आज सबेरे बड़ी देर से उठा, चाय भी नहीं पी थी घर मैं, क्यूंकि घर पर कई दिनों से हड़ताल सा था. नाराज़गी से गृह-राष्ट्र में हड़ताल का माहौल सा था. राष्ट्र के वित्त एवं मनोरंजन मंत्री यानि कि हम से राष्ट्रपत्नी का संवेदनशील मसलों पे मतभेद चल रहा था. और खामियाजा हमे भुगतना भी पड़ रहा था. खैर, सो तो होना ही था. सबेरे की चाय हमे वैसे मिलती तो नहीं थी कभी, खुद ही बनानी पड़ती थी, सो आज भी नहीं मिली थी. पर, आज इस बात का दुःख हो रहा था कि हमने घर पे चाय नहीं मिली. सो, चौपाल पर आते वक्त हमने ददुआ चाचा के यहाँ से कागज के कप में चाय भरवा ली थी और लेते आये. चौपाल पहुंचे तो देखे कई लोग पहले से ही मौजूद थे. मीठू बाबु, मद्रासी भाई, रामदिन चाचा, सब मौजूद थे. हमे देखते ही राम राम आशू बाबु के बोल निकलने लगे. ठंडी पड़ी मनोस्थाली थोड़ी हलचल में आ गयी. मुस्कुरा कर हमने भी सबको अभिवादन कर पुछ ही लिया रामदीन काका से. “ काका का बात है काकी आज कल छोड़ नहीं रही या हम से मन मुटाव हो गया है, जो चौपाल पर नज़र ही नहीं आते?” रामदीन काका बोले “बिटवा सब घरवा के एके सुर होयितयी. जहवां देख तोर काकी नीयन सबे बईठल हई. कोनो न कोनो बतवा पे तुनक जात हई. का बताय कहे नहीं आवत हैं इहवा.” सब सुनकर रामदीन काका कि बात पर हसने लगे. मीठू बाबु और मद्रासी बाबु लगे हुए थे गहन विवेचना में. पूछे उनसे “क्या बात है भाई बड़े गहन भाव से बातें चल रही हैं? क्या मुद्दा है?” मिट्ठू बाबु को तो बस मौका ही चाहिए था, बोलना शुरू कर दिए. “ की बोलबो आशू बाबु, जे दिके देखो उधर में राजनीती में झामेला है. लीबिया में राष्ट्रपति को उखाड फेंका, उसके बाद से सोब जाएगा में एक टार पोर एकटा जायेगा में रेवोल्युशन चालू हो गया. सोब पूराना राजनेता को लोक जे निजेयी खारा किया था अब उसके पीछे पड़ के उसको गिराना चाहता है. सोब जाएगा कोथाये थेके एतो एनार्जी आया. अमार जायेगा में भी पोरिवोर्तन चाई बोले बुद्धोबाबु को भी हरा दिया. अमादेर बामपोंथी दोल को भी निकाल दिया. कि बोलबो भालो लागे न....” चलते गयी चलते गयी उनकी राजनैतिक ज्ञान और हम सुनते रहे सुनते रहे.... मीठू बाबु रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे बड़े खफा से थे राजनैतिक उथल पुथल से. धीरे धीरे लोगों ने काटना शुरू किया और निकल पड़े . खफा हुए मीठूबाबु भी चले गए. हम चाय की चुस्कियों को मजा ले चुके थे. ददुआ चाचा को आवाज़ दी को कलुआ के हाथों गरम चाय भिजवा दिए.सोचे की चलो अब शांति मन से चाय कि चुस्की ले ली जाए राजनेतिक उथल पुथल से हमे क्या करना.
चाय पीते पीते हम भी सोचने लगे कि राजनीती भी कैसी होती है. एक नेता को जिन्हें हम जानते नहीं पहचानते नहीं, उनके लच्छेदार भाषण को सुन कर उन्हें हम वोट कर उन्हें जिताते हैं और कुछ पलों बाद वही हमे भूल जाता है. कुछ करता भी नहीं. सोच कर देखे तो जिन्हें हम जिताते हैं उनसे हमने कभी उसके काम के बारे में कभी पूछा. मान लीजिए वित्त मंत्री का पद का उम्मीदवार है, उस से कभी पूछा कि अगले पांच सालों में आप ऐसा क्या उखाड लेंगे, या क्या करेंगे कि देश का भला होगा. कभी भाषण में हमने उनके कहे लच्छेदार बातों को सोचा है कि क्या कहना चाहते है? नहीं, कुछ नहीं पूछते, किसी को उस पद तक पहुँचाने के लिए. भले अपने नौकरी के लिए दसियों साक्षातकार दिए हो. खैर, रीत ही ऐसी है...हम क्यूँ परेशां हों? चाय कि चुस्किया लेते गए.... मजा आ रहा था.
