ab Montu Bolega |
आज चौपाल पहुचने में थोड़ी देर
हुई थी, Indiblogger पर नयी विषय आई थी. अब मोंटू बोलेगा.
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Strepsil की ज़ुबानी एक कहानी थी, एक इन्सान की जो बचपन से ही लोगों के खरासों से अपनी ज़िन्दगी की हर इच्छा को दबा जाता. बचपन में माँ बाप के खरासों में पेंटर बनने के सपने, गर्लफ्रेंड के खरासों में दोस्तों के साथ लम्बी ड्राईव की इच्छा दबा जाना या बॉस की खरासों में अपने साथी की मदद न कर पाना. खरासों से ज़िन्दगी दूसरों के इच्छा से चलती थी. फिर एक दिन उसके अन्दर की मोंटू ने आवाज़ लगायी. खरासों से उसने निजाद पायी. फिर क्या था सबकी सुनने वाला मोंटू खुश हुआ और उसने कसम खायी “अब मोंटू बोलेगा” #AbMontuBolega. विधि का विधान देखिये आज हमारे यहाँ भी मोंटूपर पंचायत लगी थी. पहुँच गया था मैं चौपाल.
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चौपाल पर आज सबेरे से
जमावड़ा था. गाँव में बहुत वर्षों बाद एक बार फिर पंचायत बैठने वाली थी. पुरे गाँव
में दबी जुबान कुछ कानाफुसी चल रही थी. पंचायत जब बैठती तो एक अलग ही माहौल बन
जाता. चौपाल पे कुर्सी सज जाती. प्रधान
चाचा कड़क मुछों में नज़र आते जैसे कलफ से मुछों को धो कर इस्त्री करवाया हो. तैयारी
में सफ़ेद कुर्ते धोती को कलफ लगा कर इस्त्री करवाया जाता. आखिर रौब भी दिखाना पड़ता
है. पंचों के यहाँ पहले से ही न्योता जाता. आज जमवाडा बढ़ने वाला था लगभग सभी घर से
निकल कर चौपाल पे आ जाते. जब भीड़ बढ़ेगी तो चाय पानी के व्यवस्था में ददुआ चाचा की
निकल पड़ती. अज काकी को भी दुकान पे ले आये थे. अकेले सँभलने वाला न था दुकान. गाँव
भर के बच्चे चौपाल के अगल बगल ही उधम मचा रहे थे. हल्कू चाचा का बदमाश बेटा फिर से
मोटी कुतीया के पूछ में टीन के डब्बे बाँध दिया था, और निकल पड़ी थी निक्कर में
चिल्लर पार्टी कुतीया के पीछे पीछे, ताली बजाते शोर करते. आस पास से गुजर रहे बडे
बुजुर्ग, झूठमुठ के डांटते उन्हें. मजा तो उन्हें भी आ रहा था, बच्चों के
बदमाशियों में. पंचायत बैठती तो एक मेला सा लग जाता.