Feb 19, 2012

मृगतृष्णा

I read a post from http://hridyanubhuti.wordpress.com/ by Indu Ravi Singh which i would love to preserve on my blog.. and also prompted me to add my lines....beautiful lines which provoked the childhood memories.

बचपन से ही चलती गाड़ी से
सड़कों को देखना भाता है हमें
लगता था कि सड़क भाग रही है
और हम पीछे छूट रहे
बड़ा अचरज होता था तब।
कभी दूर सड़क पर पानी का दिखना
मृग तृष्णा का अर्थ,तब पता ही न था
जीवन के सबसे बड़े अजूबे
तब यही तो लगते थे।
आज यूँ बड़े हो,सब समझ तो गए
पर वो नासमझी के अचरज
मन खुद को वहीं कहीं पाता है
हम नहीं,सड़क चल रही
पेड़-पौधे चल रहे,
सोच इन यादों को
मन बस यूँ ही मुस्काता है।

my added lines...
देख मृग तृष्णा को, दूर सड़क पर
गीले राह से डर जाना
पापा कि ऊँगली पकड़ फिर
दूर राह को दिखलाना
पापा का फिर जोर से हसना
गाड़ी और तेज चलाना  
माँ का फिर देख मुस्काना
ममता भरी आँखों से
बालों में ऊँगली घुमाना

भैया भी क्या घमंड दिखाते
बीस की छाती चौबीस कर के
हमको मृगतृष्णा समझाते
पास बैठी दीदी भी क्या खूब
बत्तीसी से मुह वो सजाती
गीली राह के अपने डर पर
कितने कथा वो कह जाते
कहाँ गयी वो मृग-तृष्णा
और कहाँ गए वो नन्हे पल

आज सजे है हर तरफ बस
अर्थ लोभ का एक माया
मृगतृष्णा में भाग रहे हम
छोड़ आये सब मृगतृष्णा
भाग रहे हैं सिर्फ सड़कों पर
छोड़ गये सब मृगतृष्णा


No comments:

Post a Comment

लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.