पर दूसरी बात ये भी है कि इतने भरोसो के बाद वो नेता दुखहर्ता से दुखदाता कैसे बन जाता है. सोचकर देखे तो दिखा कि हम आम आदमियों को जब भी एक ताकत मिलती है, उसे हम भरसक दुरुपोयोग करते हैं. और ये गलत भी नहीं. सदियों से चला आ रहा है. याद है मुझे वो शिव और राक्षस कि कहानी. नाम क्या था याद नहीं आ रहा उस असुर का . भगवान शिव को प्रसन्न कर एक असुर ने वर प्राप्त की कि जब भी वो किसी के सर पर हाथ रखेगा उसकी मृत्यु हो जायेगी. बिना सोचे भगवन शिव ने वर तो दे डाला. पर, उस असुर ने शिव पर ही वरदान की आजमाईश करनी चाहिए. किसी तरह शिव भगवन नन्हे गणेश के चतुराई से बच पाए नहीं तो वरदान से खुद ही झुलस गए होते. बिन सोचे समझे दिए गए वर की परिणाम भगवान शंकर ने तो कभी सोचा भी न होगा. वैसे भी देखे तो भगवन शंकर की जो मूरत है वो बड़ी ही न्यारी रही है. नशे की लत, मदिरा के भक्त, गण गानिकावों की सोहबत, प्रशंसक असुरों के देव, साँपों की माला .. बड़े ही न्यारे रूप में होते हैं भगवन. बड़े ही आसानी से प्रभावित होने वाले. किसी असुर ने तप किया नहीं की प्रसन्न हो पड़े, मन वान्छीत वर उसे दे डाला. अब आप पूछेंगे राजनीती की बातें करते करते हम धार्मिक कैसे हो पड़े. हाँ भाई, ठीक ही सोचा आपने. अब देखिये, आज हमारी जनता, हम सब, सभी शंकर भगवन की तरह ही तो हैं. थोडा सा किसी ने मीठी बात कह डाली की हम खुश हो पड़े, किसी ने थोडा सा तुनका दिया की नाराज़ हो पड़े. हर एक इन्सान आज शिव सा भोला भला सा है. इनही शिवो के बीच कई असुर हैं जो निजी स्वार्थ के लिए शिवों को प्रसन्ना कर अपना काम निकाल लेते हैं. हैं न हर कोई शिव सा और उनमें ही छिपे कहीं असुरों के बीच? नेतावों के रूप में छिपे असुरों को हम जैसे लोग शैविक शक्ति से वोटों के रूप में वर दे डालते हैं. वे असुर वरदान पा हम वरदातावों पर ही वार करने लगते हैं. और जब ये असुर शक्तिशाली बन जातें हैं तो हम गणेश या शक्तिरूपी माँ के चरणों में जा मुक्ति ढून्दते हैं और विद्रोह कर जाते हैं... लीबिया हो बाहरेन हो या बंगाल, सब जगह एक विद्रोह होता है एक असुर का पराजय होता है. पर विधाता की विधि भी कैसी,,, वहीँ एक और असुर का जन्म होता है,...
