Feb 9, 2012

एक अधूरी चाहत..

for my valentine Zin(dagi)… कुछ अधूरे से अरमान ..कुछ अधूरे सपने..एक अधूरी चाहत को पूर्ण कर पाने की चाहत...


चिक से छनती किरण
अलसाई सुबह
अलसाया मैं
अलसायी तुम
आगोश में बंधा  
बिखरे जुल्फों की
गिरफ्त में क़ैद  
लबों की छुवन
अलसाई मद-सायी सुबह

एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..

शर्दी भरी सुबह
धुंधली हवा
चहचहाते नभचर
हांथों में हाँथ
लकीरों की छुवन
आहिस्ते कदम
डगमगाते चाल
धडकते दिल
हँसते गाते हम

एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..


निवृत होता सूर्य
लालिमा बिखेरती
मचलती संध्या
पेड़ की ओट
सरसराते पर्ण
हांथों में हाँथ
जुल्फों के छाँव
गोद में पड़े हम
गोद में छीपे हम,
सहलाती जुल्फों को
खिलखिलाती तुम
लम्हों से खेलता मैं

एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
  
कलावों में कलानिधि
चांदनी नहाती धरा
सितारों भरा गगन
रेशमी सय्या
जन्मते सिलवटे
सुरिली माहौल
नशे में निशा
आगोश में हम
रस उढेलते अधर
धड़कतें धडकने
मचलता मन
कांपता तन
प्रणय में बंधे हम    

एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..

अधूरी चाहत,
अधूरी प्रेम
पूर्ण करने की
दुआ मांगता
एक पल फिर
तुम्हे संग पाने की
लम्हों को फिर
जी पाने की
दुआ मांगता
अधूरी चाहत को
पूर्ण कर पाने की
पूर्णाहुति से पूर्व
तुम संग चाहतों को पूर्ण
कर पाने की

एक बार फिर ...
एक अधूरी चाहत..
पूर्ण कर जी जाने की ............

9/2/12 Image courtesey google search

4 comments:

  1. प्रेम के मनोभावों का बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...

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  2. वो चाहत ही क्या जो द्रिढ निश्चय से हो परे
    और अस्तित्व में उसके कई प्रश्न चिन्ह हो भरे

    वो चाहत ही क्या बंद पलकों की ओट में छुपी हो अक्सर
    और उजाले के सम्मुख आया तो मिथ्या की बैसाखी को पकड़

    वो चाहत की क्या जो हर घडी हर पहर इच्छाधारी सा रूप धरे
    और खुदमें अटल रहने का घमंड भी करे

    वो चाहत ही कहाँ
    वो तो बस
    एक बार फिर एक भ्रम ही करे
    और अस्तित्व भी इसका है हर सत्य से परे
    तो कहे को कोई
    एक बार फिर वही भ्रम है करे....!!!

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  3. शुक्रिया पल्लवी जी.. प्रोत्सहन के लिए अनेक धन्यवाद

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  4. anonymous..
    शुक्रिया आपके शब्दों के लिए ...आभार..
    आपके शब्दों में कई भाव प्रश्न-चिन्ह से छिपे थे..
    उन्ही भावों को समेटते कुछ और शब्द मेरे ह्रदय से फुट पड़े... मेरे नए पोस्ट "क्यूँ" में आपके प्रश्नों को शायद समेट सकूँ.
    शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए...
    आपके शब्द प्रोत्शाहित कर जाते हैं..

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.