अनंत अडिग नभ के तले
खड़ा देख रहा मैं
कारे मेघ को
एक प्रश्न चिन्ह की तरह
कई प्रश्न चिन्हों को बटोरे
कई प्रश्न चिन्हों को छोड़े
एक प्रश्न के संग कि क्यूँ हैं
आज सब कुछ यूँ उदास?
प्रश्नों के वेग में ही
अनायास सी टपक पड़ी एक बूँद
नन्ही सी छाप छोड़, मुझे टटोलती,
हुई विलीन चेहरे के शुन्य पटल पे
उसी नन्ही बूंद को
पीछा करती एक और बूंद
उस बूंद के पीछे के और
और के साथ एक और .
टपकने लगे बूंद यूँ
रेला हों बूंदों का ज्यूँ.
कई बूंदें
एक के बाद एक बूंदें
बूंदें ही बूंदें
कई नन्ही सी
कई और नन्ही सी
कई बदमाश
कई शरीर
कई हट्टेकट्टे
कई शांत
कई नटखट से
आते छूते
गुदगुदाते
और शमा जाते
कुछ हथेलियों से टकरा
लकीरों के जालों में समा जाते
कुछ आते और
गालों को छू उन्हें
अपने मद से भीगा जाते
कुछ आती और अपने आप को
नैनों में ठहरी आँसुवों में डूबा जाती
कई तों हमे छूने से पहले ही
गर्म साँसों मैं खुद को जला जाती
बरसती ये बूंदें हर बार
कोई नयी छाप छोड़ जाती
बूंदें आती टकराती
छणभंगुर सा जीती
और नीशानाबुत हों कहीं खो जाती
एक पहेली बन ओझल हों जाती
अनसुलझी सी पहेली बना जाती
वहीं अशांत सा मन ले,
शांत सा खड़ा मैं
बुन्दों के इस मिलन को,
दोनों बाँहों को फैलाये यीशु समान,
मशीहा के इस भेंट को
ग्रहण करता, स्वीकारता, सोचता,
इस अनबुझ मर्म पहेली को
प्रश्न चिन्हों को मन मैं इन्कित किये
अनायास सी एक अल्बेली सी बूंद
टकरा गयी त्रस्त सुखी सी लबों से
टकराई हों बूंदें जैसी तपते रेत के बूंदों से
चौंक मै, अधरों को मिलाया,
एक परिचित सी एहसास को
उस बूंद कि चादर में लिपटा पाया
समझा छन से, इशारा इन बूंदों का
मशीहा के अनायास इस सौगात का
उत्तर अपने लावारिस प्रश्नों का,
रस भीगी नटखट सी इन बूंदों का
लिपटी हैं ये सरे बूंदें कईं यादों से
सिमटी हैं ये कई एहसासों से
बूंदें जब जब हमसे टकराई थी
हर बार उनकी यादों को
हम तक ले आई थी ..
हथेलियों पे बूंदें जो टकराई थी
एहसास उनके लकीरों का
हमारे लकीरों तक लायी थी.
उड़ गए थे गर्म सांसों में छू कर
उनकी गर्म सी साँसों से उड़ कर आई थी.
होठों से टकरा बूंदें जो भीगा गयी थी,
नमी वो उनकी लबों से चुरा लायी थी.
सुलझती इन अनसुलझी बूंदों से
हम अपनी यादों को भीगा पाए थे.
प्रश्न चिन्हों को अब उत्तरों से भीगा हम पाए थे
प्रश्न चिन्हों को अब उत्तरों से भीगा हम पाए थे
इन्ही नन्ही सी बूंदों से अलग
एक बूंद
शान्त,
अकेली,
गंभीर,
उदास,
दूर दिशा से लडखडाती
चल कर आई
लबों से टकरा
टूट कर एक
छाप दे गयी ..
भांपा, उस बूंद को
आँसुवों सा हमने पाया,
कहीं दूर
नैनों को हमने आँसुवों से
भीगाया था
अनजाने में
एक दिल को दुखाया था
उन्ही आंसुओं से छूट
वो पास हम तक आई थी
रों रही हैं आखें कहीं
जतला मुझको गयी थी
आज फिर वे बूंद हमारी
आँखें नम कर गयी
सिहर उठा
एक बूंद को पी कर
मांगी हमने खुदा से एक दुआ
अगले बार जब भी हमे बनावोगे
लकीरों को उनकी
हमारी लकीरों से मिलावोगे
तकदीर मैं उनको
हमारी तकदीर में सँवारोगे.
इस बार कि तरह
हमे जुदा जुदा ना सजावोगे..
इस बार कि तरह हमे जुदा जुदा ना सजावोगे..
बूंदों से भीगा अशांत सा मैं ..................
-nice blog, with great info.., keep rocking …
ReplyDeleteAmazing ! Just wondering how you have patience to write such stuffs
ReplyDeleteGreat work !