अरे भाई, चाय की चुस्कीयों में कहाँ कहाँ से विचार उत्पन्न हो रहे हैं. अब भाई लोगों को शिव का रूप दिखा के उन्हें दोष तो नहीं दे सकता. अंदर झांक कर देखें तो दिखेगा की ये शिव तो जन्म ही शैविक शक्ति ले कर उत्पन्न होते हैं. घर परिवार से ही ये कहानी शुरू होती है. और वरदान पर वरदान देते रहते हैं. एक प्रलोभन दिखा नहीं की कि एक असुरका जन्म हो जाता है
बालपन से यौवन ही नहीं कि वर देने कि ताकत हम में आ जाती है और शिव बन उठाते हैं, कुछ पसंद आया नहीं कि प्रसन्न हो उठे. सौन्दर्यता का पान हुआ नहीं कि लोभासुर का जन्म हो उठती है, काम के विचार पर कामासुर का, धन के लोभ पे धनासुर का. वगैरह वगैरह . न जाने कितने असुरों का उत्पति होती है, और हम इन असुरों के वश में आ कर वर पे वर देते चले जाते हैं. नारी की सौंदर्य से प्रभावित हुए नहीं की कामासुर का जन्म और विवाह का वर उस सौंदर्या को दे डाला. विवाह करते ही एक एक कर वर हम देते जातें हैं, एक वक्त ऐसा आता है एक दिन पता चलता है की असुर महा-असुर बन उठा. एक बार पत्नी के आग्रह पर सबेरे सबेरे उठ कर पाने चाय बना डाला, अब स्थिती ऐसी हो पड़ी कि वो सबेरे का खास लम्हा जिन्हें अँगरेज़ लोग बेड टी कहते हैं और मेरी कमजोरी हुआ करती थी, अब दुर्लभ हो गयी है. पहले हम हर समस्या पर उनकी राय लिया करते थे आज हर राय समस्या बन गयी है. एक बार उनकी मर्ज़ी पर खाना खाना क्या मान लिया की अब उनकी मर्ज़ी से ही खाया करते हैं. क्या सुनावू अब शिव सा बन हम सब मानते गए और पत्न्यासुर को वर देते गए आज हम दुर्बल और वो सबल हो पड़ी. हथेली थामी थी पाणिग्रहण के वक्त, अब पानी ग्रहण भी दुर्लभ हो गया है. कहने का मतलब यह है की शैविक दुर्बल्ताओं में ही असुर का जन्म होता है. घर से सीखी आदतें समाज में और समाज से राष्ट्र चरित्र पर उजागर होती है. शिव से जन्मा राष्ट्रासुर एक न एक दिन विद्रोह के चक्र में आएगा और भालावों, त्रिशुलों और कटारों से असुरत्व से मुक्ति पायेगा. लीबिया हो या बंगाल तख्तों का पलट तो होगा ही.
खैर कई कई बातें ज़हन में आती हैं चौपाल के इस उथली पथली सी ज़मीन पर. खैर अब चुस्किया समाप्त हुई, आज के लिए तो में चौपाल से उठू और चलू राष्ट्रपत्नी के अगवाह में. कभी न कभी इनकी त्रास से हमे भी मुक्ति मिलेगी, शिव की त्रिशूल भी कभी न कभी तो चमकेगी....पर, शिव का विद्रोह कब होगा कब ???
चलू में अब .. निकलू काम धंधे पर..गृह-राष्ट्र के अर्थ संग्रह पे पसीना बहाने...
तब तक के लिए ....
ओम् नमः शिवाय....नमः शिवाय......नमः शिवाय
२५/५/११
छलक कर अखियों के मोती
ReplyDeleteजब सुख चुके होंगे
तब होगा विद्रोह...
औरों के भीड़ मैं
अपने अस्तित्व को
जब ना पाने का हो आभास
तब होगा विद्रोह.....
जब सूरज की लालिमा भी
मन के अन्धकार को
उज्जवल न केर पाए
तब होगा विद्रोह.....
कभी सुन पाए गर
अपने अंतर्धवानी को
तब कहीं होगा विद्रोह.....
सुख शांति की कामना लिए
जब मन अडिग हो ...
अपने कर्मों पर अथाह विश्वास हो
और ह्रदय में सत्य का वास हो
तब कहीं हो पाए गा विद्रोह..................!!!!!!!!
बहुत खूब क्या बातें कही हैं...आपकी कविता मेरे "शिव : कब होगा विद्रोह " को क्या खूब सजा गयी. आपकी पंक्तियाँ लाजवाब है... यूँ ही लिखते रहिये.. एक सवाल जरूर मन में बिठा गयी "कौन हैं आप..जानना चाहूँगा आपके बारे मैं. आपकी पहली कविता आपके भावों को दर्शाती हैं की कितने खूब हैं आप....क्या आप भी ब्लॉग लिखते है? बताईयेगा अपने बारे मैं. एक मेल ही सही ..उसी से राज़ खोल जाईये.
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