Feb 5, 2014

.पतंग...

ज़िन्दगी से जब आपका रिश्ता लहरों सा हो, तो पलों का वेग में आना, कहीं अदृश्य हो खो जाना, आपका उठ खड़ा होना तो
Credit: google image
कभी झुक जाना कोई नयी बात नहीं होती. ऐसे ही ज़िन्दगी कुछ लोग हंस के काट लेते हैं
, कुछ रो कर तो कुछ हमसा लड़ झगड़ कर. बचपन से पतंगों का बड़ा शौक था. गर्मी के छुट्टियों में ननिहाल चले जाया करते थे हम सभी परिवार. बिहार में पतंगों का ऐस दीवानापन हैं जो हमने कहीं और नहीं देखी. हाँ सुना है कि गुजरात में संक्रांति के समय पतंग उड़ाने का रिवाज़ है. पर शायद साल भर जैसे पतंग बिहार में उड़ाते है वो कहीं नहीं. छत से गिरते हुए बच्चे, मांझे को बनाते हुए कटते हाथों के किस्से, पतंग लुटने के पागलपन में कुवों तक में लोगो के गिरने के किस्से सुने हैं.. जेठ के गरम दुपहरिया में पतंग उड़ाने का जो मजा है और बाद में बाबा के हाथ पीटने का.... शायद और किसी खेल में नहीं. हमारे पास भी हुआ करता था बिहार की लटाई. बड़ी प्यारी दिखने में हुआ करती थी. पूरी पतंगबाजी धागे को बिन छुए ही कर सकते थे....
लीजिये पतंग की बात की तो शुरू ही हो गया. अब बचपन के अल्ल्हड़ दिनों की बातें तो रही नहीं. कलमों पे सफेदी आ गयी है ननिहाल से रुख बदल गया है. अब तो गंभीरता के चोले को पहने हम बड़े होने का स्वांग ही रच पाते हैं. अब कभी कहीं मैदान पर पतंग को उड़ाते देखते हैं तो फलसफों का रेला सा लगा लेते हैं. पतंग का फडफडा कर उड़ना, एक दूजे से लड़ना, ऊपर नीचे गुलाटियां मारना, कट के हवा में लहराते जाना, कितने खेल हैं इस पतंग के.
पतंग के इस खेल में सबसे बड़े किरदार को हम भूल ही जाते हैं... जी नहीं, उड़ने वाला नहीं, हाँ लटाई भी नहीं. हम मानते हैं की इस खेल का सबसे बड़ा किरदार है: पतंग - लटाई से बधी सूत. सूत न हो, तो न पतंग की परवाज़ है न लटाई की लपेटन. सूत का मजबूत होना, सूत से मांझे का सांझा होना ही पतंग का अस्तित्व है, सूत से ही पतंग की परवाज़ है, आसमान को छू पाने का गर्व है, गुलाटिओं से जमीन को ललचा कर उड़ जाने का शौक है. सूत की महत्वता ही पतंग को
गौरान्वित कर पाता है. पतंग और लटाई के प्रेम की डोर सी ही तो होती है सूत.
सोचता हूँ क्या रिश्ते भी सूत से ही नहीं होते, दो इन्सानों को बांधे? सूत गर मजबूत हो तो पतंग की चंचलता और लटाई की लपेटन बनी रहती है. सूत टुटी तो दोनों अलग थलग. रिश्ते गर मजबूत हों तो इन्सान साथ साथ चल पाते हैं. मस्त हवाओं के थपेड़ों को झेलते, लड़ते, नभ को छूते. रिश्ते मजबूत हों तो एक दुसरे को समझने की ताकत होती है.... चाह कर एक झुक जाए, छुप जाए, तो दूसरा अडिग रहता है.....
फिर हम दूर होने की बातें क्यूँ सोचते हैं.....
सोचता हूँ मैं.....
क्या सूत मजबूत न थी?
या, थपेड़ों में सूत ने अपने मांझे को खो दी?

क्या है? क्यूँ है? सोच रहा हूँ ....पतंगों के फडफडाहट में ......

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