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बाबा का श्राद्ध था
आज
गुडिया उदास थी
सबेरे से ही
बाबा की श्राद्ध पर
ग़मगीन माहौल में भी
गरमागरम माहौल था,
बाबा के निर्स्वार्थ
प्रेम का
लेखाजोखा
समेटने का माहौल था.
गुडिया के अम्मा ने
तो
फरमान ही सुना डाला
था
चाहे जो भी,
श्राद्ध गाँव के
महंगे-लुटेरे
गबरू पंडित के
हाथों ही होगा,
बाबा ने बहुत पैसे
उड़ाए थे
परिवार के लिए
श्राद्ध पर कुछ हम
भी
खरच ले तो उन्हें
उस पार भी सुकून
होगा.
महंगे खटिया, मेज़, कुर्सी,
लोटा, सिल्क की धोती - कुरता,
नायलॉन की बढ़िया
जुराबें,
ठंडी की शाल, बंडी, दुशाला
चमडे की जुत्ती,
बाटा की हवाई
पंडिताइन की सारी
ब्लाउज
रे-बेन की सनग्लास
मोटी ग्लास का पावर
चस्मा
गबरुआ को
श्राद्ध-दान में देने का,
अम्मा ने फरमान
सुनाया.
बडे चाचा ने तो
अम्मा के हाँ में
हाँ मिलाया
लिस्ट में सब कूछ
जोड़ते हुए
बैतरनी पार करने के
लिए
गबरुवा के साथ कुछ
अपनी
सेटिंग भी लगा लिए
बछिया दान के लिए.
गबरुआ पंडित बछिया
ले आयेंगे
बदले में पांच हज़ार
बछिया दान के ले
जावेंगे
बाबा इस जहाँ से
बैतरनी पार
बछिया के पुछ पकड़ कर
जावेंगे
गबरुआ और चाचा के
बंडी में
हरे हरे नोट जायेंगे
मंटू भैया, सबसे बडे थे,
गुडिया के अब पिता
से थे.
पुरे गाँव को न्योता
बाँट आये
रंगिया शामियाने से
सफ़ेद शामियाना
बड़े मैदान में लगाने
का
फरमान भी दे आये.
बाबा की श्राद्ध में
कोई कमी न हो,
गाँव में अपनी शाख
में
कोई आंच न हो
आदेश सख्ती से सुना
आये.
सफ़ेद धोती कुरते में
आज भी भाभी की
पल्लू थामे
बंटू भैया बाबा के
श्राद्ध के
खान पान में जुडे थे
नियम की
पूडी-बूंदीया के अलावा
पनीर कोफ्ता,
नवरतन कोरमा,
पुलाव, भात, पूरी,
मिठाई के अलावा
चाइनीज़ की भी
व्यवस्था करवाई थी
बाबा के श्राद्ध में
कोई खाना को
न दोष दे पाए
भाभी की ऐसी ज़िद थी,
उनके नईहर से भी लोग
आवेंगे
भैया को समझाई थी.
सभी अपने अपने काम
से जुडे थे
गुडिया बाबा के
यादों से जुडी थी,
परिवार मोहल्ले के
लोगों ने
बहुत रुलाने की
कोशीश की थी
गुडिया की आंसू अब
तक
आँखों से ही जुडी थी
बाबा के गए तेरह दिन
हो आये थे
एक बार भी बाबा के
यादों में
गुडिया न रोई थी.
लोगों का कहना था,
गर न रोई ये
जल्द ही सदमे का
इलाज़ करवाना पड़ेगा
जबरदस्ती गुडिया को
रुलाना पड़ेगा
नहीं, बाबा ऐसा नहीं कर
सकते
कह वो बार बार
बडबडाती
फिर मौन पड जाती
सोचती, आज अम्मा
बाबा के नाम पर
इतना कुछ दिखावे के
दान कर रही हैं,
बाबा उनके संग
दो पल को तरसते थे
बाबा ने सिंदूर दान
किया था, पर
अम्मा लिपस्टिक
साडी से मैच कर
ज़िन्दगी भर मांग
संजोयी थी .
थक जब बाबा काम से
घर आते
टीवी से चिपकी अम्मा
उठ कर भी न आती थी
पानी का ग्लास में
अपनी मुस्कान घोल
गुडिया ही तो पानी
लाती थी
बाबा के अगोछा, कुरता, पजामा
सबेरे से इस्त्री
रखती
शाम तक बाबा आयेंगे
दिन भर राह तकती
थी...
दोनों भैया को,
बाबा ने पूरब वाली
ज़मीन बेच शहर में
पढाया था.
मुछों पे ताव दे
सारे मोहल्ले कहते
दो हाथों को
उन्होंने खूब
मज़बूत बनाया है
शहर के अच्छे माहौल
में
दोनों को शिक्षित
बनाया है
मज़बूत जब दोनों
बाहें हुई
कमज़ोर बाबा के कंधे
हुए
बाबा के सपूत
शहर में ही घर कर गए
तंगी का बहाना कर
बाबा को बीमार गाँव
में ही रख गए
खांसते, कमज़ोर बाबा की
सारी सेवा का जिम्मा
बिस्तर पर ही
गुडिया ने सम्भाला
था
बाबा की लाडली थी वो
एक पल भी उन्होंने
उसे
अकेले न छोड़ा था,
फिर क्यूँ बाबा की
अंतिम पलों में
लोग उसे उनके पास
रहने न दिया
बेटी होने का कारण
बता
अंतिम क्रिया से उसे
वंचित किया
बाबा की अंतिम इच्छा
भी तो यही थी
बेटे के रहते भी
गुडिया के हाथों
मुखाग्नि की इच्छा
उनकी प्रबल थी.
गुडिया पेशोपेश में
थी,
बिन बात का आडम्बर
बिन बात का दान
दिखावा
से वो उदास थी.
बाबा ने अपनी
ज़िन्दगी
परिवार को समर्पित
की थी
परिवार ने कभी
उन्हें उनकी
इज्जत न दी थी
फिर आज श्राद्ध में
एक ही प्रश्न उसे खा
रही थी ...क्यूँ
ऐसा दिखावा?
अपने बाबा से वो पूछ
रही थी
सहसा बाबा की वो
कहानी याद आई
अंतिम के वो दो
पंक्ति याद आई
जिसे कह बाबा खूब
हँसते थे
गुडिया को बाँहों
में ले खूब प्यार करते थे..
बाबा कहते थे...
जीयला पर दे ल गारी (-जियाला = ज़िन्दगी, जिंदा रहने पर | गारी= गाली)
मुअला पर लोटा थाली (-मुअला = मरने पर )
गुडिया हंस उठी.....
हँसते हँसते वो रो
पड़ी..
बहुत रोई.
ठीक ही कहते थे
बाबा.....मुअला पर लोटा थाली
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.