Oct 4, 2012

इस जीवन से मैं तृप्त हुआ


चारदीवारी के तंग दामन में
खुरचा,
नोचा,
चिल्लाया
रक्त रंजित हुआ
पर
अधियारे के घुप आँचल से
खुद कों रिहा
ना कर पाया मैं

सहसा,
शायद,
कोई एक
सुबह थी
सन्नाटे के घोर अँधेरे में
लौ एक अंदर
आ फूटी थी

भरी आँख से
भीगे मन से
जर्जर
रुखे-भूखे तन से
लौ कों हमने
इक बार छुआ था
कोमल शांत 
लौ की लौ से
रुखे तन पर
जीवन रस से
स्नान हुआ

खुद कों खुद से
संभाल अपने कों
नन्हे से इस
जीवन श्रोत कों
पाने
मैं बैचेन हुआ ..
उठा गिरा और
गिर कर फिर उठा

चारदीवारी के
गंद दीवार कों
रगडा, खुरचा
खुरचा, रगडा
नख के नोक से
कभी हस्त पटल से   
अधियारे कों
एक दिवार से 
साफ़ किया

साफ़ हुआ जब
विस्मित हुआ तब
फूल कहीं थे
पत्ते वहीँ थे
त्रिन-मूल के
नन्ही बगिया में
खुशियों का अम्बार सजा था.
फूलों की इस बगिया में
खुशियों कों अपने गोद लिए
मालिन बगिया की 
सजी खड़ी थी.

एक दर्श के दर्शन से ही
जीवन का रसपान हुआ
बदल गए मायने अपने
बदल गए कारे अधियारे,
बदल गए शुष्क हवायें
बदल गए निर्जीव तन मन...

फिर भी ....
दीवारों से कैद खड़ा मैं
किंकर्तव्य सा खड़ा रहा.....

रहा गया ना ...
उस रोज कहीं
तोड़ गया सब दीवारों कों
शीशे के चारदीवारों से 
निकल पड़ा मैं
जीवन ले कर..
बगिया के मालिन कों ले कर.

नैनो कों नैनों से धापे
कर कों कर से उनको थामे
तन कों तन से ढाके
लब से लब कों चूम 
जीवन का रसपान किया
तड़प उठा मन
दाहक उठा तन
ह्रदय का ह्रदय से मिलन हुआ
प्रेम रस से विभोर हुआ जब
रूह रूह से मिलन हुआ तब

जीवन यही हैं,
प्रेम यही है
जीवन का स्पर्श यही है
जीवन के इस मीठे भेंट से
इस जीवन से मैं तृप्त हुआ...
इस जीवन से मैं तृप्त हुआ...

2 comments:

  1. Bahut Hi shashakt shabdavali se manobhavon ki abhivyaktee hui hai

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  2. akhen bhar ayi kuch yun sparsh kiya shabdon ne ....
    or hum moun se dekhte rahe......!!!
    bahut sundar bhav se man ki dassha ko chitrit kiya hai...ABHUTPURVA...!!!!!!

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.