गीत बनी तों खूब बनी, जिसे देखो वही गुनगुना रहा है. लड़के ने कम उम्र मैं ही क्या खूब लिख डाली. एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ डाले. रचना हों तों ऐसी हों की हर कोई अपने बोल सजा जाए... हिंदी मलयालमतमिल क्या अब कुछ दिन पहले अरबी मैं भी उसके धुन पे बोल सजा गए. इतनी पसंद आई हमे भी की हमने भी धुन अपने मोबाईल पर सजा लिए... अब सजा तों लिए जब देखो बज जाता है और चिढा जाता है— “वाई दिस कोलावेरी कोलावेरी दी....” अब अपनी कल दिन की परिस्थिति को अपने शब्दों में सजा गया ...
अलसाया सा मैं पड़ा हुआ था
नींद के बाँहों में उल्टा पड़ा था
“जिन” पास से उठ आई
नर्म नर्म उँगलियों से उसने
बालों को मेरे सहलाई
गर्म चाय की प्याली में
प्यार डाल कर थी लायी
उठता ना देख हमें फिर
आगोश किया फिर बाँहों का
भीगे भीगे बालों से
बरसात किया कुछ बूंदों का
बूंदों की बरसात से भीगे
नखरे हमने भी दिखलाए
मुस्काई वो अलसाया मैं
मैं गुर्राया वो मुस्काई
छुड़ाने की भरसक कोशिश दिखाई
समझी मैं अब, दवा करती हूँ
नींद से तुम्हे अभी जुदा करती हूँ
थाम हमे फिर बाँहों मैं
लब को लब से सहलाया
नर्म नर्म लब से उनकी
मधुरस को मैं पी पाया
प्यास बढ़ी कुछ और बढ़ी
कुछ और भी प्यास सजी
सजती कुछ और प्यार, तभी
गाने के थे बोल बजे ..
वाई दिस कोलावेरी कोलावेरी दी
(why this Kolaveri Kolaveri Di ?)
नींद खुली तों जिन नहीं थी
ना गर्म चाय की प्याली थी
पास पड़ी मोबाईल से
आगाज़ जागने की हुई थी
उठा मैं, अलसाया अलसाया सा फिर खुद ही चाय बनायीं, गटकता गया. क्या गर्म क्या मिठास बस सपने के बारे मैं सोचता गया.. प्याली खत्म हुई और थोडा सा अपने को संभाला. ढाढस बंधाया “पगले सपने सपने ही होते हैं”. निकल गया मैं जिम को, रस्ते भर सोचा की आज क्या करना है. बहुत दिनों बाद जिम जा रहा हूँ .आज जिन के नाम से जम के एक्सरसाइज कर लिया जाएगा...कुछ तों मोतीवेसन चाहिये ना ...
जिम गया मैं देख मुझे
गुरु ने गुरुवत दिखलायी
ना आया था इतने दिन मैं
जम के गालियाँ उसने सुनाई
दौडाया फिर जम के उसने
सर्किट ट्रेनिंग करवाई
हांफ गया मैं थक गया मैं
कुत्ते सा हांफ गया मैं
सब कुछ सोचा भूल गया मैं
क्यूँ आया मैं सलमान बनने
क्यूँ आया मैं मसल बनाने
मन ही मन मैं बक रहा था
मन ही मन मैं सोच रहा था
why this Kolaveri Kolaveri Di ?
तभी रिंग बजी, बॉस ने फोन किया था, ऑफिस आने को ज़रूरी काम था... सो जल्दी निकल पड़ा...
पहुंचा जब मैं घर पे अपने
नहीं थी बिजली बिल्डिंग की
लाइट नहीं थी लिफ्ट चले भी
अब पहुंचु मैं घर कैसे
आठवी माले पर है घर हैं मेरा
बिन लिफ्ट पहुंचु अब कैसे
इतने मैं याद बॉस आये
मोटे ताजे बॉस थे मेरे
भद्दी भद्दी गालिया याद आये
भांड मैं जाए बिजली ये लिफ्ट
सीढ़ी से ही अब चढ जाए ..
आठवी माले तक तों मैं
जैसे तैसे चढ पाया
इतने मैं ही बिजली आई
देख बिजली मैं चिल्लाया
पहुंचा हूँ जब अंतिम माले मैं
तब ही तुझको आना था?
इतने में ही फिर बजी वो
why this Kolaveri Kolaveri Di ?
फिर से बॉस थे फोन पे, याद दिला रहे थे की काम जरूरी है जल्दी आ जाना .....
जल्दी जल्दी घर घुसा, कपडे त्याग मैं बाथरूम घुसा तों नल से पानी थी नदारद. बिन नहाये घर से निकला. कार निकलने गया तों मेरे कार के पीछे किसी ने अपनी गाड़ी पार्क कर दी थी. किसी तरह से गाड़ी निकल कर रास्ते पर आया ..तों रास्ते मैं एक्सीडेंट हुई थी ट्राफिक जाम ... ऑफिस पहुँच आधे घंटे लेट तों वहाँ माहौल गरम था... बॉस की सिटी बजी पड़ी थी. मेरे बनाये रिपोर्ट को ढंग से पढ़ा ही नहीं और मुझे गलत ठहरा रहे थे...समझा कर निकला, थोडा सुस्ताया... बैठा ही था कि कस्टमर का डेस्क पे फोन.... इंजिनियर मेरा बीमार पड़ गया था और उसने उसे फोन कर बताया नहीं था कि वो नहीं जा रहा. अब सामत मेरी आ गयी.. सारा दिन मेरा ऐसा ही गुज़रा.... और हर बार वो रिंगटोन बजता ही रहा चिढाता रहा ... why this Kolaveri Kolaveri Di ? अब सारा दिन को शब्दों मै व्यक्त कर के उन्हें याद तक नहीं करना चाहता.. सो यहीं पूर्ण विराम करता हूँ
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.