना किसी
सहारे, बिना किसी बंधन, स्वछंद मन से उड़ती जाती हैं. कितना स्वछंद हैं. आसमान में उड़ते
ये परिंदे, आसमान से ऊँची घमंड रखने वाले इन्सानों को, कितने छोटे, कितने बंधे,
कितने जमीन से गडे देखते होंगे. सोचता था काश मैं भी कभी इन परिंदों सा स्वछंद
आसमान में उड़ पाता.
अरमानों की कोई सीमा नहीं
थी. पहली मजिल से नीचे देख, भयभीत होने वाले इन्सान के अरमानों के सूचि देख
हंसी आती थी. डर लगता था ऊँचाई से हमे; सो, उड़ान भर पाने की कोई आशा संजोयी नहीं
थी कभी भी. कुछ महीने पहले की ही तो बात थी, भीगे रेत पर लेटे अपने दस साल के बेटे
के साथ आसमान के परिंदों को देख रहा था. बीच-बीच में मोटरबोट की आवाज़ से नज़र हटती
और आसमान पर पैरा सेलिंग करते, रंग-बिरंगे पैराशूट पर लटक कर उड़ते इन्सानों को परिंदों
से रेस लगाते देखते. “लिटिल मॉन्स्टर” अपने बेटे को यही बुलाता था “कितना मजा आता
होगा न उड़ने में?” दस साल के उम्र में, उसके माँ ने खुद सा निडर बना डाला था. उसे
रफ़्तार से, ऊँचाई से, समुन्द्र में नहाने से भी डर नहीं लगता. ठीक, हमसे विपरीत था
मेरा “लिटिल मॉन्स्टर”. हँसते हुए कहा था "आप क्यूँ नहीं कोशिश करते एक बार. एक बार
उड़ कर तो देखिये. बहुत मजा आता है. Let’s fly #together.” ये बात नयी नहीं थी हम दोनों में. हर बार हम सरदर्द, पेट दर्द का बहाना बना कर
टाल देते थे. बेटे के सामने कमजोर जो नहीं दिखना था. “ऊँचाई से डर लगता
हैं”, सच्चाई कह दी हमने, बहाने बनाने की कोई इच्छा नहीं थी. बहुत जोर से हंसा था वो. हँस-हँस कर माँ के
पास दौड़ कर सुना आया. डर अब तक उसने महसूस नहीं किआ किया था.
कहते हैं, कि एक उम्र आने पर
बच्चे अपने बड़ों के मार्गदर्शक बन जाते हैं. हाथ थाम कर, बेटे ने मासूमियत से कहा : “Let’s Go Dad . We will fly #together. हम दोनों एक साथ उड़ेंगे, तो आपको डर नहीं लगेगा.” मुस्कुरा कर पूछा था, हमने, “सच पापा?”. ऐसा लगा
कि अचानक बेटा बड़ा हो गया है. हिम्मत जुटाई और हामी भर दी. सोचा, आज उड़ने की कोशिश कर ही लिया
जाए. पहुंच गए काउंटर. डरपोक लोगों के पास तो बहाने कई होते हैं. पत्नी से कहा “नहीं जा रहा हूँ इसके साथ, क्यूंकि एक साथ तीन लोगों के लिए जगह नहीं होगी". बेटा, मैं और उस दूकान का
असिस्टेंस जो पैराशूट को आसमान पर संभालता. “कोई नहीं, आप एक पर उड़िए और, मैं दूसरे पर. मैं पहले उडूँगा, फिर बाद में आप. You will feel
we are flying #together. आपको डर नहीं लगेगा”. बेटे ने हँस कर कहा. पत्नी, जो अब तक चुपचाप हंसी थामे देख रही
थी, कहा “आईडिया अच्छा है. Just Go and Fly #together. we are #together with you today. Trust this moment.”
हिम्मत जुटाई और सेफ्टी
बेल्ट पहन लिए . पहले बेटा उड़ा, फिर मेरी बारी आई. कांपते हाथ, कांपता पैर, सुखे होंठ, रुँधा गला , आंखें बंद कर, भगवान का नाम जपते कदम बढ़ा दिए. मोटरबोट की आवाज़ बढ़ी, हवाओं की आंधी चली और मैं उड़ान भर गया. जमीन कब
छुटी, इन्सान के कद कब कम हुए, पता ही नहीं चली. क्यूंकि आँखें अब भी बंद थी. हिम्मत जुटा कर आंखें खोली, तो सामने बेटा उड़ रहा था. नज़रें नीचे झुकाई। गज़ब नज़ारा था. काले रास्ते ड्राइंग के लकीरों से
सीधे दिख थे. पेड़-पौधे घर सभी खिलोनों से दिख रहे थे. किसी चित्रकार की चित्र दिख रही थी, एक तरफ समुन्दर दूसरे तरफ जमीन, इन्सान का कद रेत के दानों से थे.
पास ही में, वही परिंदा दिखा, जिसे हम निहारा करते थे. अपने पंखों को एक लय से थामे मेरे
संग उड़ रहा था. दोनों हाथों को फैला कर हम सामने के परिंदे सा उड़ने का अनुकरण करने
लगे. शरीर और आत्मा स्वछंद हो गयी थी. इंसानों की दुनिया एक तस्वीर सी थम गयी थी.
पास
उडता वो परिंदा मुस्कुरा कर कह गया:
“स्वतंत्र होने के लिए पहले उड़ना होता है.”
आसमान के उंचाईयों से,सब कुछ नन्हा सा छोटा सा लग रहा था.
"हाँ, शायद... ऊँचाई का डर भी..."
सामने मेरा Little Monster परिंदे सा बाहें फैलाये अपने परिंदे के संग उड़े जा रहा था. अब भी जब अटकता हूँ तो Little
Monster की बात याद आती है “Let’s Fly #together”.
"Let’s fly” is my new mantra…शुक्रिया Little Monster.....
अब हाल ही में हमने पैरा-ग्लाइडिंग की. हज़ारों फिट की
ऊँचाई पर उड़ते, हिमालय के आँगन में कई चक्कर लगाये. ये कहानी फिर कहूँगा ...
#together
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.