May 10, 2011

चौपाल --- प्रथम शब्द

लिखने की उन्होंने हमे यूँ उसकाया की अब लिखने मैं आनंद सा आने लगा. भले कोई ख़ास नहीं लिख पाते पर एक लत सी लगने लगी है. हर वक़्त ढूँढता हूँ कुछ लिख जावू. कभी कुछ रुमानियाँ, कभी दर्द तो कभी कुछ,  तीन शब्दों मैं अपने मन की भड़ास निकाल ही लिया करता हूँ. कुछ दिनों से  हम सोच रहे थे की अपनी बातें ही लिखना शुरू करू जैसे आत्म कथा लिखी जाती है. पर, लेखनी मैं ऐसी कोई दम नहीं थी. सो, हमने सोचा की क्यूँ न अपनी चौपाल पर घटते कथा को लेखनी मैं बदलना शुरू करू. कोई आत्म कथा नही पर संस्मरण तो हो ही सकता है. 

चौपाल ?

 अरे भाई चौपाल कहते  ही आप सोचेंगे कि कही एक हरियाली से भरी हुई गाँव के नुक्कड़ पर बरगद के पेड़ के नीचे एक मचाननुमा कोई ढांचा होगा. जहाँ धोती कुरता  पहने बुजुर्गों का जमावड़ा होगा,
जो देश दुनिया कि बातों पर विवेचना करते    जहाँ आते जाते नयी पीढ़ियों पर छीटा कशी हो रही होंगी. कोई साधू दूर कहीं देश से घूमता फिरता गाँव के चौपाल पर आ कर धर्म कि बातें बघार रहा होगा.  डरिये मत हमारी चौपाल ऐसी नहीं है.
चौपाल  एक मचान  सा है जहाँ हम सा सबेरे सबेरे स्वस्थ लाभ के लिए दौड़ दौड़ कर थकहार  जाने के बाद बैठ जाया करते हैं. कई दिनों से ये सिलसिला कायम है जिसके कारण हम सा कुछ और लोगों का जमावड़ा हो जाया करता है. यही हमारी चौपाल है. यहीं घंटों बैठ कर हम अपनी दिन कि शुरुआत करते हैं.... अरे हाँ , गाँव कि वो पीपल कि पेड़ तो नहीं है पर बहुत पुरानी एक बरगद का पेड़ है. हमे वो पेड़ बहुत पसंद है. कहते हैं बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर ही सिद्दार्थ को ज्ञान प्राप्ति हुई, और सिद्दार्थ गौतम बुद्ध बने. हमे कोई बोध ज्ञान कि लालसा नहीं थी कि उसे हम अपनाते. पर हाँ यहीं बैठ कर हमने कई परेशानियों को सुलझाया है, यही कई तीन शब्दों कि प्रेरणा प्राप्त हुई... सो जीवन से इस बरगद के पेड़ हमे बहुत पसंद हैं.

