लिखने की उन्होंने हमे यूँ उसकाया की अब लिखने मैं आनंद सा आने लगा. भले कोई ख़ास नहीं लिख पाते पर एक लत सी लगने लगी है. हर वक़्त ढूँढता हूँ कुछ लिख जावू. कभी कुछ रुमानियाँ, कभी दर्द तो कभी कुछ, तीन शब्दों मैं अपने मन की भड़ास निकाल ही लिया करता हूँ. कुछ दिनों से हम सोच रहे थे की अपनी बातें ही लिखना शुरू करू जैसे आत्म कथा लिखी जाती है. पर, लेखनी मैं ऐसी कोई दम नहीं थी. सो, हमने सोचा की क्यूँ न अपनी चौपाल पर घटते कथा को लेखनी मैं बदलना शुरू करू. कोई आत्म कथा नही पर संस्मरण तो हो ही सकता है.
Merry Christmas.. :)
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