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कभी कभी महसूस होता
है, लोग हमे अपने कारणों से इस्तेमाल करते हैं, जब इस्तेमाल समाप्त हो जाता है, वो
अपने रास्ते और हम एक कड़वे अनुभव के साथ रह जाते हैं... शायद इस्तमाल होना हम
इन्सानों की कमजोरी है और इस्तमाल करना हमारी फितरत.... हाँ एक फितरत ही तो होती
होगी.......
साइकिल के पहिये
गोल गोल घुमाया
जब चल पड़ी, तो फेंक मुझे
तुम, उसके संग दौड़
पड़े...
आम के ऊँचे झुरमुट से
झटके से आम तोड़ा
फिर वहीँ, लावारिस
सा फेंक मुझे
तुम, आम चूसते निकल
पड़े..
आज्ञा की अवज्ञा हुई
शांत हुए, प्रेम लौटा
फिर वहीँ, किसी कोने
में फेंक मुझे
तुम, नन्हे को काँधे
पर बिठाये निकल पड़े..
लडखडाये, चल भी नहीं
पाए
संभले, जरा साहस हुआ
वहीँ, किसी कोने में
खड़ा कर मुझे
तुम, दौड़ते हुए निकल
गए....
सोचता हूँ मैं, ये तुम
हो
या इन्सानों की ही फितरत
है कोई
पहले इस्तमाल किया
फिर वहीँ, कहीं लावारिस
सा,
व्यर्थ मान, अपने डंडे
को फेंक
अपने दिशा में निकल
पड़े......
सोचता हूँ मैं, ये तुम
हो
या इन्सानों की ही फितरत
है कोई
इस्तेमाल हुए डंडे सा खुद को
महसूस करता हुआ.....१५-dec