अनेकों धर्मों से
जुडी ये नायब देश में हर नागरिक चाहे वो शहरी हो या किसी के कोने में रह रहा एक
अनपढ़ इन्सान किसी न किसी आस्था से किसी न किसी धर्म से खुद को बांधता ही है. और गर
हम ध्यान से किसी भी धर्म को ले, उस आस्था का जन्म
हमारे किताबों या ग्रंथों के ईजाद होने से पहले ही हुआ था. उन दौरान भी ज्ञानी, ऋषि, पैगम्बर, सभी आम इंसानों से कहीं बहुत ज्यादा ज्ञानी थे.
उन दिनों लोगों को अच्छे व्यवहारों को अपनाने के लिए ईश्वर का या एक परम आस्था का
वास्ता दे कर पालन करने की बातें बताते. वे बातें ही धर्म के किताबों में दिखे.
स्वच्छ व्यवहार की ज्ञान तो सभी धर्मों में उपलब्ध हैं. हिन्दू के चरकसंहिता में
तो पूर्ण विवरण हैं.
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हिन्दू धर्म के
अनुसार पूजा के पूर्व स्नान कर अपने आप को शुद्ध करना अनिवार्य है जो स्वस्थ जीवन
का मूल मंत्र है.
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भोजन को अन्नदेवी का प्रसाद माना जाता था और इसीलिए भोजन ग्रहण करने के पूर्व हाथ का शुद्ध-स्वच्छ रहना आवश्यक बताया गया है.
भोजन को अन्नदेवी का प्रसाद माना जाता था और इसीलिए भोजन ग्रहण करने के पूर्व हाथ का शुद्ध-स्वच्छ रहना आवश्यक बताया गया है.
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मल-मूत्र के छु जाने
पर भी स्नान या पानी से पूर्ण तरीके से धो कर शुद्ध कर लेने का मंत्र है.
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बासी भोजन का अशुद्ध
माना गया है.
इन्ही तर्जों पर बौध, जैन, ईसाई, एवं अन्य धर्मों ने भी यही नियमों के पालन करने
की हिदायत दी हैं. ईस्लाम में तो हर नमाज़
के पहले “वुडू” या “गुशल” के नियमों को पालन
करना आवश्यक बताया गया है. नियमों में तो हर अंग के सफाई के तरीके तक लिखे हुए
हैं. कई मस्जिदों में तो पोस्टर लगाये जाते हैं कि नमाज़ से पहले सफाई कैसे हो.
कम से कम ईश्वर के
आराधना करने वाले इन्हें इश्वर के नाम पर ही स्वछता पालन करे. किसी नए फार्मूला का
इजाद नहीं हुआ है.
न जाने कितने
बीमारियाँ फैलती हैं, स्वच्छ न रहे तो. सोच कर देखे इस के बारे में :
यदि फिर भी कौतुही
हो स्वच्छ ने रहने कि तो आप खुद एक हिसाब करे, आर्थिक हानी पर. मान लें, खुदा न खास्ता यदि
आप बीमार पड़ते हैं, तो आपको डॉक्टर के
पास जाना पड़ेगा, उनसे दवाई लेनी
पड़ेगी, हो सकता है हॉस्पिटल जाना पड़े. इन सब से पैसे
खर्च होते हैं. यदि आपके घर में कम से कम चार लोग भी हैं, ये खर्च कम से कम वर्ष में एक बार होता ही है.
हिसाब लगा के देखें की कितना पैसा आपका खर्च होता है बेफजूल के बिमारी में. ये
पैसा आप बचत कर सकते थे. सिर्फ अपने आप को और अपने परिवेश को स्वच्छ रख कर.
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.