Feb 21, 2012

साबुन=रिश्ते?

फिसल गुसलखाने में,
Dove की टिकिया छिटकी तों,
कई फस्ल्फों का जन्म हुआ..
रिश्ते !!!
रिश्ते भी साबुन से होते हैं?

नर्म, मर्म भीनी सी महक
पर, सुखी हुई साबुन, जल विहीन
कितना भी कोशिश करे सुखे तन पे
कहाँ कोई झाग सजा पाते हैं?

रिश्तों की तरह
प्रेम जल से भीगोये
हलके हलके सहलाये.
और प्रेमभाव के अथाह
अनंत बुलबुले,
जीवन्त बुलबुले
आप पर छा जाते हैं
अपने आप को जी कर
सुखद अनुभव
सजा जाते हैं.
धुल जाए बुलबुले
फिर भी
अपनी खुशबू में
हमे नहला जाते हैं  
रिश्तों कों दबाया नहीं कि
साबुनो सी फिसल
छिटक दूर हों जाते हैं

हैं ना रिश्ते ऐसे ही साबुनो सी..

21/2/12

1 comment:

  1. delightful, simple yet really nice poem.
    www.nitinjain.blogspot.com

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.