लिखना
कभी मेरी चाहत न थी..
कोशिश की भी
कोशिश की भी
जुर्रत न थी शब्दों के कुछ फेर कों
यूं कोई सराह गया
यूं कोई सराह गया
कि लिखना
अब हमारी लत सी बन गयी...
सच पूछिए कभी कुछ लिखने की कोशिश ही नही की थी हमने. हाँ लिखने के कुछ शौक थे. स्कूल के दिनों में पेन-फ्रेंड्स बनाना, कुछ अपनी बातें करना और कुछ उनकी समझना. ज्यादा बातें होती थी कुछ अपने बारे में, कुछ उनके बारे में, कुछ शहर के बाते. बस लिखना इतने तक ही सिमित था. हाँ, हिंदी के मास्टर जी हमे बहुत पसंद करते थे. क्यूंकि मैं उन्ही की तरह था कुछ कुछ. वो सीधे तरीके से उत्तर देना और लेना दोनों नहीं पसंद करते. याद है एक बार ‘निराला’ साहब की एक कविता थी “वो तोडती पत्थर”. बड़ी सुन्दर कविता थी उसके बारे में किसी भी पाठक की भाव की गुन्जायिश कहाँ रहती थी. “निराला” साहब ने इतने सुन्दर ढंग से संजोया था. हम तों हम थे और मास्टर जी मास्टर जी. उन्होंने व्याख्यान लिखने कों दे डाला छमाही में. अंत में लिखा था उत्तर फुरसत से. जब परिणाम आया, उन्होंने पढ़ कर सुना डाला पुरे क्लास कों.. गदगद हों उठे थे शायद. उस वक्त भी ऐसा लगा की इतने घुमावदार भूमिका बाँधी है.. उन्हें मजा आ गया... क्लास के अंत में मजाक का मसाला मिल गया था..खुबे हँसे थे...
हमारे लिए लिखना एक ही बार पागलपन सा हुआ था जब अपने गर्ल-फ्रेंड कों पटाने की कोशिश में कुछ लिखता... प्रेम-पत्र “वेल्कम टू सज्जनपुर” (हिंदी सिनेमा) के “महादेव (एस तलपडे) सी होती, बड़ी मादकता होती थी पत्रों में. पर विधि की विधान, प्रेम पत्र पढ़ कर पट तों गयी पर बाद में निरोत्शाहित कर डाला “कितने बड़े बड़े पत्र लिखते हों...कहाँ से चुराते हों..” वगैरह वगैरह ... यूं कहिये ‘जिसके लिए चोरी की वही कहे चोर’ ..खैर प्रेम-पत्र का गयी पानी लेने. नौकरी के चक्कर में ऐसा फंसा की लिखने के नाम पर मेमो और क्लाईंट कों बिजनेस लेटर ही बच गयी...
कहते हैं जिंदगी एक घूमता पहिया है..चीजें लौट कर आती हैं..जिन से मुलाकात हुई. बहुत अच्छा लिखती है, और लिखने का एक ख्वाब भी सजा रखी है. पर सिर्फ अपने लिए लिखती है.. उन्हें चिढाने के लिए अपने उलूल जुलूल शब्दों में व्यक्त करना शुरू किया..सयाने बनने लोग पकडे ही जाते हैं. सो पकड़ा गया... और उसकाते रही की मैं कुछ लिखू... कोशिश तों करू... और कोशिश कर रहा हूँ..
कोशिश कर रहा हूँ की कैसे भी उसके बराबरी का लिख पावू.. उस जैसे कविता कर पावू.. करीब तक नहीं पहुँच पाता..