for my valentine Zin(dagi)… कुछ अधूरे से अरमान ..कुछ अधूरे सपने..एक अधूरी चाहत को पूर्ण कर पाने की चाहत...
चिक से छनती किरण
अलसाई सुबह
अलसाया मैं
अलसायी तुम
आगोश में बंधा
बिखरे जुल्फों की
गिरफ्त में क़ैद
लबों की छुवन
अलसाई मद-सायी सुबह
एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
शर्दी भरी सुबह
धुंधली हवा
चहचहाते नभचर
हांथों में हाँथ
लकीरों की छुवन
आहिस्ते कदम
डगमगाते चाल
धडकते दिल
हँसते गाते हम
एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
निवृत होता सूर्य
लालिमा बिखेरती
मचलती संध्या
पेड़ की ओट
सरसराते पर्ण
हांथों में हाँथ
जुल्फों के छाँव
गोद में पड़े हम
गोद में छीपे हम,
सहलाती जुल्फों को
खिलखिलाती तुम
लम्हों से खेलता मैं
एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
कलावों में कलानिधि
चांदनी नहाती धरा
सितारों भरा गगन
रेशमी सय्या
जन्मते सिलवटे
सुरिली माहौल
नशे में निशा
आगोश में हम
रस उढेलते अधर
धड़कतें धडकने
मचलता मन
कांपता तन
प्रणय में बंधे हम
एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
अधूरी चाहत,
अधूरी प्रेम
पूर्ण करने की
दुआ मांगता
एक पल फिर
तुम्हे संग पाने की
लम्हों को फिर
जी पाने की
दुआ मांगता
अधूरी चाहत को
पूर्ण कर पाने की
पूर्णाहुति से पूर्व
तुम संग चाहतों को पूर्ण
कर पाने की
एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
पूर्ण कर जी जाने की ............
9/2/12 Image courtesey google search
प्रेम के मनोभावों का बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...
ReplyDeleteवो चाहत ही क्या जो द्रिढ निश्चय से हो परे
ReplyDeleteऔर अस्तित्व में उसके कई प्रश्न चिन्ह हो भरे
वो चाहत ही क्या बंद पलकों की ओट में छुपी हो अक्सर
और उजाले के सम्मुख आया तो मिथ्या की बैसाखी को पकड़
वो चाहत की क्या जो हर घडी हर पहर इच्छाधारी सा रूप धरे
और खुदमें अटल रहने का घमंड भी करे
वो चाहत ही कहाँ
वो तो बस
एक बार फिर एक भ्रम ही करे
और अस्तित्व भी इसका है हर सत्य से परे
तो कहे को कोई
एक बार फिर वही भ्रम है करे....!!!
शुक्रिया पल्लवी जी.. प्रोत्सहन के लिए अनेक धन्यवाद
ReplyDeleteanonymous..
ReplyDeleteशुक्रिया आपके शब्दों के लिए ...आभार..
आपके शब्दों में कई भाव प्रश्न-चिन्ह से छिपे थे..
उन्ही भावों को समेटते कुछ और शब्द मेरे ह्रदय से फुट पड़े... मेरे नए पोस्ट "क्यूँ" में आपके प्रश्नों को शायद समेट सकूँ.
शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए...
आपके शब्द प्रोत्शाहित कर जाते हैं..