Jul 30, 2011

जिंदगी, भागती क्यूँ है

जिंदगी, भागती क्यूँ है
अपने ही वेग मे?
अपने ही तेज मे?
रुक,
ना भाग
तू इस तेज मे
कौन दौड पाता है
तेरी वेग मे ?

दिए थे पल तुने कई
बटोर पाए कई
बिखेर आये कई
छोड़ आये मंजीलें कई
छोड़ आये लम्हे कई
जोड़ पाए रिश्ते कई
तोड़ आये रिश्ते कई


आज
भाग ना तू अब,
दौड ना अपने वेग से, तू अब
ठहर,
थम अब,
कुछ पल के लिए
तेरे दामन से सजे कुछ पल
जी लूँ अब ...
आज तेरे दिए पलों को जी लू अब

तेरे आज अस्तित्वता का दिवस है
तेरे मेरे साथ होने का दिवस हैं
ठहर, कुछ पल तेरे संग
जीने का दिवस है..
तुझसे माँग  zin के संग
जीने का दिवस है..


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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.