आज शायद पूर्णमाशी है तभी चाँद इतना खुबसूरत सा लग रहा है. आते वक़्त कमबख्त हर पल मेरे आँखों के सामने ही रहा पूरी रास्ते. इतना खुबसूरत की क्या बतावु.. आज तेरी याद बहुत आ रही थी. तुम ही तो थी जिसके साथ मैंने चाँद को पहचाना था..उसकी खूबसूरती को साथ साथ निहारा था... कितने पल साथ हमने चाँद के साथ चाँद के बारे में बातें कर कर के गुज़ारे थे... आज उन ही पलों को समेट रहा था ....
आज किसी ने हम से पूछा है
चाँद को कभी हमने गौर से देखा है
क्या दिखा है, क्या सोचा है?
सोचा मैं, मुस्कुराया
मंद ही मंद मुस्कुराता रहा
यह भी कोई पूछने की बात है,
चाँद को कभी हमने देखा है?
क्या कहते उसे,
पगली, चाँद को मैंने कहाँ देखा है?
वो तो हर पल
हर छन मेरे साथ है
देखा नहीं
हमने तो उसे निहारा है
पूर्ण चेहरे से ले कर...
सरकते घुन्घतों मैं
हर रोज़
उसकी घटती अदाओं को देखा है...
हर पल उसे निहारा है
फिर भी कोई पूछती है
चाँद को कभी देखा है...
ठंडी हवाओं के गोद मैं
सर रख कर
जब भी धूनदा है
चाँद को कई बार हमने
आँचल मैं
सितारों को समेटे ही
शर्माते,
इठलाते
मुस्कुराते देखा है...
फिर भी कोई पूछती है
चाँद को कभी देखा है...
सितारों से सजी
चांदनी सी रात मैं
अपनी प्यार के
माथे पर हमने
चाँद को कई बार
बिंदियों सा सजाया है.....
फिर भी कोई पूछती हैं
चाँद को कभी देखा है....
क्या कहूँ
की यह चाँद
जो ऊपर सितारों में हैं
वो कोई नहीं
मेरे प्यार की प्रतिबिम्ब है
जो देवों की दूआवों से
आसमान को सजाती हैं
और हमे आसमान से ही
उनकी याद मैं
तरसाती हैं
फिर भी कोई पूछती हैं
चाँद को कभी देखा है.....
चाँद को कभी देखा ही.. हाहा
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.