Nov 9, 2015

मस्लंदी साम्राज्य....

बड़े किंग साइज़ के बिस्तर पर
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बड़े बड़े मस्लन्दों के घेरे से
अपना साम्राज्य हम संजोते थे.
सिरहाने के तकिये से सटे
दो मसलंद लगते थे, जो
बिस्तर के ठीक बीचों बीच लगी होती.
इस घेराबंदी में घुसना,
उन्हें तोड़ना,
उन्हें संजोये रखना
हमारा अपना एक खेल था
जो बचपन में हम तीनों भाइयों को  
बहुत प्रिय था.
जो बीच में सोता वो सम्राट सा होता था ...

इस साम्राज्य के सम्राट को
सर्दी से सुकून होती,
मोटे रजाई के खींचातानी से दूर
तीनों भाइयों में सबसे बेफिक्र होता..
हर रात की यही कहानी थी,
जो सबसे पहल दखल करता, वही सम्राट...
कई-कई बार तो बिन खाए
हम सोने का बहाना कर चले जाया करते थे..   

रात के अधियारे में नींद के गोद में
न जाने कब मस्लंद के बने
दीवार ढाह दिए जाते
न जाने कब लुढ़क कर
एक दुसरे के बाँहों में सो जाते...
बचपन में स्नेह का वो स्पर्श
आज भी गर्माहट दे जाती है....
चेहरे पर एक मुस्कान दे जाती है
बचपन के खेल ऐसे भी हुआ करते थे...

आज भी,
सिलसिला थमा नहीं है..
बस मायने बदल गए है,...
बिस्तर के बिहंगम समुन्द्र में,
आज भी
मस्लंदी साम्राज्य का निर्माण होता है
पहले दो मस्लान्दो से साम्रज्य बनती
अब एक ही काफी है
बिहंगम बिस्तर को
दो हिस्सों में बांटने को


अब.. सीमा लांघने पर
शत्रुवों की आगाज़ सी शोर सुनाई देती है
अब..  नींद में भी
इस साम्राज्य का पतन नहीं होता
अब... सबेरे तक मुह चिढाता
अपने भव्यता का दर्शाता
मस्लंद वहीँ औंधे पड़ा होता...
बिस्तर को दो भागों में बांटता..

रजाई भी
अपने अपने छोर पर रुके रहते
मस्लंदी साम्राज्य का वजूद
दो भागों में और गहरा गया है...

रेलवे स्लीपर के कमसीन पटरे पर भी
चिपक कर सोने वाले
एक दम्पति
अपने अपने साम्राज्य में सिमटे पड़े रहते हैं...
मन में तनाव पाले  
एक ही बिस्तर के
दो भाग हो उठे  है....
एक छत के नीछे दो
परिवारों का रहना सा है ....
  
कब तक का बंटवारा है..
कब थमेगा ये कहर..
कब रुकेगा अंधी घमंड का खेल
कब ढहेगा ये दीवार....
कब बहेगा थमे उर्जा का बहाव.....  
कब तक रहेगा मस्लंदी साम्राज्य का राज........

निरुत्तर हैं सभी......
चादर की सिलवटें भी लापता हैं..मौन हैं..निरुत्तर हैं......

1 comment:

  1. In sarpat daudti lakiron se na puchoo
    Kahan pata hai inhee bhi kuch
    Ye to khd katti chatii se hai...
    Ek saath dekho to ADiii or jo gaur se dekha to kayi
    sare antt dikh jaenge islakir ke
    Haan kayi saree...anginat

    Suna tha or yahi mana thaki insanek barhi jita hai
    Ek ji jeevan hai...fir ek bar marta hai...
    Per main nahi mantiiii
    Ye saach hai ki ek hi jeevan hai per
    Mrityu ek kahan..????. pal pal marta hai yahan insan to
    Kabhi akele kabhi kisi ke sang...kabhi aise kayi sawalonn taleeee..
    .. kayi baar ji ke ek baar kahan marta haiinsan hum jaise prani to
    kayi barr mark ke ek bar ji lete hain....

    Itiii.

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शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
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