Sep 20, 2016

बंधुवा ज़िन्दगी ....

कहते हैं
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ठहर जाना
नहीं है ज़िन्दगी की
कोई चाल….
चलते रहना है.
चलते रहना है, पर्याय ज़िन्दगी का.

यही सोच कर
कभी आहिस्ते
कभी वेग में
भागता गया..
ज़िन्दगी के अर्थ का अर्थ
अनर्थ समझ

इस भागम भाग में
कभी घर,
कभी दौलत,
कभी आराम,
कभी ऐश की  
चाहत की
जंजीरों ने
पैरों को जब बाँध लिया.....
तब ठहरा
हाँ, एक पल ठहर गया...

हांफता बदहाल था जब,
अंतर्मन की आवाज़
तब सुनाई दी..
क्यूँ रहे हो भाग?”
“किस से है जितना तुम्हे?”
“ढूंढ क्या रहे हो?
जवाब में था बस,
एक द्वन्द का..
एक भ्रम,
एक शोर भरी ख़ामोशी...
हलक में औंधे थे कोई शब्द...

“न कुछ है आज,
जो तुम चिर तक ले जावोगे..
न है कोई आज,
जो तुम संग, जिनके जी पावोगे..
हैं आज तो बस बेड़ियाँ
जो तुम संग ले आये हो
उनमें ही बंधे हो
बंधे रह जावोगे..”
अंतर्मन से निश्फुट आवाज़ आयी

ठहरो
हाँ ठहरो, रुको
समेट लो रिश्तों को,
जिन्हें कहीं खो आये हो...
समेट लो उन पलों को,
जिन्हें तुम भूल आये हो....
जी लो अपनी ज़िन्दगी को
जिसे दूर झूठला आये हो...
ठहरो ....हाँ ठहरो
रुको...और जीयो....

ज़िन्दगी बस एक ही है.....जीना है एक ही बार...बस एक बार

सबरी के बोल

We have no commitments  between us, then why lies….
credits: google


वादा न तेरा
वादा न मेरा
फिर
सबरी के बोल भी

आज झूठे क्यूँ?