आज सबेरे सबेरे
चौपाल पर आया तो ददूआ चाचा से अपनी पहली कप चाय पीने के लिए रुखसत हुआ. चाय की
दरखास्त दी और सहसा नज़र पड़ी ददुआ चाचा की दुकान पर पर तो लगा कि कहीं गलत जगह आ
गया हूँ. आज दुकान बड़ी चकाचक सजी हुई थी. साफ़ सुथरे ढंग से सजी हुई ददुआ चाचा की
दुकान. पास में अरसों से पड़े टूटे कुल्हड़ की अम्बार भी नदारद थी.
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हमने कहा “का हो ददुआ चाचा, बड़ी रौनक सजाये हो, बड़ी टीपटाप दुकान
सजोये हो आज. कौनो ख़ास बात बा का”.
ददुआ चाचा खीसें
निपोरते अपनी पीली दांत निकाल कहने लगे, “अरे बबुआ का बताये, ई सब नटरुआ का कईल
धराईल है. बुढ़ापा में न जाने का का करवाएगा ससुरा.”
अरे हाँ नटरुवा कौन
है पूछेंगे, तो बताये आपको, ददुआ चाचा का पंचम राग है आंठ बरस का होगा. चार बेटी हुई तो एक बेटा पैदा हुआ
था. नाम निर्मल रखा था. पांच छह साल के उम्र में ही गाँव वालों ने कह दिया अब तो
कद नहीं बढेगा. हमउम्र के बच्चों में सबसे नाटा जो था निर्मलवा. सो नाम पड़ गया
नटरुआ. नाटे कद का, हुडदंग में पक्का, न हंसाये तो भी उसकी खुराफाती देख, हंसी आ जाती सभी को.
हँसते हुए हमने पूछा “ क्यूँ अब का किया नटरुवा”?
चाचा कहने लगे, “अरे आशु बाबु का
बताये हम, आजकल के लौंडों को, दिन भर हुडदंग करते फिरते हैं और रात को दलान में बैठ कर टीवी देखते हैं. कोई
कह दिया नटरुआ को, अरे तोरा बाबु भी तो चाय बेचत हैं. तू
भी देश का परधानमंत्री बनेगा. बस उसी दिन आ कर घर में राग अलापने लगा. चाय बेचे
वाला के बेटा नटरु उस्ताद भी पीरधान मनतरी बनेगा. चिढाते ही रेखवा कहने लगी, बुरबक पहिले पिरधान
मंत्री को ठीक से तो बोलना सीख, पीरधान मनतरी नहीं रे प्रधानमंत्री बोल. बस वू
दिन है और आज का ऐसन न सुर धईले है”.
हंसी के फोवारे में
मन ही मन मैं सोचने लगा की वाह मोदी साहब क्या रंग फेरा है देश में बच्चों के मन
में भी लालसा जनम लेने लगी. फिर पुछ बैठा “उसके बाद क्या हुआ..हुडदंग थमी?”
“ अरे बबुआ मत पूछो, अगले दिन घर आया तो
देखा चची तोहरा धुन रही है नटरुआ को. पूछे की का बात है काहे पीट रही हो. कहने लगी
की घर का झाड़ू ले गया बाहर और उसके हिस्से बना बना के झाड़ू सा सब लंठवन में बाँट
आया. कहता है, अब जो घर के बाहर गन्दा फैलाएगा, उनके घर बुहांरेंगे. बाबूजी स्कूल के ढेरों बच्चे
इस के साथ जुड़ आये हैं. स्कूल में जाते वखत और उन्हा से आते वखत, रास्ते भर झाड़ू को
कंधे पे बन्दूक सा रख कर स्वच्छ भारत, सुन्दर भारत का नारा लगाते हैं. निक्कर संभालती
नहीं ठीक से ससुरा नेता बनत घूम रहा है”
कहते गए.. “जहाँ गन्दा देखे तो
किताब वहीँ किनारे रख, चंडाल चौकड़ी लग जाती है काम पे. सारा कचड़ा उठाते हैं और जिनके घर का कचड़ा
उन्ही के घर के अन्दर फेंक आते हैं. अरे कल्हे तो सब को कलुआ
मुसहर रखेद के दौड़ाया. ई चंडाल चौकड़ी का किये थे कि कलुआ के घर के बाहर गन्दा रहा.
सब मिल के साफ़ किये और पायन्ट खोल खोल के नाचे, कलुआ चाचा गंदे चाचा, गन्दा फैलाते
बिमारी लाते...कलुआ चाचा गन्दा चाचा. झोपड़ी के सामने हो हल्ला होए तो मोहल्ला के
सब लोगन भी तमाशा में जुट जाए रहे... खूब बवाल मचाये. कलुआ पीछे पीछे और ई चंडाल
चौकरी आगे आगे निक्कर संभाले.” ददुआ चाचा गंदे पीले दांत को निपोरे ताली बजा बजा हँसे.
