लिखने की उन्होंने हमे यूँ उसकाया की अब लिखने मैं आनंद सा आने लगा. भले कोई ख़ास नहीं लिख पाते पर एक लत सी लगने लगी है. हर वक़्त ढूँढता हूँ कुछ लिख जावू. कभी कुछ रुमानियाँ, कभी दर्द तो कभी कुछ, तीन शब्दों मैं अपने मन की भड़ास निकाल ही लिया करता हूँ. कुछ दिनों से हम सोच रहे थे की अपनी बातें ही लिखना शुरू करू जैसे आत्म कथा लिखी जाती है. पर, लेखनी मैं ऐसी कोई दम नहीं थी. सो, हमने सोचा की क्यूँ न अपनी चौपाल पर घटते कथा को लेखनी मैं बदलना शुरू करू. कोई आत्म कथा नही पर संस्मरण तो हो ही सकता है.
Nov 8, 2014
पंखुड़ियां
पंखुड़ियों की
शुष्क पन्नों को
तह दर तह टटोला
शुष्क उन पन्नों में
नर्म सी ज़िन्दगी
आज भी
सासें ले रहीं थी
हमें कहीं
आज भी
यादों में संजोये
जी रही थी
No comments:
Post a Comment
लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि लिखना अब हमारी लत बन गयी... -------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.
No comments:
Post a Comment
लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.