बचपन से सुनते आया था कि वक्त थम जाते हैं, समय ठहर जाता है.. हमने जो सुना था जो पढ़ा था उन्हें मानते गए. कभी रुक कर, एक पल ठहर कर, सोचने की कभी कोशिश ही नहीं की. बस जो सुना था जो पढ़ा था उसे एक गिरह की तरह बांध लिए और कहीं कोने में उन्हें संभल कर रख लिए. जब भी कुछ होता तों उन्हें टटोल कर वापस लाते और कह देते की हाँ शायद समय ठहर गया है वक्त ठहर सी गयी है. वर्ष बितते गए, कभी किसी ने हमसे इनके ठहर जाने का या बहते जाने का किसी पर ना तों कोई बवाल मचाये ना कभी हमे चुनौती दे कर फिर से इन्हें सोचने पर मजबूर किये. ठीक एक वर्णमाला की तरह जिसके लय का होना या ना होना, हमने कभी चुनौती नहीं दी. “क” के बाद “ख” का होना या “य” के बाद “र” का..आज तक कभी हमने चुनौती नहीं दी. बस मान लिया. तों आज समय का ठहर जाना या बहते जाने पर एक बवाल क्यूँ है मन में. गलती नहीं थी.. इस बार भी हमने कोई बवाल नहीं मचाई थी. मेज़ पर पड़े अपने “सेंड क्लोक” के साथ खेलते खेलते मन ए बात आई. “आवर ग्लास” के एक चैम्बर से बहते हुए रेत कों ऊपर से नीचे बहते देख, मन में ख्याल आया की यूं ही समय, रेत के एक एक दानों से बनी हैं, जो जिंदगी के लम्हों की तरह हैं. एक एक लम्हे हम जीते हैं और समय के एक कटोरे में ढालते जाते हैं. लम्हे बनते रहते हैं और बहते रहते हैं. कितनी सच्चाई है की समय बहती रहती हैं, एक दोने से दूसरे दोने में. यूँही उधेड़ बूंद में ध्यान से देखा की कुछ बुँदे थी जो रेत की तों थी, पर अलग रंग की थी. सेंड क्लोक के शीशे में चिपकी सी पड़ी थी. कई बार कोशिश की कई बार हिलाए डुलाये पर वो चिपकी ही रही. दृढ़ थी. समय ने कुछ खूबसूरत पलों के तरह अपने संग संजोये रखा था शायद. सब रेत बह जाते सिर्फ वही अपने स्थान कों नहीं बदलती... शायद इसे ही समय का ठहर जाना कहते होंगे ..शायद यहीं समय रुक जाती हैं..
जिंदगी के कुछ पल जो खास होते हैं, जो एहसास दिल के बहुत करीब होते हैं, समय के साथ जिन्दगी के ऑवर-ग्लास से यूं ही जुड जाते है. कितना भी तूफ़ान क्यों ना आये यदि हम त्रस्त भी हों जाए, तों उनकी एहसास हम में रह ही जाती है और सब कुछ एक ठहराव का एहसास दे जाती है. शायद ऐसा ही एहसास आज मैं जी रहा हूँ ... Zin, तुम पास नहीं हों, पर आज भी तुम्हे यूं ही जीए जा रहा हूँ .. समय बह तों रही है पर आज भी एहसास वहीँ है जहाँ हम साथ कभी छोड़ आये थे.....इस चाह में की शायद समय का दोना पलटे और बीती हुई रेत नए लम्हों में सज आये..शायद उन्ही लम्हों में एक लम्हा फिर हमारा हों....
२६/२/१२
No comments:
Post a Comment
लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.