हमारी भी हालत हंस हंस के ख़राब थी.
चाचा को तो आज मौका
मिला कभी गुस्साते तो कभी हँसते कहने लगे, “जानते हैं साहेब कल ससुरा चंडाल चौकरी
स्कूल में झालर बूम देश का झंडा रहा. सब उखाड़ लाये हैं. कहते हैं की जो अपना घर का
बाहर साफ़ रखेगा उनके द्वार पे हम झंडा चिपकाएंगे.
सब लोगों को बताएँगे कितना अच्छा परिवार है. घर मोहल्ला साफ़ रखते हैं. और जिनके घर
दुवार साफ़ नहीं रहेंगे उनके घर बबुल की टहनी टांगेंगे. ससुरा पिटाएगा एक दिन. हम
सोचे की रोके नटरुवा को. गाँव जवार में दुश्मनी करवाये देगा. लेकिन कुछो नहीं कर
सके. स्कूल के टोली में, मोहल्ला की कुछ औरतन भी साथ देने लगी है. कुछेक तो छाछ
पिलाती हैं सबन को. अपनी औरत को कहे की काहे नहीं रोकती हो बिटवा को, तो कहती है
की काहे डेरा गए. तुम्हरो दोकान बहुत गन्दा है. ठीक न कर्र रहा बदमशवा सब. हम ता न
रोकब. हम भी सोच रहे हैं ठीके तो है नटरुवा और लौवंडन सब. साफ़ रखने में जाता ही का
है... थोडा सा मेहनत है सब स्वस्थ रहेंगे” ददुआ चाचा बैठ गए कहते कहते, ऐसे जैसे
सब मान गए थे. बातों के सिलसिले में हम कब दो कप चाय गटक गए थे पता ही नहीं चला.
हम भी ददुआ चाचा को राम राम कह के निकल पड़े.
रास्ते में सोचते गए,
बच्चे में दम है. श्री नरेन्द्र मोदी ( Narendra Modi ) साहब ने एक क्रांति का एलन कर दिया है. गाँधी जी
ने गुलामी से आज़ादी की दम भर के देश को एकता के सूत्र में बाँधा था. बर्षों बाद मोदी
जी ने गन्दगी से आज़ादी को मंत्र दे कर देश को एक बार फिर एकता सूत्र मैं बाँध दिए.
आज हर कोई एक छोटी सी पहल करने को तैयार है और कर भी रहा है. शुक्रिया मोदी जी,
देश बदलेगा. एक कदम की ही जरूरत होती है. बढाया तो हम चलने लगते हैं. नटरुवा की एक
बाद बहुत पसंद आई. झंडा लगाने वाली बात. जब इतना कुछ हो ही रहा तो क्यूँ न हम भी
कुछ ऐसा शुरू करे. हम प्रतिज्ञा तो ले ही लिए हैं “स्वच्छ भारत” निर्माण का. अब अपने
सामने के कुछ और लोगों को प्रेरित करे. एक बैज बनाये “स्वच्छ भारत” का, जो हम फक्र
से पहने. जिन्हें देख कर हमसे मिलने वाला भी सोच में पड़े और वो भी एक कदम आगे
बढ़ाये. कोट पे, टाई पे, शर्ट पे फक्र से बैज पहने. क्यूँ फक्र न हो देश को हमने
कुछ पल दिए हैं, देश को आगे बढ़ने का प्रण लिए हैं. एक एप्पलेट (Applet) बनाये जो
ऐसे पोस्टर बनाने में मदद करे. कुछ कर तो सकते हैं..
एक ब्लॉगर होने के
हैसिअत से सोचता हूँ, क्यूँ न हम भी इस क्रांति में अपने तरीके से शामिल हों. Blogspot, Wordpress, Indiblogger सभी एक विडगेट (Widget) बनाये, जिसे ब्लॉगर अपने ब्लॉग में सजाये. हम भी फक्र
से कह सके की हमने प्रण लिया है “स्वच्छ भारत” (Swachh Bharat) के निर्माण का,
मोदी जी के संग जुड़ पड़े और देश को संवारे... बहुत हो गया गन्दी बस्ती गंदे मोहल्ले
का दृश्य.. अब साफ़ सुथरा देश की चाह हम रखते हैं.. बहुत लोगों ने कह दिया की हम
सपेरों के देश में गन्दी बस्तियों में रहते हैं... बहुत हुआ....अब
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.