Nov 8, 2014

पंखुड़ियां

पंखुड़ियों की

शुष्क पन्नों को
तह दर तह टटोला
शुष्क उन पन्नों में
नर्म सी ज़िन्दगी
आज भी
सासें ले रहीं थी
हमें कहीं
आज भी
यादों में संजोये

जी रही थी

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.