Nov 8, 2014

त्रिपर्णा...

credits
inspiration: love-acceptance-betrayal.

कुछ पल पहले ही
एक तूफ़ान आई थी
ढली भी नहीं थी कि
हवाओं के झोंके
दोबारा
उन्हें झुका गयी..

उठी ही थी,
अपने बोझिल पत्रों को संभाल
बारिश के बड़ी बड़ी बूंदें से
नहा गयी.
दोबारा उठी..

दोबारा उठीं
आसमान में सुनहले
चमकते सूरज को
वर्क संग बादलों के साए
संग उगते देख.
अपने पत्रों को झंझ्कोर
उर्जा समेट
नव निर्माणित
जीवित

सूर्य की चमकार को 
आगोश में भरने को
तीन पन्नों की पत्रों से
जीवन जीने को फिर
आतुर हो उठी
दामन में दामिनी को
समेटने को फिर
खड़ी हो उठी..
  
बेवफा
सूरज भी निकला
ताप से पन्नों को
आग सी झुलसा गयी
निष्ठूर सा
तुम्हे भी जला गयी ...
  
जल
आज भी खड़ी हो
ये कैसा
अदम्य साहस है
तुम मे...त्रिपर्णा

कैसे वफावों से लड़ पाती हों... त्रिपर्णा.... 

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.