दो वर्ष
दो लोग
दो दिल
दो अरमान
दो प्यार
दो लकीरे
दो लबें
दो मन
दो अकाँछा
कई बार
मिले - बिछड़े
टूटे - जुड़े
गिरे - संभले
संभले - उठे
जिंदगी (से) लड़े
हारे – जीते
जीते - जीए
रुके - भागे
भागे - संभले
कभी दोस्त
कभी प्यार
कभी इंकार
कभी हंसी
कभी नाराज़
कभी नाटक
कभी पास
कभी दूर
कभी शांत
कभी निशांत
दो वर्षों की
दो अवधी मैं
कितने रूपों को
हमने पाया है
तीन शब्दों की छाँव मैं
कितने दो शब्दों को ढाला है
लम्हों के उन बिखरे मोतियों से
माला इक पिरोया है
दूर रह कर भी
दो वर्षों को
एक जीवन सा पाया है
जीवन के बटुवे मैं गर,
दो जीवन का साया है
एक जीवन मैं दूर सही पर,
दूजे मैं तुझे ही चाहा है
दूर सही तू, आज कही तू
शब्दों के इन दो शब्दों से
तुझको यादों ने सजाया है
दूसरे वर्ष के इस पावन को
हमने इन शब्दों से सजाया है
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.