Feb 5, 2014

आते जाते ....

किसी तरह की भूमिका में आज शब्दों को गंवाने का कोई मकसद नहीं दिख रहा..
from Design Verb link to image
इस पन्ने पर तुम्हारी जगह बना रखी थी... आज तुम्हारे शब्दों को यहाँ सजा रहा हूँ.....ख़ुशी इस बात की है कि तुमने हमारा मान रखा और अपने शब्द को
यहाँ सजाने की अनुमति दी.... शुक्रिया....

पेश है तुम्हारे शब्द.....चौपाल पर...





आते जाते ....


आते जाते चलते फिरते
चीजें छुट जाती हैं
जाने अनजाने ....
उन गलियों में, जहाँ अब
न तो जाने की ज़रुरत है
ना ही फुर्सत.. उन यादों से नाता छुट जाता है...
जाने अनजाने.....
   
अनजाने, फिर भी कितने पहचाने
रोज़ सफ़र करते
हर दिन, हर रोज़,
वही लोग, वही समय...
जाने अनजाने उनका दिखना
कैसा इत्तेफाक है? है ना?
और जो न दिखे तो?  

आज भी याद है,
माँ के हाथ का सहारा लिए
खड़ी रहती वो नन्ही मुन्नी
हर दिन, उसी समय, बस की राह तकती
अब कहाँ मिलते हैं ये चेहरे
चीजें छुट जाती हैं
जाने अनजाने....

ना पहचान, ना रिश्ता, ना नाता
फिर भी, उन चेहरों का
अब भी याद आना?
पर सच तो ये है,
चीजें छुट जाती हैं
जाने अनजाने...


कैसा होता होगा जब जाने पहचाने,
दिल से बनाये रिश्ते- नाते, चीजें
छुट जाते हैं ?
कभी जाने कभी अनजाने...
कभी सोचती हूँ तो,
सवालों का जवाब कहाँ ला पाती हूँ..


किसी सन्नाटे में
दबे पांव चुपचाप
बिना कुछ कहे
चले जाना
आसान है ना?
महसूस हुआ आज...

कई बार ये मुकाम आये और गए
पर आज सच में महसूस हुआ
शायद बहुत आसान है....
हाँ
शायद बहुत ही आसान है...
आज यकीन हो ही गया...

आते जाते चलते फिरते,
चीजें छूट जाती हैं
जाने अनजाने


इति....... sona....

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.