एहसास ये कैसा है
न छुड़ा पाए दामन जिनसे
ये प्यास कैसा है?
लकीरें टेढ़ी मेढ़ी सी इन हाथों
को मिला जाने का ये
जिद्द कैसा है?
लबों पर सजी उन एहसासों का
किसी और एहसासों से
न मिटा देने का ये
जिद्द कैसा है ?
महकती सांसों से सजी उन एहसासों का
किसी और सांसों सेन मिटा देने का ये
जिद्द कैसा है ?
उँगलियों का उँगलियों से लिपटे उन एहसासों का
किसी और से न
लिपटने देने का ये
जिद्द कैसा है ?
उलझी चादरों की सिलवटें भी क्यूँ
आज हमसे सवाल पूछती हैं
बीते उन एहसासों के क़र्ज़ का
आज हिसाब मांगती है..
हर लम्हे हमसे नया सवाल पूछती हैं.
न चूका पाए उन एहसासों का क़र्ज़
का जवाब पूछती हैं
तरसते अपने एहसासों को
उन लम्हों मैं ने समां दे
पाने का जवाब पूछती है
गर प्यार था उन एहसासों से इतना
समेट रखे थे उन्हें हर पल इतना,
तो क्यूँ न इकरार तुम कर पाए?
ज़िन्दगी को अपने प्यार से उन्हें सजा आये ?
क्यूँ नहीं तोड़ पाए पराये उन रिश्तों को
क्यूँ नहीं दफन कर पाए पराये उन लम्हों को
क्यूँ नहीं इकरार कर
ज़िन्दगी अपनी तुम अपनी सजा पाए ?
क्या जवाब दूं उलझी इन सलवटों को
क्या बतावुं उन एहसासों को
क्या बतावुं कि भागती इस ज़िन्दगी मैं
ठोकर कुछ पराये, तो
कुछ खुद के भी होते हैं
खुद ठोकर से टकरा गिर आज
हम सब छोड़ आये है....
Bahut khub mahoday
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