Jul 14, 2011

बरसात

कल बरसात हुई थी
नील निर्जन आसमा तले
सुखी तपती रेट पे
नन्ही नन्ही बूंदों से
भींगा गयी तन मन को
कल बरसात हुई थी
नील निर्जन आसमा तले ....

शब्दों के बूंदों से
हंसियों के  झोंकों से
गुदगुदाती गुनगुनाती
कल उनसे मुलाकात हुई
अनपे बातों से, शब्दों से
निर्जन मन को,
सूखे से तन को
वो हमे अपने प्यार की
बरसात से भींगा गयी

कल बरसात हुई थी
बड़ी जोर से उनके प्यार की
बरसात हुई थी

No comments:

Post a Comment

लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.