My Inspiration : My Dream |
कोरे कागज़ पर जब आढे तिरछे
लाइनों को खीच खींच कर ड्राइंग बनाना सीखा तो त्रिकोण के तीनों कोण से प्यार सा हो
गया. तीन कोण बनते और उसके ऊपर एक आधा सा सर्कल. कुल मिला के एक पहाड़ से बन जाते.
बीच के कोण से दो लम्बी टेढ़ी लाइन खींच हमारी नदी बन जाती. नीले क्रेयोन से आसमान
और नदी बनते, संतरे रंग से सूरज. पहाड़ों के साथ हमारा प्रेम गहरा सा था. हरे रंग के पहाड़
होते पर लाल नीले पीले बड़े-बड़े फूलों से उन्हें सजाया जाता. यूँ कहिये तो पहाड़ बड़े
ही रंगीन बनते और कभी कभी तो उन पर लम्बी धारियाँ होती या बॉक्स से चकौर डिजाईन.
यूँ था हमारा प्यार पहाड़ों से. पहाड़ों से परिचय तो शिलोंग के दिनों से ही था.
तिकोन पहाड़ियों से लगाव कब इतना प्रबल हो उठा कि पीठ पर सामान, बगल में कैमरा और ट्रैकिंग
निकल पड़ने का सपना प्रबल होता गया. शिलांग, गंगटोक की पहाड़ियों पर कई बार गए पर हर बार यही
हुआ यही महसूस हुआ कि पहाड़ियों की उचाई हमारे तिकोन की पहाड़ियों से काफी छोटी हैं.
भागते भागते ज़िन्दगी के इस
दौर पर आ गया, जहाँ शरीर की ताकत सपनों से हराती दिखी. डायबेटिक्स, ब्लड-प्रेशर, कोलेस्ट्रोल जैसे सुख-रोगों
ने आ धरा. रोज़ के इधर उधर के टेंशन तो शायद फ़ोकट में हमे मिली हैं. इन सब में
पहाड़ों पर ट्रैकिंग का सपना छुटता सा गया.
पिछले साल हमने सुर पकड़ा है (वैसे क्रेडिट किसी और को जाता है) कि 2015 तक कम से
कम बेस केम्प तक तो जरूर पहुचेंगे. हाँ, जानते हैं कि एवेरेस्ट बेस केम्प पहुचना बहुत
कठीन नहीं है पर अपने सुखरोगों को हरा कर ही हम निकल सकते हैं. इस प्रण के साथ
पिछले एक साल से हम रोज़ डेढ़ घंटे ब्रिस्क्वाल्क और जॉगिंग करते हैं. पांच किलो वजन
घटा चुके हैं अब लगभग नार्मल वजन है. दस किलोमीटर की तैयारी रोज़ की है.
पहले कदम के हिसाब से हमने
काठमांडू जाने का निश्चय किया है. कुछ दिनों के लिए शब्दों के टंकण से, चौपाल से
हम विदा लेंगे. सपनों के पहली कदम पर आप से शुभकामनायें की आशा रहेगी... लौट कर
ढेर सारे शब्दों से चौपाल फिर सजायेंगे.... यूँ ही आते रहिएगा....
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.