चौपाल तो बस एक ढांचा ही बनेगा यदि हम ये ना बताये कि वहां है कौन जिनसे हमारी चौपाल बनती है. पर ये तो हमने बताया ही नहीं कि हम हैं कौन. अरे भई, हम हैं आशुतोष बाबु. वैसे हमे कुछ लोग आशु भी बुलाते हैं पर कौन और क्यूँ ये भी बतावुंगा.  जमावड़ा  भी क्या हैं, एक छोटी मोटी सी भारत है. कई प्रदेशों का समावेश है हमारे चौपाल में. हमारे सबसे परम मित्र  हैं मिट्ठू  बाबु हैं. बंगाल के रहने वाले है और जैसा कि नाम है बड़े बातूनी हैं और साथ में बंगाल के रसगुल्ला से मीठे. रोज़ सबेरे देखते ही पूछेंगे " केमोन आछेन आशुतोष दादा. सोबेरा खूबी अच्छा है आज"  हम भी मुस्कुराते और कहते, " हाँ दादा आज भी बहुत खुबसूरत है. बोउ दी कैसी हैं दादा?" बोउ दी का जिक्र सुनकर ही थोडा नरम जाते दादा... एक मुस्कान  आ जाती उनके चेहरे पर. बड़ी ही खुबसूरत बोउ दी थी दादा से कई साल छोटी. राजनीती कि बातें हो आम दिनों कि खबर, घर पहुँच कर अखबार पढने से पहले ही हमे हेड लाइन सुना दिया करते थे. पर एक विवेचना करनी होती तो ज्ञानी थे  हमारे चेन्नई के पुट्टूस्वामी. उनका पूरा नाम कई मील लम्बी हैं जो आज तक हमे नहीं समझ आया तो हम उन्हे पुट्टू स्वामी ही बुलाया करते थे. स्थूलकाय शारीर काजल से काया चमकती हुई दांत बड़े ही इंट्रेस्टिंग सा रूप था उनका. रूप की बात निकली तो हम उन्हें कैसे भल सकते हैं. छोटी सी कद, आकर्षक बनावट.. हाँ भाई कोई पुरुष नहीं हैं.महिला ही हैं वरना आकर्षक शब्द का इस्तेमाल ही हम क्यूँ करते. यूँ कहते हैं ना :
       ज़िन्दगी से हमे इतनी  मोहब्बत ना होती
       मोहब्बत उनसे हमारी इबादत ना होती
यूँ कहिये की शब्दों का सिलसिला भी उन्ही का बढाया हुआ है आज चौपाल के पल भी उन्ही का सजाया हुआ है. हाँ, तो रूप की चर्चा चल रही थी.. नैनों का उनका मैं हमेशा से कायल था, काले से बालों का दीवाना था.. था??? नहीं बाबा आज भी हूँ जितना कल था और शायद रहूँ भी. जब दिनभर  की चीचीपोपो से थक कर निराश हो जाया करता हूँ तो बस उसे देख लिया करता हूँ या सोच लिया करता हूँ की वो होती तो क्या कहती. थोडा दीवाना सा लग रहा हूँ हैं ना? हाँ हूँ
        एक सोच भी उनकी
       हमे सहला जाती हैं, 
       थकी सी सीने के दर्द 
       बहला जाती हैं.. 
       तू नहीं है पास
       फिर भी तू है पास 
आप सोच रहे होंगे   कुछ तो ख़ास  बात है की उनका जिक्र आते ही तीन शब्दों का सिलसिला चालू हो जाया करती है. हाँ भाई सचमुच. अब रब झूठ ना बुलवाए. नाम तो बताया ही नहीं-  सोना   बुलाते हैं हम. सोनाके बारे मैं फिर कभी बतावुंगा क्यूंकि शुरू हुआ तो बंद नहीं होने वाला. सबसे बड़ी शिकायत मुझे रब से यही है आज तक की,  हमे पहले क्यूँ जन्मा और इन्हे बाद मैं क्यूँ...खैर दुखती रग को क्यूँ मसलना ..फिर कभी ..... ..
चौपाल मैं यूँ ही कई लोग हैं ..धीरे धीरे बतलावूँगा ..

कहते हैं हर पूजा के अंत मैं ब्रह्मा की पूजन से ही पूजन का समापन होता है.. रचनाकार  की रचना भी संपूर्ण कैसे होगी यदि पत्नी की व्याख्या ना हो. यही सोचकर समझकर  अब इस पन्ने  को पूर्ण  करने से पहले ये तो बतलाना ही चाहिए कि मैं उन खुश किस्मतों मैं से नहीं जिन्हें अंग्रेजी मैं हैप्पी बचेल्र्स ग्रुप का सदस्य कहते हैं. अब उनके बारे मैं तो आप सुनते ही रहेंगे, तो आज व्याखान रहने ही देता हूँ. एक बार एक दोस्त ने कहा था कि "पत्नी कि प्रताड़ना से ही लोग महान बने हैं". सत्यवचन सत्यवचन.... अब वाल्मीकि को ले या तुलसी दास को सभी का एक ही हाल था .... देखे अब हम  क्या बन जाते हैं....
खैर आज के लिए इतना ही......
फिर मिलेंगे चौपाल पर ...........     

 तक तक के लिए खुदा हाफ़िज़....

4 comments:

  1. hardik shubhkamano ke saath agle edition ki apekshaa main .....

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  2. Shukriya aapka. zindagi main har pahle ki ek khas swad hoti hai chahe wo pahli mohabbat ho pahli post ho ya aapke dwara chode huey pahle comment..
    achha laga blog par pahle dastakhat ka...
    shukriya..
    yun hi padhte rahe yun hi dastakhat dete rahe.

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  3. अब चौपाल लागा ही रखा है तो हुक्का गुडगुडाने आता रहुंगा

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  4. शुक्रिया भारतेंदु जी... अपेक्षा रहेगी

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.